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बिजली माफ़ यानी खैरात बाँटकर सत्ता में बने रहने का फ़ंडा

बिजली माफ़ यानी खैरात बाँटकर सत्ता में बने रहने का फ़ंडा

आम आदमी पार्टी एक बार फिर दिल्ली की जनता के लिए मुफ़्त की खैरात का पिटारा खोल लाई है। अब 200 यूनिट तक बिजली इस्तेमाल करने वालों को कोई बिल नहीं आएगा। 

आम आदमी पार्टी एक बार फिर दिल्ली की जनता के लिए मुफ़्त की खैरात का पिटारा खोल लाई है। अब 200 यूनिट तक बिजली इस्तेमाल करने वालों को कोई बिल नहीं आएगा। न बिल आएगा और न ही बिल भरने का झंझट होगा। ‘बिजली हाफ़ और पानी माफ़’ के नारे की जगह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ‘बिजली माफ़ और पानी माफ़’ कर दिया है।

‘बिजली माफ़ और पानी माफ़’ इस इस बदले हुए नारे से दिल्ली पर कितना बोझ पड़ेगा, यह केजरीवाल ने नहीं बताया। लगता है कि उन्होंने कैलकुलेट यानी जोड़-घटाव भी नहीं किया होगा। उनके दिमाग में जो कुछ आता है, वह उसे लागू करने की घोषणा कर देते हैं क्योंकि उन्हें इस बात की फ़िक्र नहीं होती कि सरकारी खज़ाने पर कितना असर पड़ेगा। क्या सरकारी खज़ाना सिर्फ़ मुफ़्त खैरात बाँटने के लिए है पिछले कुछ दिनों में ही उन्होंने महिलाओं के लिए मेट्रो और बसों में महिलाओं के मुफ़्त सफर की घोषणा की है। उन्होंने मुख्यमंत्री तीर्थ-यात्रा योजना के तहत बुजुर्गों को दक्षिण के तीर्थ स्थानों की हवाई यात्रा के साथ-साथ एयर कंडीशंड होटलों में ठहराने का एलान किया है। उन्होंने अब 200 यूनिट तक बिजली फ़्री कर दी है। 

दिल्ली को केंद्र से सिर्फ़ 325 करोड़ रुपए मिलते हैं, इस पर उन्हें एतराज है कि दिल्ली का हिस्सा बढ़ना चाहिए क्योंकि दिल्ली की अपनी ज़रूरतें हैं लेकिन दिल्ली को मुफ़्तख़ोरी की आदत डालने के लिए उनके खज़ाने का मुँह खुला हुआ है। वह कहते हैं कि दिल्ली में पूरे देश से बिजली सस्ती है। बीजेपी शासित गुरुग्राम में 200 यूनिट बिजली 910 रुपये की है। नोएडा में 200 यूनिट बिजली के दाम 1310 रुपये हैं। बीजेपी शासित मुंबई में 200 यूनिट बिजली के दाम 1410 रुपये हैं। वहीं, कांग्रेस शासित अजमेर में 200 यूनिट बिजली के दाम 1588 रुपये हैं। जबकि दिल्ली में 200 यूनिट बिजली के दाम केवल 408 रुपये हैं।

यह इसलिए नहीं है कि दिल्ली सरकार ने कोई करिश्मा किया है और बिजली सस्ती हो गई है। दिल्ली सरकार के पास सब्सिडी रूपी अलादीन का चिराग है जिसे घिसकर वह जनता को सस्ती बिजली बाँट रहे हैं। दूसरे राज्यों को विकास की तरफ़ भी ध्यान देना होता है जबकि लगता है कि दिल्ली सरकार को इसकी फ़िक्र नहीं है। वे दिल्ली नगर निगम के सफ़ाई कर्मचारियों को सैलरी बाँटने के लिए फ़ंड नहीं दे सकते लेकिन मुफ़्त खैरात बाँटने के लिए कोई भी योजना घोषित कर सकते हैं। ख़ुद दिल्ली के पीडब्ल्यूडी ने एक आरटीआई में माना है कि पिछले पाँच सालों के दौरान दिल्ली की आप सरकार ने एक भी फ्लाई ओवर का प्रोजेक्ट तैयार नहीं किया, जबकि केजरीवाल ख़ुद 23 फ्लाई ओवर बनाने का झूठा दावा कर चुके हैं और उनके इस दावे की पोल भी खुल चुकी है।

