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'जिस दिन घर लौटना तय था उस दिन शहीद होने की ख़बर मिली'

'जिस दिन घर लौटना तय था उस दिन शहीद होने की ख़बर मिली'

किसी को अपने पिता के लौटने का इंतज़ार था तो किसी को अपने बेटे का। किसी को अपने पति का तो किसी को अपने भाई और दोस्त का। जब आख़ीरी बार बातें हुई थीं तो जल्द लौटने का वादा किया था। वे लौटे भी। लेकिन तिरंगे में लिपटे हुए। 

किसी को अपने पिता के लौटने का इंतज़ार था तो किसी को अपने बेटे का। किसी को अपने पति का तो किसी को अपने भाई और दोस्त का। जब आख़ीरी बार बातें हुई थीं तो जल्द लौटने का वादा किया था। घरवाले इंतज़ार में थे। वे लौटे भी। लेकिन तिरंगे में लिपटे हुए। लौटे उस गौरव और सम्मान के साथ जिसे हर देशवासी पाना चाहता है। अपनी मातृभूमि के लिए ख़ुद को क़ुर्बान तक कर देने का गौरव। 

आँसुओं के साथ यही गौरव उन पाँचों शहीदों के परिवार के लोगों में है जो जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए। परिवारों को अपनों को खोने का दुख है तो देश के लिए जान तक न्यौछावर कर देने का गर्व भी। उन सभी परिवारों की अलग-अलग कहानियाँ हैं।

कर्नल आशुतोष शर्मा 

हंदवाड़ा में शहीद हुए 21 राष्ट्रीय राइफ़ल्स के कमांडिंग अफ़सर कर्नल आशुतोष शर्मा (44) की पत्नी पल्लवी शर्मा कहती हैं उनको रविवार को फ़ोन आया, लेकिन उनको इसकी आशंका पहले से ही हो गई थी। 'द इंडियन एक्सप्रेस' से बातचीत में उन्होंने कहा, 'मैं उनसे संपर्क नहीं कर पा रही थी। यूनिट में कॉल किया तो पता चला कि वह कहीं फँसे हुए हैं। किसी के कहीं फँसे होने पर जब इतना अधिक समय गुज़र जाए तो लगता है कि कुछ गड़बड़ है।' कर्नल शर्मा से उनके बड़े भाई पीयूष और उनकी माँ ने आख़िरी बार एक मई को तब बात की थी जब 21 राष्ट्रीय राइफ़ल्स का 26वाँ रेजिंग डे कार्यक्रम था। पल्लवी आख़िरी बार उनसे 28 फ़रवरी को तब मिली थीं जब उन्हें जम्मू के उधमपुर में एक समारोह में बहादुरी के लिए सेना मेडल से सम्मानित किया गया था। 

पीयूष यह कहते हुए रो पड़े कि उन्होंने ऐसा नहीं सोचा था कि वह अपने भाई से इस तरह मिलेंगे। उन्होंने कहा, 'उसने वादा किया था कि वह जल्द ही लौटेगा। वास्तव में वह आ रहा है, लेकिन तिरंगे में लिपटे हुए।' पीयूष ने कहा कि वह भी सेना में शामिल होना चाहते थे लेकिन घर की मजबूरियों के कारण ऐसा नहीं कर सके। आशुतोष की 12 वर्षीय बेटी कहती हैं कि वह भी अपने पिता की तरह सेना में शामिल होंगी। 

मेजर अनुज सूद 

आतंकवादियों के ख़िलाफ़ अभियान में शहीद हुए मेजर अनुज सूद (30) के परिवार को उस दिन उनके शहीद होने की ख़बर मिली जिस दिन उनको घर लौटना तय था। छह महीने पहले वह घर आए थे। अनुज के पिता ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) सी के सूद ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, 'उन्होंने मार्च में जम्मू-कश्मीर में दो साल तक रहने का अपना कार्यकाल पूरा कर लिया था। वह एक महीने तक घर पर छुट्टी पर रहने वाले थे और फिर उनकी ड्यूटी पंजाब के गुरदासपुर में लगाई गई थी।' 

अपने पिता से आख़िरी बार जब शनिवार को बात हुई थी तब मेजर अनुज ने कहा था कि वह एक ऑपरेशन पर जा रहे हैं और वह दो आतंकवादियों का पीछा कर रहे हैं। नम आँखों से सी के सूद कहते हैं कि अनुज की ढाई साल पहले शादी हुई थी और इस दौरान मुश्किल से 2-3 महीने ही अपनी पत्नी आकृति के साथ समय बिताया था। पुणे की एक निजी कंपनी में काम करने वाली आकृति ने हाल ही में इसलिए नौकरी छोड़ दी ताकि वह अनुज के साथ रह सकें जब उनकी पोस्टिंग गुरदासपुर में हो। 

ब्रिगेडियर सूद अपने बेटे पर गर्व करते हैं और कहते हैं, 'कुछ करके गया है वह। देश का बेटा था, देश के नाम हो गया। युद्ध है तो बलिदान भी है। इस काम में कोई डर नहीं है।'

सब-इंस्पेक्टर सागीर अहमद पठान

आतंकी हमले में शहीद हुए जम्मू-कश्मीर पुलिस के सब-इंस्पेक्टर सागीर अहमद पठान (42) के परिवार में उनके माता-पिता, उनकी पत्नी और चार बच्चे हैं। बहादुरी के लिए 2009 में उन्हें शेर ए कश्मीर पुलिस मेडल और 2011 में राष्ट्रपति द्वारा पुलिस मेडल दिया गया था। शानदार काम के लिए उन्हें उम्मीद से बढ़कर तीन बार तरक्की दी गई थी और कॉन्स्टेबल से सब-इन्स्पेक्टर बनाया गया था। वह घाटी में आतंकवाद विरोधी कई अभियानों में शामिल रहे थे। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा है कि पठान देश की एकता व स्वायत्तता और लोगों की हित की आख़िरी साँस तक रक्षा करते हुए शहीद हुए हैं। 

नायक राजेश कुमार

आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए नायक राजेश कुमार अपने परिवार में पाँच भाई-बहनों में से एक थे। उनका परिवार पंजाब के मनसा ज़िले के राजराना गाँव में रहता है। जब राजेश के शहीद होने की ख़बर उनके भाई सुभाष कुमार को मिली तब उन्होंने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से कहा था, 'अपने माता-पिता को यह ख़बर भी नहीं दी है। वे यह आघात नहीं सह सकेंगे। हम उनके सामने रो भी नहीं पा रहे हैं।'

राजेश क़रीब 10 साल पहले सेना में शामिल हुए थे। उनके परिवार के पास एक एकड़ से भी कम ज़मीन है इसलिए बटाई यानी साझे में दूसरे की ज़मीन पर खेती कर परिवार गुज़ारा करता है। परिवार राजेश की तनख़्वाह पर निर्भर था। उनकी दो बहनों की शादी हो चुकी है लेकिन भाइयों की अभी तक नहीं हुई है।

लान्स नायक दिनेश सिंह 

शहीद होने वालों में 24 वर्षीय लान्स नायक दिनेश सिंह भी थे। वह सेना के एक सेवानिवृत्त सुबेदार के बेटे थे। उत्तराखंड के अलमोड़ा ज़िले के मिरगाँव में रहने वाले उनके परिवार में उनके पिता गोधन सिंह, माता और दो बड़ी बहनें हैं। परिवार में इस साल दिनेश की शादी करने की तैयारी थी और घर वाले लड़की ढूँढ रहे थे। लेकिन इस बीच परिवार को देश के लिए दिनेश के शहीद होने की ख़बर आ गई।

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