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सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर पर 'राष्ट्र विरोधी एजेंडे' की FIR क्यों?

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर पर 'राष्ट्र विरोधी एजेंडे' की FIR क्यों?

देश में सबसे लंबे समय तक चलने वाले जनांदोलनों में से एक नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता पर बीजेपी शासित मध्य प्रदेश में एफ़आईआर क्यों दर्ज की गई है? जानिए उनपर किसने और क्या आरोप लगाया है।

मध्य प्रदेश पुलिस ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर और 11 अन्य के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है। बड़वानी ज़िले में एक ग्रामीण ने शिकायत की थी। उनपर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने आदिवासी छात्रों की शैक्षिक सुविधाओं के प्रबंधन के लिए जुटाए धन का 'दुरुपयोग राजनीतिक और देश विरोधी एजेंडे' के लिए किया। पाटकर ने आरोपों को खारिज किया है और आरोप लगाया है कि उनके ख़िलाफ़ यह एफ़आईआर एक साज़िश हो सकती है।

मेधा पाटकर पर क्या आरोप लगाया गया है, किसने आरोप लगाया है और एक्टिविस्ट ने इन आरोपों पर प्रतिक्रिया में क्या-क्या कहा है, यह जानने से पहले यह जान लें कि मेधा पाटकर कौन हैं और वह अब तक क्या काम करती रही हैं।

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस से सोशल वर्क में एमए करने वाली मेधा पाटकर को 1985 से पहले बहुत कम ही लोग जानते थे। हालाँकि वह मुंबई की झुग्गियों में बसे लोगों के लिए काम करने वाली संस्थाओं से काफ़ी पहले ही जुड़ गई थीं। लेकिन जब नर्मदा बचाओ आंदोलन शुरू हुआ तो मेधा पाटकर सुर्खियों में आईं।

भारत के चार राज्यों के लिये महत्त्वपूर्ण सरदार सरोवर परियोजना का नर्मदा बचाओ आंदोलन 1985 से विरोध कर रहा है। इसमें पर्यावरणीय, आर्थिक और राजनीतिक मसलों के अलावा इस क्षेत्र के गरीबों और आदिवासियों के पुनर्वास और वन भूमि का मामला सबसे अहम है। नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा इस बांध के विरोध का प्रमुख कारण इसकी ऊँचाई है, जिससे इस क्षेत्र के हज़ारों हेक्टेयर वन भूमि के जलमग्न होने का ख़तरा रहा है।

बताया जाता है कि जब भी इस बांध की ऊँचाई बढ़ाई गई है, तब हज़ारों लोगों को इसके आस-पास से विस्थापित होना पड़ा है तथा उनकी भूमि और आजीविका भी छिनी है। इस आंदोलन की नेता मेधा पाटकर का आरोप है कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद बांध प्रभावितों को न तो मुआवज़ा दिया गया है और न ही उनका बेहतर पुनर्वास किया गया है। 

नर्मदा बचाओ आंदोलन के अलावा भी मेधा पाटकर कई सामाजिक और पर्यावरण संबंधी आंदोलनों में हिस्सा ले चुकी हैं। वह अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में भाग ले चुकी हैं। मध्य प्रदेश में वह आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा के क्षेत्र में करती रही हैं।

अब मध्य प्रदेश में ही उनपर आरोप लगाया गया है। पीटीआई ने पुलिस के हवाले से बताया है कि शिकायतकर्ता टेमला बुजुर्ग गांव के प्रीतमराज बडोले ने आरोप लगाया है कि पाटकर और अन्य ने अपने 'राजनीतिक और राष्ट्र विरोधी एजेंडे' के लिए धन का दुरुपयोग किया। रिपोर्ट के अनुसार बडोले ने आरोप लगाया है कि मुंबई में पंजीकृत एक ट्रस्ट नर्मदा नवनिर्माण अभियान को मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में नर्मदा घाटी के आदिवासी छात्रों के लिए आवासीय शैक्षणिक सुविधाएँ देने के लिए पिछले 14 वर्षों में विभिन्न स्रोतों से 13.50 करोड़ रुपये मिले। उनका दावा है कि इनका दुरुपयोग किया गया। एनडीटीवी ने ख़बर दी है कि शिकायतकर्ता सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा के सदस्य हैं।

रिपोर्ट में पुलिस के हवाले से कहा गया है कि शिकायतकर्ता ने कुछ दस्तावेज भी उपलब्ध कराए हैं। पुलिस ने कहा है कि अब इसकी विस्तृत जाँच की जाएगी। एफ़आईआर में मेधा पाटकर के अलावा परवीन रूमी जहांगीर, विजया चौहान, कैलाश अवस्या, मोहन पाटीदार, आशीष मंडलोई, केवल सिंह वसावे, संजय जोशी, श्याम पाटिल, सुनीत एसआर, नूरजी पड़वी और केशव वसावे के नाम हैं।

एसपी ने कहा कि जांच के दौरान सामने आने वाले तथ्यों के अनुसार आगे कानूनी कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने कहा है कि मामला दो राज्यों मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से संबंधित है।

इन आरोपों पर प्रतिक्रिया में मेधा पाटकर ने कहा है कि उन्होंने खर्चों का पूरा लेखा-जोखा किया था। उन्होंने शिकायत के पीछे राजनीतिक मंशा का संकेत दिया। 'द वायर' की रिपोर्ट के अनुसार पाटकर ने दावा किया कि यह पहली बार नहीं है कि उन पर इस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं और कहा कि वह उन सभी का जवाब देने के लिए तैयार हैं क्योंकि धन का पूरा लेखा-जोखा और ऑडिट उपलब्ध है।

पाटकर ने जोर देकर कहा है कि उनके संगठन को विदेशों से धन प्राप्त नहीं होता है और सभी वित्त का सालाना पूरी तरह से ऑडिट किया जाता है।

रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि वर्तमान में चलाई जा रही ‘जीवनशालाएँ’ पिछले तीन दशकों से हैं। पाटकर ने कहा, 'यह संगठन दशकों से पुनर्वास में लगा हुआ है। उसने हमेशा इस तरह के आरोपों का जवाब दस्तावेजों के साथ दिया है।'

पाटकर ने कहा कि इस मामले के पीछे राजनीतिक कारण हो सकते हैं या यह बदनाम करने की साजिश हो सकती है। उन्होंने कहा, 'सिस्टम के बारे में सवाल पूछकर सही काम करने वालों को देशद्रोही कहा जाता है। जनता फ़ैसला करेगी।'

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