चुनाव से पहले खुली खैरातों की पोटली

अब दिल्ली में विधानसभा के चुनाव आने वाले हैं तो खैरातों की पोटली खुल गई है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। दो साल पहले नगर निगम के चुनाव हुए थे तो उससे ठीक पहले केजरीवाल ने एलान किया था कि नगर निगम में जीते तो फिर दिल्ली का प्रॉपर्टी टैक्स माफ़ कर दिया जाएगा। दिल्ली की जनता की भी पौ-बारह है। विधानसभा चुनाव आए हैं तो बिजली के बिल माफ़ हो रहे हैं। नगर निगम में जीत जाते तो प्रॉपर्टी टैक्स माफ़ हो जाता।

आने वाले दिनों में केजरीवाल यह भी कह सकते हैं कि दिल्लीवालों को इनकम टैक्स भी नहीं भरना होगा। वह भी दिल्ली सरकार भरेगी। दिल्ली के स्कूलों की फ़ीस दिल्ली सरकार माफ़ कर सकती है। इन सारी सुविधाओं के बदले में सरकार सब्सिडी देगी।

दिल्ली सरकार का 60 हज़ार करोड़ का बजट है और दिल्ली के मुख्यमंत्री बार-बार कहते हैं कि हमारे पास पैसे की कोई कमी नहीं है। पिछली सरकारों की नीयत में खोट था। इस सरकार की नीयत साफ़ है। सारा बजट सब्सिडी में ख़र्च किया जा सकता है क्योंकि आम आदमी पार्टी इसे ही विकास मानती है। हो सकता है कि यह उसके शासन का यही एक मॉडल हो लेकिन नीयत के साथ-साथ सरकार का खज़ाना भी साफ़ हो रहा है।

अब तो दिल्ली की जनता को ऐसा लगने लगा है कि चुनाव आए तो समझो कि उत्सव आ गया, जनता की पौ बारह हो गई। दिल्ली बहुत लकी है कि पिछले पाँच सालों से यह उत्सव बार-बार देख रही है- 2012 में नगर निगम, 2013 में असेम्बली, 2014 में लोकसभा और 2015 में फिर से असेम्बली और अब 2017 में नगर निगम, 2019 में लोकसभा के चुनाव और अब कुछ ही दिनों में विधानसभा के चुनाव।

राजनीतिक दल जो वादे कर रहे हैं या जिन वादों के दम पर वे सत्ता में आ जाते हैं, जनता को उसका लाभ मिलना चाहिए, न कि नुक़सान। यह बात जनता समझने की कोशिश नहीं करती कि वास्तव में वह धन जनता की जेब से ही जा रहा है।

सरकार कहाँ से दे रही है सब्सिडी

आप सरकार ने बिजली के बिल हाफ़ करने का वादा इस तर्क के साथ किया था कि अगर वह सत्ता में आ गई तो बिजली कंपनियों की लूट को रोककर उनका पर्दाफ़ाश करेगी। वह इन कंपनियों को मजबूर करेगी कि बिजली के बिल कम किए जाएँ। उस दिशा में क्या हुआ, सभी जानते हैं। इन कंपनियों के ख़िलाफ़ सीएजी जाँच हुई लेकिन उससे पहले ही कोर्ट का फ़ैसला आ गया कि जाँच हो ही नहीं सकती। ख़ैर, वह एक अलग मुद्दा है लेकिन आप सरकार जनता को बिजली के बिल में कैसे राहत देगी, यह उसकी 2013 में बनी 49 दिन की सरकार से ही साबित हो गया था। आप सरकार ने तब तीन महीने के लिए बिजली के बिलों में कटौती की थी और उसके बदले सरकार को 272 करोड़ रुपये की सब्सिडी चुकानी पड़ी थी। 20 हज़ार लीटर मुफ़्त पानी पिलाने पर भी मोटी रक़म जाती है। यह राशि पीडब्ल्यूडी और एमसीडी के हिस्से जैसी मदों से काटकर दी गई। 

