गडकरी का फिर वार : सपने दिखा कर पूरा नहीं करने वालों को जनता पीटती है
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी एक बार फिर सुर्खियों में हैं। उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा, 'सपने दिखाने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं, पर दिखाए हुए सपने अगर पूरे नहीं किए तो जनता उनकी पिटाई भी करती है। इसलिए सपने वही दिखाओ, जो पूरे हो सकें। मैं सपने दिखाने वालों में से नहीं हूँ। मैं जो बोलता हूँ, वह 100% डंके की चोट पर पूरा होता है।'
N Gadkari: Sapne dikhane waale neta logon ko acche lagte hain,par dikhaye hue sapne agar pure nahi kiye to janta unki pitayi bhi karti hai.Isliye sapne wahi dikhao jo pure ho sakein....Mai sapne dikhane waale mein se nahi hu.Mai jo bolta hu wo 100% danke ki chot par pura hota hai pic.twitter.com/SRISZyCffS
— ANI (@ANI) January 27, 2019
गडकरी ने किसी का नाम नहीं लिया। पर साफ़ है कि उनका इशारा सीधे-सीधे मोदी की ओर ही है। ख़ास कर इसलिए भी कि गडकरी पिछले छह महीने से लगातार नाम लिए बग़ैर इशारों-इशारों में मोदी पर और कभी-कभी अमित शाह पर तीखे हमले करते रहे हैं। पिछले छह महीने में कम से कम छह बार गडकरी के ऐसे बयान आए हैं, जो मोदी सरकार के कामकाज और मोदी के अपने विचारों की तीखी आलोचना कहे जा सकते हैं। उनके लगातार ऐसे बयानों से ये अटकलें भी लगातार तेज़ होती जा रही हैं कि गडकरी को ज़रूर कहीं न कहीं से शह मिल रही है। वैसे राजनीतिक क्षेत्रों में माना जाता है कि गडकरी को संघ का वरद हस्त प्राप्त है।
'नौकरियाँ नहीं हैं'
गडकरी के बयानों का सिलसिला 4 अगस्त 2018 को तब शुरु हआ, जब उन्होंने यह कह कर राजनीतिक भूचाल ला दिया कि नौकरियों के मौके कम हो रहे हैं। मराठा आरक्षण आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि जब नौकरियाँ कम हो रही हैं, आरक्षण की बात करना बेकार है। उन्होंने कहा, 'हम मान लेते हैं कि आरक्षण दिया जाता है, पर नौकरियां नहीं हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के कारण बैंकों में नौकरियां कम हो गईं, सरकार में नई नियुक्तियां बंद हैं। नौकरियाँ कहाँ हैं?'गडकरी ने यह ऐसे समय कहा जब सरकार बार-बार कह रही थी कि रोज़गार के मौक़े कम नहीं हुए हैं। सालाना दो करोड़ नौकरियाँ सृजित करने के मोदी के दावे पूरे नहीं होने पर जब उनकी खिंचाई होने लगी तो मोदी ने एक बार पीएफ़ ऑफ़िस का आँकड़ा देकर यह कहना चाहा था कि नौकरियों के कम होने का आरोप ग़लत है। लेकिन उनके ही मंत्री गडकरी ने मोदी के कहे का उल्टा कह कर सरकार के लिए अच्छी ख़ासी परेशानी खड़ी कर दी थी। गडकरी के इस बयान पर विपक्ष ने सरकार को खूब घेरा था।
'जीतने की उम्मीद नहीं थीं, लंबे चौड़े वायदे कर दिए'
इसके दो महीने बाद गडकरी ने 5 अक्टूबर, 2018 को 'कलर्स मराठी' के एक टॉक शो में कहा, 'चुनाव के पहले पार्टी को जीतने की कोई उम्मीद नहीं थी, लिहाज़ा, हमने लंबे चौड़े वायदे कर दिए, अब हम सत्ता में आ गए तो लोग पूछते हैं उन वायदों का क्या हुआ, हम बस हँस कर आगे बढ़ जाते हैं।'
