फ़िरोज़पुर में तय होगा सुखबीर बादल का राजनीतिक भविष्य
शिरोमणि अकाली दल प्रमुख सुखबीर बादल इस बार फ़िरोज़पुर में अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं। इस चुनाव में उनका राजनीतिक भविष्य तय हो जायेगा। चूँकि बढ़ती उम्र के साथ अब शिरोमणि अकाली दल के रणनीतिक बैठकों में प्रकाश सिंह बादल ने शिरकत करनी छोड़ दी है, लिहाज़ा अब एक तरह से सुखबीर ही शिरोमणि अकाली दल के सर्वेसर्वा हैं। बादल परिवार के दो चेहरे ख़ुद सुखबीर और उनकी पत्नी हरसिमरत कौर अपनी किस्मत चुनाव में आज़मा रहे हैं। हरसिमरत कौर बादल बठिंडा से चुनाव लड़ रही हैं, जबकि सुखबीर फ़िरोज़पुर में डटे हैं।
अकाली दल बादल के पास हालाँकि संसाधनों की कोई कमी नहीं है, लेकिन इस बार गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी व बहिलाकलां कांड उनके लिये सिरदर्द बना हुआ है। वहीं पार्टी में हुई बग़ावत ने भी उन्हें परेशान कर रखा है।
अकाली दल दो फाड़ हो चुका है। शिरोमणि अकाली दल ‘टकसाली’ के बन जाने से पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के वोट बैंक पर चोट पहुँची है। फ़िरोज़पुर में तो एक बड़ा तबक़ा जो पहले उनके साथ था, वह अब कांग्रेसी बन गया है। बीजेपी के साथ समझौते में सुखबीर दस सीटें लेने में कामयाब रहे हैं। लिहाज़ा यह चुनाव उनके लिये ख़ास मायने रखता है। सबसे पहले उन्हें अपनी जीत सुनिश्चित करनी होगी।
सुखबीर बादल के मैदान में उतरने से फ़िरोज़पुर में चुनावी लड़ाई रोचक हो गई है। सुखबीर के सामने मुक़ाबले में खड़े कांग्रेस प्रत्याशी शेर सिंह घुबाया पिछले साल तक अकाली दल में ही थे। लेकिन वह सुखबीर के साथ मतभेदों के चलते पार्टी छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गये हैं। शेर सिंह लगातार दो बार इस सीट से जीतते आ रहे हैं। घुबाया ने इससे पहले कांग्रेस के नेताओं जगमीत बराड़ और सुनील जाखड़ को मात दी है। हालाँकि इस बार टिकट न मिलने से राणा गुरमीत सोढ़ी सहित दूसरे नेता अभी पार्टी प्रत्याशी शेर सिंह घुबाया के समर्थन में खुलकर सामने नहीं आ पा रहे हैं।
पंजाब की सभी संसदीय सीटों में से फ़िरोज़पुर अकेली ऐसी सीट है जहाँ 34 सालों से कांग्रेस का उम्मीदवार नहीं जीत सका। कुल 15 चुनावों में 8 बार अकाली दल, 4 बार कांग्रेस, 2 बार बीएसपी, 1 बार अकाली दल मान के उम्मीदवार को जीत नसीब हुई है।
1985 में अंतिम बार कांग्रेस के गुरदयाल सिंह ढिल्लों ने यह सीट जीती थी, जबकि उसके बाद हुए 8 चुनावों में कांग्रेस के लिए यह सीट दूर की कौड़ी बनी रही।
शेर सिंह घुबाया की ताक़त
कांग्रेस प्रत्याशी शेर सिंह घुबाया का जन्म 10 जून 1962 को फिरोजपुर में हुआ। घुबाया ने अकाली दल में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया। पहले वह 1997 और फिर 2007 में जलालाबाद से विधायक बने। 2008 में उन्होंने जलालाबाद से सुखबीर सिंह बादल के लिए सीट खाली करने के लिए इस्तीफ़ा दे दिया था। पार्टी ने ईनाम के तौर पर उनको 2009 में फ़िरोज़पुर लोकसभा से टिकट दिया था जहाँ उन्होंने जगमीत सिंह बराड़ को हराया। 2014 में दूसरी बार उन्होंने सुनील जाखड़ को फ़िरोज़पुर संसदीय सीट से हराया। घुबाया ख़ुद 2002 में एक बार जलालाबाद से हंस राज जोसन के मुक़ाबले विधायक का चुनाव हार गए थे। उनके पुत्र दविन्दर सिंह घुबाया फाजिल्का से विधायक हैं और पंजाब में सबसे कम उम्र के विधायक हैं।
लंबा रहा है सुखबीर बादल का राजनीतिक सफर
सुखबीर बादल का जन्म 9 जुलाई 1962 में फरीदकोट में हुआ। सुखबीर बादल ने साल 1996 में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी, जहाँ उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार कँवलजीत कौर के ख़िलाफ़ फरीदकोट से लोकसभा का चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में सुखबीर बादल ने जीत दर्ज की थी। दूसरी बार सुखबीर बादल ने कांग्रेस के उम्मीदवार जगमीत सिंह बराड़ के ख़िलाफ़ जीत दर्ज की थी। 1999 में सुखबीर बादल को जगमीत बराड़ ने हरा दिया था। सुखबीर 2001 से 2004 दौरान राज्यसभा सदस्य भी रह चुके हैं। 2004 में सुखबीर ने फरीदकोट से कांग्रेस उम्मीदवार करण कौर बराड़ को हराया था।
उप-मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं सुखबीर
साल 2008 में सुखबीर शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष बने। 2009 में उनको पंजाब के उप-मुख्यमंत्री के तौर पर नियुक्त किया गया था। उस समय सुखबीर पंजाब विधानसभा के सदस्य नहीं थे लेकिन उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए और दूसरे विवादों के कारण 6 महीने की मियाद पूरी होने के बाद ही इस ओहदे से इस्तीफ़ा दे दिया था। 2009 में उन्होंने जलालाबाद से विधानसभा क्षेत्र से उप-चुनाव लड़ा और फिर से अगस्त 2009 में उप-मुख्यमंत्री बने। वह 2017 तक उप-मुख्यमंत्री पद पर रहे। 2012 में सुखबीर फिर जलालाबाद से चुने गए और उप-मुख्यमंत्री बने। 2017 के विधानसभा चुनाव में सुखबीर बादल ने जलालाबाद से आप के उम्मीदवार भगवंत मान और कांग्रेस के उम्मीदवार रवनीत बिट्टू को हराया था। इस दौरान सुखबीर को 75271 वोट मिले थे, जबकि भगवंत मान को 56771 वोट मिले थे। सुखबीर बादल इस समय जलालाबाद से विधायक भी हैं।