जनता इन्हीं वादों के कारण ‘आप’ की ऐसी दीवानी हुई कि 2015 के चुनावों में उसे 70 में 67 सीटें जिता दीं। नतीजा यह है कि पिछले चार सालों में आप सरकार प्राइवेट कंपनियों को सस्ती बिजली के कारण क़रीब 8000 करोड़ रुपए दे चुकी है। यह वही आम आदमी पार्टी की सरकार है जो बिजली कंपनियों को खुलेआम चोर कहती है लेकिन उसे इतनी मोटी रक़म का भुगतान भी करती है। अगर यह राशि बिजली कंपनियों को नहीं जाती तो हो सकता है कि दिल्ली में कुछ फ्लाई ओवर बन जाते या फिर बुरी तरह टूट चुकी सड़कों की मरम्मत हो जाती। अब केजरीवाल कह रहे हैं कि सब्सिडी पर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। वह दावा करते हैं कि गर्मियों में 60 फ़ीसदी जनता का बिल 200 यूनिट से कम होता है और सर्दियों में यह 80 फ़ीसदी के क़रीब हो जाता है। जब इतने लोगों को मुफ़्त बिजली मिलेगी और केजरीवाल कहें कि इससे सरकार पर बोझ नहीं पड़ेगा तो ज़ाहिर है कि वह अपने आपको तो नहीं लेकिन जनता को धोखा देने की कोशिश ज़रूर कर रहे हैं।

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की जनता की नब्ज़ पकड़ रखी है। उसे पता है कि अगर वह जनता को कुछ भी मुफ़्त देने का नाम लेगी तो मुफ़्तख़ोरी के नाम पर दिल्लीवाले उसके पीछे खिंचे आएँगे। पूरे संसार में सब्सिडी जैसी बीमारी को अर्थव्यवस्था के लिए घुन कहा जाने लगा है। हमने ख़ुद किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी रोक दी है। पेट्रोल-डीजल को ही नहीं बल्कि किसानों की ख़ाद को भी खुले बाजार के लिए छोड़ दिया गया है लेकिन देश की राजधानी सब्सिडी के नए युग में प्रवेश कर चुकी है। 

ग़रीबों को सरकारी मदद मिले, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता लेकिन वोट ख़रीदने के लिए सरकारी खज़ाने को लुटाया जाए, इसकी इजाज़त तो किसी को नहीं मिलनी चाहिए।

जनता को बिजली मिले, पानी मिले यह सरकार की ज़िम्मेदारी है लेकिन मुफ़्त बिजली-पानी के लालच में वोट बटोरे जाएँ, आख़िर यह कब तक चलेगा। राजधानी पर आबादी का कितना बोझ है, यह सभी जानते हैं और इस प्रकार के लालच से दिल्ली में कितने और लोग आकर बस जाएँगे, यह भी सोचने की बात है। ग़रीबों के लिए ख़ास इंतज़ाम करना सरकार का कर्तव्य है। ग़रीबों को उनकी इनकम के सबूत के आधार पर अगर मुफ़्त स्वास्थ्य सुविधाएँ मिलें या एजुकेशन फ़्री हो तो भी समझ में आता है लेकिन आप सरकार जो तरीक़ा अपना रही है उसे ग़ैर-क़ानूनी और अनैतिक कहा जा सकता है। हैरानी की बात यह है कि चुनाव आयोग या सुप्रीम कोर्ट इन वादों पर कान नहीं धरते और मूक दर्शक बने रह जाते हैं।

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