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<span>ग़दर-2 और OMG-2- फ़िल्में जो सियासत का आइना हैं!</span>

ग़दर-2 और OMG-2- फ़िल्में जो सियासत का आइना हैं!

बॉलीवुड की दो फिल्मों गदर-2 और ओएमजी-2 की काफी चर्चा है। स्तंभकार राकेश अचल दोनों फिल्मों के बारे में अपने अंदाज में बता रहे हैं।  

हंगामे में डूबी संसद और नफरत में डूबी सियासत के बाहर निकलो तो पता चलता है की दुनिया के बाजार में सब कुछ बिकता है। धर्म भी और देशभक्ति भी। खरीदारों की दुनिया में कोई कमी नहीं है। आप ठीक समझे ! आज मैं सियासत की नहीं, सिनेमा की बात कर रहा हूँ। देश में इस समय सनी देओल की फिल्म ' गदर-2  और अक्षय कुमार की फिल्म ' ओएमजी -2 की धूम है। सिनेमा में भी सियासत की तरह एनडीए, यूपीए-1 और 2 का चलन हो गया है। मुमकिन है कि सियासत से प्रेरित फिल्म जगत में अब फिल्मों के तीसरे सीक्वल भी आ जाएँ।

बात इस महीने की दो मशहूर फिल्मों की हो रही है। मैंने गदर-1  और ओएमजी -1  देखी थी और अब इन दोनों के दूसरे संस्करण भी देख रहा हूँ। बॉलीवुड की खबर है कि  'गदर 2' ने थिएटर्स में पहले ही दिन से जमकर भीड़ जुटानी शुरू कर दी है। तारा सिंह की वापसी ने बॉक्स ऑफिस पर ऐसा धमाका किया है, जो लंबे समय तक याद किया  जाएगा।

पूरे 22 साल बाद आए सीक्वल ने पहले ही दिन थिएटर्स के बाहर लाइनें लगवा दीं। 'गदर 2' ने पहले ही दिन रिकॉर्ड तोड़ ओपनिंग की है। इन दो दशकों में दर्शकों की दूसरी पीढ़ी सिनेमाघरों पर पैसा लुटाने कि लिए मौजूद है। मुमकिन है गदर-2  देखने वालों में आधे दर्शकों ने गदर-1  न देखी हो लेकिन उसके बारे में सुना जरूर होगा। सिनेमा की भाषा में कमाई को 'कलेक्शन कहा जाता है। ट्रेड रिपोर्ट्स के अनुमान बताते हैं कि 'गदर 2' ने पहले दिन 40.10 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया है। गदर-2  की कहानी में वो ही पकिस्तान है  जो पहले था।  वे ही हीरो और हीरोइन हैं।  यानि नयी बोतल में पुरानी शराब। कुछ कहानी बदली है लेकिन पहले जैसी ही चीख चिल्लाहट है। आक्रोश है।

गदर-2  की कहानी शुरू होती है और दिखाया जाता है साल 1971 का समय जहाँ "क्रश इंडिया" अभियान की पृष्ठभूमि के दौरान, तारा सिंह अपने बेटे चरणजीत "जीते" सिंह को बचाने के लिए एक निजी मिशन पर पाकिस्तान वापस जाते हैं, जिसे मेजर जनरल हामिद इकबाल के नेतृत्व में पाकिस्तानी सैनिकों ने कैद कर लिया है और लगातार प्रताड़ित कर रहा है। क्या तारा सिंह अपने बेटे को सही सलामत हिन्दुस्तान वापस लाने में कामयाब रहेगा, यही इस फिल्म की कहानी का खाका  है। भारतीय सिने जगत दशकों से बल्कि बीते 75  साल से पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के बीच कि दुश्मनी को  'हॉटकेक ' की तरह बेच रहा है। कामयाबी के ये स्थापित और प्रामाणिक फार्मूले हैं।

