हाथरस: चंद्रशेखर पर महामारी व धारा 144 में केस दर्ज क्यों किया गया?
हाथरस जाने की कोशिश में लगे भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद रावण और 400-500 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ महामारी एक्ट और आईपीसी की धाराओं में एफ़आईआर दर्ज की गई है। ऐसे ही केस राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी सहित 200 लोगों के ख़िलाफ़ भी तब दर्ज किए गए थे जब दोनों चार दिन पहले हाथरस जाने की कोशिश में थे। इन सभी मामलों में मुख्य तौर पर दो आरोप लगाए गए। एक कोरोना संक्रमण को लेकर महामारी एक्ट यानी महामारी फैलने की आशंका का आरोप। और दूसरा पाँच से ज़्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर क़ानून व्यवस्था बिगड़ने के ख़तरा का आरोप। लेकिन सवाल है कि क्या हाथरस और उसके आसपास के गाँवों में अब क़रीब हर रोज़ हो रही पंचायतों व सभाओं में सैकड़ों लोगों के इकट्ठा होने पर संक्रमण फैलने का डर नहीं है, क़ानून व्यवस्था बिगड़ने का डर नहीं है
दरअसल, इन दोनों ही मामलों में एक बड़ा अंतर है। चंद्रशेखर आज़ाद, राहुल, प्रियंका हाथरस की उस पीड़िता के परिवार से मिलना चाह रहे थे जिसको न्याय दिलाने की माँग पूरे देश भर में उठ रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार की इससे किरकिरी हो रही है। दूसरी तरफ़ पंचायत या सभाएँ उन लोगों की हो रही हैं जो हाथरस गैंगरेप मामले में आरोपियों के पक्ष में खड़े हैं। इन पंचायतों के जो वीडियो सामने आए हैं उनमें से कई में तो पुलिसकर्मी भी पहरा देते दिख रहे हैं। यहीं पर सवाल खड़ा होता है।
सवाल यह है कि जब आरोपियों के समर्थन में खड़े लोगों द्वारा सभा किए जाने से कोई ख़तरा नहीं है तो दलित पीड़िता के परिवार को न्याय दिलाने की माँग करने वाले चंद्रशेखर से कैसा ख़तरा
चंद्रशेखर आज़ाद और 400-500 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर उस मामले में दर्ज किया गया है जिसमें वे रविवार को मृतक युवती के परिजनों से मिलने के लिए उनके घर गए थे। इस दौरान बड़ी संख्या में समर्थक भी उनके साथ थे। पुलिस प्रशासन से भी नोंकझोंक हुई थी। चंद्रशेखर ने योगी सरकार और हाथरस के ज़िलाधिकारी की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा है कि उन्हें सीबीआई जाँच पर भरोसा नहीं है और इस मामले की सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त दो जजों की निगरानी में जाँच कराई जानी चाहिए।
इसके बाद आज चंद्रशेखर के ख़िलाफ़ जो एफ़आईआर दर्ज कराई गई है उसमें उन पर महामारी एक्ट के साथ ही सीआरपीसी की धारा 144 के उल्लंघन का आरोप भी है।
इससे पहले राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी के ख़िलाफ़ भी तब एफ़आईआर दर्ज कराई गई थी जब वे अपने समर्थकों के साथ हाथरस जाने के प्रयास में थे। तब उनको बीच में ही रोक दिया गया था, पुलिस के साथ धक्का-मुक्की हुई थी। दोनों को हिरासत में ले लिया गया था। इस मामले के बाद एक अक्टूबर को ही राहुल, प्रियंका के अलावा 200 पार्टी कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ महामारी एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था। उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन नहीं किया और फ़ेस मास्क नहीं पहना था। इसके अलावा आईपीसी की धारा 188 (सरकारी आदेश का पालन नहीं करना) सहित कई धाराएँ लगाई गई थीं।
अब देखिए कि हाथरस मामले के आरोपियों का समर्थन करने वाले क्या कर रहे हैं। हाथरस के आसपास के कई गाँवों की पंचायत होने के बाद अब इसी गाँव का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें सवर्ण समाज के लोग भारी भीड़ के साथ बैठक कर रहे हैं। वीडियो में बड़ी संख्या में लोग भी दिख रहे हैं और यह पीड़िता के घर से कुछ किमी की दूरी पर ही हो रही है। रिपोर्टों के अनुसार, क़रीब 500 लोग इस बैठक में शामिल हुए। दोषियों के परिजन भी इस बैठक में आए। वे खुलकर दोषियों के साथ खड़े हैं और उनका कहना है कि दलित युवती की मौत ऑनर किलिंग का मामला है। हालाँकि इस मामले में अभी तक न तो महामारी एक्ट में कोई कार्रवाई हुई है और न ही धारा 144 या अन्य किसी क़ानून के तहत।
देखिए, चंद्रशेखर आज़ाद का इंटरव्यू
सवर्ण समाज की यह बैठक जब हो रही थी तब रविवार को ही पुलिस ने ज़्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज कर दिया था। इसको लेकर योगी सरकार को सोशल मीडिया पर भी जमकर निशाना बनाया गया।
योगी सरकार समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के कार्यकर्ताओं पर लाठी चार्ज करने के लिए निशाने पर थी ही कि अब चंद्रशेखर और उनके समर्थकों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने की ख़बर आई है। वैसे, योगी सरकार चंद्रशेखर आज़ाद रावण के ख़िलाफ़ काफ़ी आक्रामक रही है और चंद्रशेखर आज़ाद भी सरकार पर हमलावर रहे हैं।
योगी सरकार और चंद्रशेखर आज़ाद के बीच 2017 में सहारनपुर हिंसा के बाद तनातनी काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई है। मई 2017 को सहारनपुर के शब्बीरपुर गाँव में दलित और ठाकुर समुदाय के बीच जातीय हिंसा हुई थी। घटना के बाद चंद्रशेखर का नाम सामने आया था, पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ कई धाराओं के तहत मुक़दमा दर्ज किया था। बाद में उन्हें गिरफ़्तार किया गया था। दो नवंबर 2017 को जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चंद्रशेखर को जमानत दे दी तो उत्तर प्रदेश सरकार ने रासुका लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। बाद में रासुका की अवधि बढ़ा दी गई थी। इसके बाद से चंद्रशेखर और ज़्यादा आक्रामक हो गए हैं और दलितों, अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के मामले को उठाते रहे हैं।