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हल्द्वानी के बनभूलपुरा में क्यों सड़क पर बैठे हैं हजारों लोग?

हल्द्वानी के बनभूलपुरा में क्यों सड़क पर बैठे हैं हजारों लोग?

हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके की गफूर बस्ती में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई क्यों की जानी है और इस बारे में स्थानीय लोगों व पुलिस-प्रशासन का क्या कहना है?

कड़कड़ाती सर्दी के बीच उत्तराखंड के नैनीताल जिले के हल्द्वानी शहर में इन दिनों माहौल बेहद गर्म है। शहर के बनभूलपुरा इलाके में रेलवे अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई करने जा रहा है। बनभूलपुरा इलाके की गफूर बस्ती में रेलवे की 28 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाया जाना है। अतिक्रमण की जद में 4365 मकान आ रहे हैं। इस संभावित कार्रवाई से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या लगभग 40 से 50 हजार है। 

कांग्रेस, सपा सहित कुछ अन्य राजनीतिक दल व कुछ सामाजिक संगठन और क्षेत्र की जनता अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई का पुरजोर विरोध कर रही है। 

महिलाएं, छोटे बच्चे, बुजुर्ग, नौजवान अतिक्रमण हटाने की संभावित कार्रवाई के खिलाफ सड़क पर बैठे हैं और उन्हें राहत दिए जाने की गुहार राज्य सरकार और अदालत से लगा रहे हैं। 

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अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई को संपन्न कराने के लिए पुलिस व प्रशासन इस पूरे इलाके में तैनात है। रैपिड एक्शन फोर्स की कई कंपनियां बुला ली गई हैं। पुलिस, पीएसी, रेलवे के अलावा पैरामिलिट्री फोर्स को भी अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान अलर्ट मोड में रखा जाएगा। 

इसे लेकर सोशल मीडिया पर भी माहौल अच्छा-खासा गर्म है और अतिक्रमण हटाने की संभावित कार्रवाई से प्रभावित होने वाले लोगों के प्रदर्शन के वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं।

कैंडल मार्च निकाला

शुक्रवार शाम को हजारों लोगों ने इस इलाके में विशाल कैंडल मार्च निकाला और सरकार से उनकी मदद करने की गुहार लगाई। कैंडल मार्च में कांग्रेस के स्थानीय विधायक सुमित हृदयेश, छात्र नेता, गफूर बस्ती के लोग और कई सामाजिक संगठनों के लोग शामिल हुए। 

नैनीताल हाईकोर्ट का आदेश 

अतिक्रमण हटाने की यह कार्रवाई नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर हो रही है। हाईकोर्ट ने रेलवे की 28 एकड़ जमीन पर बनाए गए 4365 मकानों को अतिक्रमण बताया है और इन्हें ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने इस काम में पुलिस और प्रशासन से रेलवे का सहयोग करने के लिए कहा है। 

अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के विरोध में स्थानीय कारोबारी, दुकानदार और आम लोग सड़क पर उतर आए हैं। उनका कहना है कि उनकी कई पीढ़ियां यहां पर सालों से रह रही हैं, ऐसे में उन्हें बेघर नहीं किया जाए।

क्या कहना है लोगों का?

स्थानीय लोगों का कहना है कि राज्य सरकार के नुमाइंदों ने अदालत में उनके हक की पैरवी नहीं की और हजारों की तादाद में लोगों को बेघर किए जाने की कोशिश की जा रही है। लोगों का कहना है कि इसे अतिक्रमण कहा जाना पूरी तरह गलत है और यहां पर वे लोग सालों से रह रहे हैं और किसी भी कीमत पर अपने घरों को बचाएंगे। 

धरना दे रहे लोगों का कहना है कि रेलवे ने इस मामले में अदालत को भी गुमराह किया है और उसने इस बारे में कोई सबूत पेश नहीं किए कि यह उसकी जमीन है। 

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स्थानीय लोगों का कहना है कि वे सालों से सीवर लाइन, बिजली, पानी आदि चीजों का बिल देते हुए आ रहे हैं और इस इलाके में घरों के साथ ही मंदिर, मस्जिद, ट्यूबवेल, पानी की टंकियां, प्राइमरी स्कूल, सरकारी स्कूल भी हैं, ऐसे में इन्हें अतिक्रमण बताकर कार्रवाई की बात कहना पूरी तरह गलत है। लोगों ने कहा है कि वे अपनी जान भी दे देंगे लेकिन अपने घरों को छोड़कर नहीं जाएंगे। 

क्या कहना है प्रशासन का?

प्रशासन का कहना है कि हाईकोर्ट के आदेश पर ही अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जानी है और इस मामले में राजस्व विभाग सीमांकन की कार्रवाई कर चुका है। मुनादी करने के बाद नोटिस दिए जाएंगे और नोटिस दिए जाने के एक हफ्ते बाद अतिक्रमण को हटाने की कार्रवाई शुरू की जाएगी। अगले एक-दो दिन में मुनादी का काम शुरू हो जाएगा। 

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भारी पुलिस बल तैनात 

स्थानीय लोगों के द्वारा विरोध प्रदर्शन की जो तस्वीरें वायरल हुई हैं उसमें छोटे-छोटे बच्चे हाथ में पोस्टर लिए खड़े हैं। इन पोस्टरों में लिखा है कि अब हम कहां पढ़ेंगे, हमारे बुजुर्ग मां-बाप कहां जाएंगे, पहले हमें बसाया जाए और फिर कार्रवाई की जाए। धरना दे रहे लोगों के हाथों में जो होर्डिंग्स हैं उनमें लिखा है कि हमारे घरों में माता-पिता और बुजुर्ग हैं। धरने में शामिल हुई महिलाओं ने कहा है कि वह इस जगह से नहीं हटेंगी। स्थानीय लोगों के बढ़ते विरोध को देखते हुए क्षेत्र में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया है और आसपास के इलाकों को सील कर दिया गया है। 

पुलिस व प्रशासन का स्पष्ट कहना है कि यह कार्रवाई क्योंकि हाईकोर्ट के आदेश पर की जानी है इसलिए अदालत के आदेश का पालन कराना पुलिस व प्रशासन का काम है। 

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गफूर बस्ती में बसे ऐसे हजारों लोग जो कई पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं और कई लोग ऐसे हैं जो रोजी-रोटी की तलाश में हल्द्वानी आए और यहीं के होकर रह गए, उनके सामने जिंदगी-मौत का सवाल आ खड़ा हुआ है। उन्होंने खून पसीने की मेहनत से इकट्ठा किए गए रुपयों से अपने लिए छोटे-छोटे घर भी बनाए और उनकी जिंदगी की गाड़ी आगे चलने लगी।

लेकिन शायद उन्हें नहीं पता था कि आने वाले दिनों में उनके आशियाने को अतिक्रमण बताकर उन्हें गिराने के बारे में कहा जाएगा। निश्चित रूप से 40 से 50 हजार लोग बेहद मुश्किल में हैं और उनकी सरकार से यही गुहार है कि उन्हें राहत दी जाए, वरना छोटे-छोटे बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग कहां जाएंगे और कैसे वे लोग अपने लिए दूसरी जगह आशियाना बना पाएंगे। 

हरीश रावत की अपील

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता हरीश रावत ने कहा है कि स्थानीय विधायक और हल्द्वानी के प्रबुद्ध लोग सुप्रीम कोर्ट के सामने इस मामले में निवेदन करने जा रहे हैं। उन्होंने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि यह एक मानवीय समस्या है और इसे कानूनी और राजनीतिक समस्या के रूप में ना देखा जाए। 

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