गडकरी के इस बयान पर भी ख़ूब तमाशा हुआ। राहुल गाँधी समेत तमाम विपक्ष ने गडकरी के बयान को हाथोहाथ लपक लिया और देश में रोज़गार की कमी के लिए सरकार को ख़ूब आड़े हाथों लिया। गडकरी के इस बयान के बाद राजनीतिक क्षेत्रों में इस बात को लेकर अटकलें तेज़ हो गईं कि गडकरी मोदी सरकार पर इस तरह के हमले क्यों कर रहे हैं, उनका मंतव्य क्या है। लोग इस बात पर भी उत्सुकता से नज़र रख रहे थे कि गडकरी पर लगाम लगाने के लिए कहीं से कोई कर्रवाई होती है या नहीं। लेकिन गडकरी के ख़िलाफ़ संघ या पार्टी का कई बयान नहीं आया।
'नेतृत्व नाकामियों की ज़िम्मेदारी ले'
दो महीने और बीत गए। इस बीच बीजेपी पाँच राज्यों में चुनाव हार गई। चुनावी नतीज़े आने के 11वें दिन 22 दिसंबर को 22 दिसंबर, 2018 को पुणे में एक सहकारी बैंक के कार्यक्रम में गडकरी ने फिर एक विस्फोटक बयान दे दिया। गडकरी ने कहा, 'नेतृ्त्व को हार और नाकामियों की ज़िम्मेदारी भी लेनी चाहिए।' उन्होंने इसी कार्यक्रम में कहा, 'सफलता के कई पिता होते हैं, पर असफलता अनाथ होती है। कामयाब होने पर उसका श्रेय लेने के लिए कई लोग दौड़े चले आते हैं, पर नाकाम होने पर लोग एक दूसरे पर अंगुलियां उठाते हैं।' उन्होंने इसके आगे कहा, 'राजनीति में नाकामी पर एक कमेटी गठित कर दी जाती है, पर कामयाब होने पर कई आपसे पूछने नहीं आता है।' मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, गडकरी ने कहा, 'कोई उम्मीदवार हारने के बाद तरह-तरह के बहाने बनाता है, कहता है कि उसे समय पर पोस्टर नहीं मिले, वगैरह-वगैरह। पर मैंने तो एक बार एक हारे हुए उम्मीदवार से कह दिया, तुम इसलिए हार गए कि तुममें या तुम्हारी पार्टी मे कोई कमी रही होगी'।ज़ाहिर है कि गडकरी के इस बयान को पाँच राज्यों में बीजेपी की हार और पर्टी के शीर्ष नेतृत्व की विफलता से जोड़ा गया। माना गया कि उन्होंने ऐसा कह कर नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सीधे- सीधे निशाने पर लिया है और यह संदेश दिया है कि केंद्रीय नेतृत्व को बहाने बनाने के बजाय हार की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। गडकरी के इस बयान पर तो तूफ़ान ही खड़ा हो गया। राजनीतिक क्षेत्रों में कहा गया की मोदी और अमित शाह के नेतृ्त्व पर इससे बड़ा और तीखा हमला और क्या हो सकता है। बाद में गडकरी ने अपने इस बयान पर सफ़ाई देते हुए कहा कि मीडिया के कुछ लोग उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर उनके और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के बीच दरार पैदा करना चाहते हैं, लेकिन वे इसमें कभी कामयाब नहीं होंगे।
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नेहरू की तारीफ़
इसके ठीक तीन दिन बाद गडकरी ने 25 दिसंबर, 2018 को इंटेलीजेंस ब्यूरो के 31 एनडाउमेंट लेक्चर में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की तारीफ़ कर खलबली मचा दी। उन्होंने कहा, 'मैं नेहरू के भाषण सुना करता हूं और मुझे वे बातें अच्छी लगती हैं। नेहरू ने कहा था कि यह एक राष्ट्र नहीं आबादी है, वह कहते थे कि अगर हर कोई यह सोचे कि वह अपने आप में देश की समस्या नहीं है और यदि हर कोई समस्या पैदा नहीं करे तो देश की आधी समस्याएं यूं ही हल हो जाएँ।'
गडकरी के इस बयान को भी सीधे सीधे नरेंद्र मोदी पर इसलिए हमला माना गया क्योंकि मोदी पिछले कुछ वर्षों से नेहरू की लगातार तीखी आलोचना करते रहे हैं और उन्हें देश की लगभग हर समस्या के लिए ज़िम्मेदार ठहराते रहे हैं।
इंदिरा की तारीफ़