राष्ट्रभक्ति कि साथ ही भगवान को भी फिल्मी कहानियों में बेचा जा रहा है। उन्हें आप चाहे ओएमजी यानि ' ओह माई गॉड 'कहकर बेचिये या संतोषी माँ बनाकर। भगवान का नाम सियासत की तरह कलयुग में हर बाजार में बिकता है। हालांकि कहा जाता है कि  इस बार सेंसर बोर्ड के 'ए'  सर्टिफिकेट और सिनेमाघरों में 'गदर 2' की मोनोपली ने अक्षय की ओएमजी-2   को भारी नुकसान पहुंचाया है। ओएमजी-2  के साथ मसला ये है कि अच्छे विषय पर बनी प्रासंगिक फिल्म है। अगर 'गदर 2' के साथ इसकी टक्कर नहीं होती, तो फिल्म 20 करोड़ या उससे ऊपर भी जा सकती थी।  लेकिन अभी क्या हुआ,अक्षयकुमार ये आंकड़ा छू सकते हैं। उन्हें इसके लिए अपनी प्रिय पार्टी से ओएमजी-2  को मनोरंजन कर से मुक्त कराना होगा।

तकनीकी भाषा में कहें तो ओएमजी -2  को सेंसर बोर्ड ने ' ए ' सर्टिफिकेट दिया है. इसलिए फिल्म का लक्षित दर्शक वर्ग, जो कि स्कूल और कॉलेज के छात्र हैं  हैं,  ये फिल्म नहीं देख पा रहे।  ओएमजी -2  का स्क्रीन काउंट भी फिल्म की कमाई पर काफी असर डाल रहा है।  'गदर 2' को देशभर के 4000 से 4500 स्क्रीन्स पर रिलीज़ किया गया है. वहीं ओएमजी-2 को मात्र 1750 स्क्रीन्स मिले हैं। जो कि अक्षय कुमार की फिल्म होने के नाते बेहद कम है। ओएमजी -2  में पंकज त्रिपाठी मुख्य भूमिका  कर रहे हैं. अक्षय कुमार ने एक्सटेंडेड कैमियो से थोड़ा बड़ा रोल किया है। ये चीज़ भी टिकट खिड़की पर फिल्म की परफॉरमेंस को प्रभावित कर रही है।

आपको याद होगा कि   2011 में ' ओह माई गॉड  ' नाम की फिल्म आई थी। ओएमजी  2 इसी का  सीक्वल है. इस फिल्म में अक्षय कुमार ने भगवान शिव के दूत का रोल किया है। उनके अलावा इस फिल्म में पंकज त्रिपाठी, यामी गौतम और अरुण गोविल जैसे अभिनेताओं  ने काम किया है।  इस फिल्म को 'रोड टु संगम' बनाने वाले अमित राय ने डायरेक्ट किया हैं। ओएमजी 2 में 'सेक्स शिक्षा ' जैसे विषय को काफी संवेदनशीलता से डील करने की कोशिश की गयी है। लेकिन अक्षय कुमार को शिवदूत कि रूप में देख कातर दर्शक भक्तिभाव से सिनेमाघर पहुंचता है ,लेकिन निकलता कुछ और है।

एक जमाना था जब कहा जाता था कि -' साहित्य समाज का दर्पण होता है ' लेकिन मै आज कह सकता हूं कि  आज की फ़िल्में हमारी सियासत की दर्पण हैं। जो सियासत में होता है ,वो ही कमोवेश अब फिल्मों में होता है।  दोनों का लक्ष्य  जनता को ठगना और अपनी  जेबें भरना ही है। आप इस तथ्य से सहमत और असहमत हो सकते हैं ,किन्तु जो है सो है। अक्षय कुमार हों या सनी देओल दोनों अपनी -अपनी दूकान से अपना अपना माल बेच रहे हैं। जब तक राष्ट्रवाद और भगवान सियासत में ज़िंदा हैं तब तक फिल्मों से भी इन विषयों को कोई बाहर नहीं कर सकता। यदि आपने ये दोनों फ़िल्में न देखीं हों तो इन्हें देख सकते हैं। कम से कम टीवी पर फर्जी बहस से तो बचा ही जा सकता है कुछ घंटे के लिए । साथ ही घर वालों को भी खुश किया जा सकता है कुछ देर के लिए।

(राकेश अचल के फेसबुक पेज से)

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