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इन पाँच मुद्दों पर लड़ा जाएगा 2019 का महासमर

इन पाँच मुद्दों पर लड़ा जाएगा 2019 का महासमर

लोकसभा चुनाव 2019 की घोषणा हो गई है। बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए, कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन चुनाव मैदान में हैं। देखते हैं कि कौन-कौन से मुद्दे इस चुनाव में अहम रहेंगे। 

लोकसभा चुनाव 2019 की घोषणा हो गई है। देश में राजनीति का ज्वार चरम पर है और बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए, कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन चुनाव मैदान में उतर रहा है। प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद लगाए बैठे कुछ नेता तीसरा मोर्चा बनाने में जुटे हैं। विपक्ष की कोशिश है कि किसी भी तरह बीजेपी की सरकार को सत्ता से हटाया जाए। 

पिछले कुछ समय में विपक्षी नेता कई मंचों पर अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कर चुके हैं। ममता बनर्जी की ओर से कोलकाता में हुई रैली में तमाम विपक्षी नेता मंच पर जुटे थे और मोदी सरकार को सत्ता से उखाड़ने का आह्वान किया था। ये सभी नेता बेरोज़गारी, किसानों की समस्याओं, राष्ट्रवाद, रफ़ाल आदि मुद्दों को लेकर मोदी सरकार को घेरते रहे हैं। आइए बात करते हैं कि वे कौन से मुद्दे हैं जो इस बार के लोकसभा चुनाव में हावी रहेंगे। 

 - Satya Hindi

राष्ट्रवाद पर आमने-सामने दोनों दल 

पुलवामा हमले के बाद एक बार फिर राष्ट्रवाद मुख्य मुद्दा बन चुका है। कुछ विपक्षी नेताओं की ओर से बालाकोट हमले के सबूत माँगने को लेकर बीजेपी और नरेंद्र मोदी विपक्ष पर लगातार हमलावर हैं। बीजेपी ने इस मुद्दे को प्रमुख चुनावी मुद्दा बना लिया है। पार्टी के सभी नेता विपक्ष को राष्ट्रवाद के मुद्दे पर घेर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी अपनी रैलियों में बार-बार यह सवाल उठा रहे हैं कि सेना से आख़िर उसके पराक्रम का सबूत क्यों माँगा जा रहा है। प्रधानमंत्री और बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस के नेता पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी जवानों के पराक्रम और सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिकरण करने पर तुली हुई है और लोकसभा चुनाव में इसका लाभ लेना चाहती है। 

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रफ़ाल को लेकर हमलावर हैं राहुल

लड़ाकू विमान रफ़ाल को लेकर फ़्रांस से हुए सौदे में घोटाले का आरोप लगाकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ख़ासे हमलावर हैं। पिछले एक साल में कई मौक़ों पर राहुल गाँधी प्रेस कॉन्फ़्रेंस करके नरेंद्र मोदी को इस मुद्दे पर घेरते रहे हैं। अंग्रेजी अख़बार ‘द हिंदू’ में इस मुद्दे को लेकर छपी ख़बरों के बाद राहुल ने अपना हमला और तेज़ किया है। राहुल ने लगभग सभी रैलियों में ‘चौकीदार चोर है’ का नारा बुलंद किया है। कांग्रेस के अलावा अन्य विपक्षी दल भी रफ़ाल सौदे में गड़बड़ी का आरोप लगाकर मोदी सरकार पर सवाल उठाते रहे हैं। इस चुनाव में यह बेहद अहम मुद्दा साबित हो सकता है।  

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सड़क पर उतर चुके हैं किसान 

पिछले 5 सालों में कई मौक़ों पर किसान अपनी नाराज़गी जता चुके हैं। दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र तक में किसान सड़कों पर उतर चुके हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में किसानों की कर्ज़माफ़ी एक बड़ा मुद्दा बना था। कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आई तो 10 दिन में किसानों का कर्ज़ माफ़ करेगी। इसका ख़ासा असर हुआ और तीनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी। उसके बाद मोदी सरकार ने अंतरिम बजट में छोटे किसानों के खाते में हर साल 6000 रुपये ट्रांसफ़र करने का एलान किया। किसानों का रुख इस चुनाव के नतीजों को काफ़ी हद तक प्रभावित करेगा। विपक्ष सरकार पर आरोप लगाता रहा है कि मोदी सरकार में किसानों के आत्महत्या करने की घटनाएँ बढ़ी हैं। किसानों की सबसे बड़ी माँग कर्ज़ माफ़ी को उचित तरीक़े से लागू करने की है। साथ ही किसान स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की भी माँग उठा रहे हैं। 

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राम मंदिर पर वादाख़िलाफ़ी का आरोप

राम मंदिर भी एक चुनावी मुद्दा बनेगा। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यह मामला मध्यस्थों को सौंप दिया था। बीजेपी लगातार आरोपी लगाती रही है कि कांग्रेस की वजह से यह मामला लटकता जा रहा है। दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी सिर्फ़ चुनाव के समय यह मुद्दा उठाती है और हिंदू मतों के ध्रुवीकरण की कोशिश करती है। जल्द राम मंदिर बनाने की माँग कर रहे हिंदू संगठनों ने मोदी सरकार के ख़िलाफ़ तब मोर्चा खोला था जब प्रधानमंत्री ने एक इंटरव्यू में इस मामले में अदालत के फ़ैसले का इंतज़ार करने की बात कही थी। इसके बाद हिंदू संगठनों की ओर से सरकार पर अध्यादेश लाने के लिए दबाव बनाया था। लेकिन सरकार अध्यादेश नहीं लाई। फ़िलहाल संघ ने यह मुद्दा ठंडे बस्ते में डाल दिया है। हिंदू संगठनों ने आरोप लगाया था कि बीजेपी ने राम मंदिर बनाने का वादा पूरा नहीं किया। 

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बेरोज़गारी पर जवाब देना मुश्किल

बेरोज़गारी को लेकर विपक्षी दल मोदी सरकार पर जमकर हमला बोलते रहे हैं। हाल ही में एक अंग्रेजी अख़बार में नेशनल सैंपल सर्वे ऑफ़िस (एनएसएसओ) के आंकड़े छपने के बाद तमाम दल मोदी सरकार पर टूट पड़े थे। फ़जीहत होती देख सरकार को कहना पड़ा था कि यह ड्राफ़्ट रिपोर्ट थी फ़ाइनल आंकड़े नहीं। अख़बार में छपी ख़बर के मुताबिक़, देश में बेरोज़गारी दर 45 साल में सबसे ज़्यादा हो गई है। विपक्ष लगातार पूछता रहा है कि मोदी ने 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान दो करोड़ रोज़गार हर साल देने का जो वादा किया था, उसका क्या हुआ। रोज़गार के घटते मौक़ों को लेकर भारतीय उद्योग परिसंघ यानी (कनफ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज़) सीआईआई ने कहा है कि बीते चार साल में लघु व सूक्ष्म उद्योगों में सिर्फ़ 3 लाख नई नौकरियाँ बनीं है। ‘ऑल इंडिया मैन्युफ़ैक्चरर्स ऑरगनाइज़ेशन' (आइमो) ने पिछले साल अक्टूबर में किए एक सर्वेक्षण के बाद दावा किया था कि नोटबंदी और जीएसटी ने 43% ग़रीबों का रोज़गार छीन लिया है। मोदी सरकार को चुनाव में इसका जवाब देना मुश्किल साबित हो सकता है। 

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