नेहरू की तारीफ़ के ठीक 13 दिन बाद गडकरी ने 7 जनवरी, 2019 को इंदिरा गाँधी की प्रशंसा कर दी। महिला स्वयं सहायता समूहों के एक प्रदर्शनी कार्यक्रम के उद्घाटन के मौके पर उन्होंने कहा, 'इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी में अन्य सम्मानित पुरुष नेताओं के बीच अपनी क्षमता साबित की। क्या ऐसा आरक्षण की वजह से हुआ?' उसके कुछ दिन पहले ही विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान एक जनसभा में मोदी ने तीखी आलोचना की थी। वैसे भी इमर्जें को लेकर मोदी इंदिरा पर तीखे हमले बोलते रहे हैं।
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गडकरी के लगातार इतने बयानों के बावजूद कड़े अनुशासन की बात करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या 'चाल चरित्र और चेहरा' का दावा करने वाली बीजेपी ने गडकरी पर लगाम लगाने की कोई कोशिश नहीं की। इसके राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि संघ और पार्टी के कुछ लोग मोदी से बेहद नाराज़ हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक नहीं, कई बार इशारों-इशारों में मोदी और उनकी सरकार की आलोचना की है। वह राम मंदिर मुद्दे पर अध्यादेश लाने के लिए सरकार पर दबाव डाल रहे हैं जबकि प्रधानमंत्री ने दो टूक कह दिया है कि न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही संसद का रास्ता चुना जाएगा।
संघ का मानना है कि मोदी सरकार अपने वायदे पूरे करने में नाकाम रही है, आर्थिक स्थिति और दूसरे मुद्दों पर लोगों में असंतोष है और ऐसे में बीजेपी का चुनाव जीत कर दुबारा सत्ता में लौटना मुश्किल है।
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इस वजह से संघ में कुछ लोग मोदी के विकल्प की तलाश करने की बात करने लगे हैं। संघ में काफ़ी वरिष्ठ हैसियत रखने वाले महाराष्ट्र के बड़े किसान नेता और वसंतराव नाईक शेती स्वावलंबन मिशन के चेयरमैन किशोर तिवारी ने मोहन भागवत को पिछले दिनों एक चिट्ठी लिख कर कहा कि मोदी और अमित शाह के तानाशाही रवैये की वजह से ही देश में दहशत का माहौल है। उन्होंने आगे लिखा:
अब देश को गडकरी जैसे एक नरमदिल और सर्वस्वीकार्य नेता की ज़रूरत है, जो सब तरह के विचारों और मित्र दलों को साथ लेकर चल सके, आम राय बना सके और लोगों के मन से भय निकाल सके।
गडकरी पर क्या है राय: क्या मोदी के ख़िलाफ़ संघ में पक रही है कोई खिचड़ी?
अब लोकसभा चुनाव सिर पर हैे और तीन अलग-अलग चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों से बीजेपी को लेकर निराशाजनक तस्वीर सामने आई है कि अगले आम चुनावों में बीजेपी का जीतना मुश्किल है। ऐसे में बीजेपी को वर्तमान एनडीए में शामिल घटक दलों के अलावा कई दूसरी पार्टियों के समर्थन की भी ज़रूरत पड़ेगी। मोदी के कामकाज के ढंग और रवैए से एनडीए के कुछ घटक पहले से ही नाराज़ चल रहे है। शिवसेना अपनी नाराज़गी एक नहीं, दसियों बार खुल कर जता चुकी है। चंद्रबाबू नायडू तो इतने आहत हुए कि वह एनडीए से बाहर ही हो गए। उधर असम में असम गण परिषद भी एनडीए का साथ छोड़ चुकी है। ऐसे में बहुमत से बहुत दूर रह जाने की स्थिति में बीजेपी को ऐसे किसी सर्वमान्य नेता की ज़रूरत पड़ेगी जो न केवल एनडीए के मौजूदा घटकों को स्वीकार हो, बल्कि एनडीए के बाहर दूसरे दलों को भी एनडीए से जोड़ कर बहुमत के लायक नंबर जुटा सके। ऐसी स्थिति में नितिन गडकरी की उपयोगिता बढ़ सकती है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि गडकरी इस स्थिति के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं और माना जा रहा है कि उनकी पीठ पर संघ का पूर-पूरा हाथ है।