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अगली सरकार के लिए चुनौती होगा महँगाई से निपटना

अगली सरकार के लिए चुनौती होगा महँगाई से निपटना

देश की अगली सरकार के लिए खाद्य पदार्थों को महँगा होने से रोकना एक बड़ी चुनौती होगा। पिछले कुछ महीनों में कृषि उत्पादों की क़ीमतों में बढ़ोतरी हुई है।

भले ही इस बार के लोकसभा चुनाव में महँगाई के मुद्दे को लेकर बहस नहीं हुई हो लेकिन देश की अगली सरकार के लिए खाद्य पदार्थों को महँगा होने से रोकना एक बड़ी चुनौती होगा। पिछले कुछ महीनों में कृषि उत्पादों की क़ीमतों में बढ़ोतरी हुई है और इसके लिए पश्चिम और दक्षिण भारत के बड़े हिस्से में पड़ा सूखा ज़िम्मेदार है। हालाँकि बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में खाद्य पदार्थों की क़ीमतें नियंत्रण में रही हैं।

इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक़, शुक्रवार को दावणगेरे (कर्नाटक) में मक्के का औसत कारोबार 2,010 रुपये प्रति क्विंटल था, जबकि एक साल पहले यह 1,120 रुपये था। इसी तरह, ज्वार और बाजरा क्रमश: जलगाँव (महाराष्ट्र) में 2,750 रुपये प्रति क्विंटल (1,600 रुपये) और चोमू (राजस्थान) में 1,900 रुपये प्रति क्विंटल (1,100 रुपये) में बिक रहे हैं।

ऑनलाइन किराना बाज़ार बिग बास्केट डॉट कॉम के प्रमुख (फल और सब्जियाँ) विपुल मित्तल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, मार्च के बाद से बागवानी उत्पादों की औसत क़ीमत साल-दर-साल 13-15 फ़ीसदी बढ़ी है। इसी तरह, कर्नाटक के कोलार बाजार में टमाटर की वर्तमान क़ीमत 2,000 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि पिछले साल यह 580 रुपये थी। जबकि लासलगाँव (महाराष्ट्र) में प्याज प्रति क्विंटल 655 रुपये से बढ़कर 850 रुपये हो गया है। यहाँ तक ​​कि गर्मी के मौसम की सब्जियाँ जैसे कि ओकरा, लौकी और करेला की भी थोक क़ीमत पिछले साल की तुलना में 36-39 प्रतिशत अधिक है।

सबसे बड़ी मुश्किल दूध को लेकर है। क्योंकि मवेशियों के खाने से जुड़ी चीजें पिछले साल से भी ज़्यादा महँगी हो गई हैं। इसमें मकई और चावल की भूसी (खली) के अलावा साफ़ चावल भी हैं।

मकई और चावल की भूसी के दाम 8,950 रुपये प्रति टन से बढ़ कर 14,350 रुपये प्रति टन तक हो गए हैं। दूसरी ओर साफ़ चावल 16,750 रुपये से बढ़ कर 20,350 रुपये प्रति टन हो गया है। इसके अलावा शीरे की क़ीमत 3,950 रुपये से 7,200 रुपये और ग्वार चूरी 20,000 से 23,650 रुपये प्रति टन हो गया है। इसके अलावा नवंबर-जनवरी के बाद से कपास के तेल के भाव 19,000-22,000 रुपये से बढ़कर 27,500 रुपये प्रति टन हो गए हैं।मई 2014 में जब एनडीए सरकार सत्ता में आई थी तो वार्षिक उपभोक्ता खाद्य मुद्रास्फ़ीति लगभग दो अंकों में थी। 2016 के अंत तक यह एकल अंक में आ गई थी। कृषि से जुड़ी परेशानियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अगर खाद्य पदार्थ महँगे होते हैं तो अगली सरकार, भले ही वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बने, उसे काफ़ी तेज़ फ़ैसले लेने होंगे।

इससे पहले मार्च में लोकसभा चुनाव से पहले आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार को झटका लगा था। तब ख़ुदरा महँगाई दर बढ़कर 4 महीने के उच्च स्तर पर पहुँच गई थी और देश की औद्योगिक उत्पादन दर जनवरी 2019 में पिछले वर्ष की समान अवधि के 7.5 फ़ीसदी से घटकर 1.7 फ़ीसदी हो गई थी। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आधिकारिक आँकड़ों में कहा गया था कि माह-दर-माह आधार पर औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) की वृद्धि दर में भी गिरावट आयी है।

अप्रैल में थोक महंगाई के आँकड़ों में इज़ाफ़ा हुआ था। यह मार्च में बढ़कर 3.18 फ़ीसदी पर पहुँच गई थी जो कि फ़रवरी में 2.93 फ़ीसदी पर थी। तब थोक महँगाई में इज़ाफ़े की सबसे बड़ी वजह खाने-पीने के वस्तुओं और ईंधन की क़ीमतों में तेज़ी को बताया गया था।

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