पांच राज्यों में चुनाव के कारण यदि महामारी फैल गई तो…?
नई महामारी ओमिक्रॉन भारत में अभी तक वैसी नहीं फैली है, जैसी कि कोरोना की महामारी दूसरी लहर के दौरान फैल गई थी। फिर भी दुनिया के विकसित देशों में उसने काफी जोर पकड़ लिया है। भारत के अधिकतर राज्यों में 400 से ज़्यादा मामले सामने आ चुके हैं। अभी महामारी चाहे न फैली हो लेकिन उसका डर फैलता जा रहा है। कई राज्य सरकारों ने रात का कर्फ्यू लागू कर दिया है और कुछ ने दिन में भीड़-भाड़ पर भी तरह-तरह के प्रतिबंध लगा दिए हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तो यहां तक कह दिया है कि उत्तरप्रदेश के चुनावों को अभी टाल दिया जाए तो बेहतर होगा।
दिल्ली के उच्च न्यायालय ने भी सरोजनी नगर के बाजारों की भीड़ पर चिंता व्यक्त की है। असलियत तो यह है कि पिछले कई माह से घरों में कैद लोग अब दुगुने उत्साह से बाहर निकल रहे हैं। डर यही है कि चुनावों के दौरान होनेवाली विशाल जनसभाओं में कहीं लाखों लोग इस नई महामारी के शिकार न हो जाएं। हमारे नेता भी गजब कर रहे हैं।
वे बाजारों, शादियों और अन्य समारोहों में तो 200 लोगों की पाबंदियां लगा रहे हैं लेकिन वोटों के लालच में वे दो-दो लाख की सभाओं को खुद आयोजित करेंगे।
पश्चिम बंगाल और बिहार में हुए चुनावों के दौरान यही हुआ। लाखों लोग कोरोना की चपेट में आ गए। अब उप्र, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के चुनाव सिर पर हैं। इन राज्यों में चुनाव का पूरा इंतज़ाम करने में चुनाव आयोग जुटा हुआ है। मुख्य चुनाव आयुक्त आजकल इन राज्यों के दौरे भी कर रहे हैं।
इसमें शक नहीं कि निष्पक्ष और प्रामाणिक चुनाव-प्रक्रिया की तैयारी काफी अच्छी है लेकिन पांच राज्यों में इस चुनाव के कारण यदि महामारी फैल गई तो आम जनता को भयंकर परेशानी का सामना करना पड़ेगा।
यह ठीक है कि देश के ज़्यादातर लोगों को टीका लग चुका है लेकिन उन लोगों में से भी कई नई महामारी के शिकार हो चुके हैं। सभी पार्टियाँ चाहेंगी कि चुनाव निश्चित समय पर ज़रूर हों, क्योंकि एक तो चुनाव के दौरान उन पर नोटों की झड़ी लगी रहती है, उनकी नेतागीरी का चस्का भी पूरा होता है और उन्हें जीतकर सरकार बनाने की ललक भी चढ़ी रहती है।
उक्त पांच राज्यों में से चार में बीजेपी की सरकारें हैं। उनकी खास ज़िम्मेदारी है। यदि वे सब मिलकर चुनाव आयोग से आग्रह करें तो वह इन चुनावों को 4-6 माह के लिए स्थगित कर सकता है। इस बीच राज्यों में राष्ट्रपति शासन या कार्यकारी मुख्यमंत्री की नियुक्ति भी हो सकती है। यों भी चुनाव आयेाग को अधिकार है कि वह आत्मनिर्णय के आधार पर चुनावी तारीखों को आगे खिसका सकता है।
यदि महामारी लंबी खींच जाती है तो उसका भी हल खोजा जा सकता है। भारत में लगभग 90 करोड़ लोगों के पास मोबाइल फोन और इंटरनेट की सुविधा है। आजकल डिजिटल तकनीक इतनी विकसित हो गई है कि लोग घर बैठे मतदान कर सकते हैं। फ़िलहाल, बेहतर तो यही होगा कि इन प्रांतीय चुनाव को अभी टाल दिया जाए।
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)