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'फ्रीडम ऑफ स्पीच' विदेशियों को नहीं हासिल सुरक्षा

'फ्रीडम ऑफ स्पीच' विदेशियों को नहीं हासिल सुरक्षा

ट्विटर ने अपने पक्ष में तर्क दिया कि किसी ट्वीट विशेष के लिए अकाउंट हटाने का केंद्र का निर्देश आईटी एक्ट की धारा 69 ए के खिलाफ है, साथ ही आर्टिकल 14 में निहित समानता के अधिकार का भी उल्लंघन है।

केंद्र सरकार ने गुरुवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय में हुई सुनवाई में कहा कि अमेरिका स्थित माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर इंक, भारत के संविधान के आर्टिक 19 के तहत सुरक्षा की मांग नहीं कर सकता है। यह अनुच्छेद केवल भारतीय नागरिकों और संस्थाओं को ही भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, विदेशियों को नहीं।

केंद्र सरकार ने यह जवाब ट्विटर द्वारा दायर उस याचिका के जवाब में दिया है जिसमें ट्विटर इंक ने 2 फरवरी, 2021 से 28 फरवरी, 2022 तक केंद्र द्वारा जारी ब्लॉकिंग के आदेशों की एक श्रृंखला को चुनौती देते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। ट्विटर द्वारा दायर याचिका कहा गया था कि सरकार के आदेश 'मनमाने' हैं, क्योंकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म कंटेट जेनरेट करने वाले को पूर्व सूचना देने में विफल रही है।

सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (दक्षिण) आर शंकरनारायणन ने उच्च न्यायालय में कहा, " ट्विटर किसी भी प्रकार की राहत का हकदार नहीं हैं। मामले की सुनवाई 10 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी गई है।

ट्विटर ने अपने पक्ष में तर्क दिया कि किसी ट्वीट विशेष के लिए अकाउंट हटाने का केंद्र का निर्देश आईटी एक्ट की धारा 69 ए के खिलाफ है, साथ ही आर्टिकल 14 में निहित समानता के अधिकार का भी उल्लंघन है।

आर शंकरनारायणन ने ट्विटर के जवाब में कहा कि जब भी ट्विटर से अकाउंट होल्टर की पहचान करने के लिए कहा गया, कंपनी ने अपनी गोपनीयता नियमों का हवाला देकर ऐसा करने से मना कर दिया। अपने पक्ष में तर्क देते हुए उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति पाकिस्तान सरकार का फर्जी  अकाउंट खोलक 'भारत के कब्जे वाले कश्मीर' जैसा ट्वीट करता है या फिर कोई कहे कि लिट्टे नेता प्रभाकरण जिंदा है, तो इससे खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है जो हिंसा भड़का सकती है।

शंकरनारायणन ने कहा कि आनुपातिकता का सिद्धांत (कुछ परिणाम हासिल करने के लिए जरूरत से ज्यादा कठोर कार्रवाई नहीं करना) बदल गया है और इसे स्ट्रेटजैकेट फॉर्मूले के तौर पर लागू नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि यहां तक कि उच्चतम न्यायालय ने भी माना है कि जिन मामलों में उसने फैसला सुनाया है, कि अकाउंट होल्डर की पहचान की जानी चाहिए।

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