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नाटो में शामिल होंगे फिनलैंड, स्वीडन! रूस के लिए बड़ी मुसीबत?

नाटो में शामिल होंगे फिनलैंड, स्वीडन! रूस के लिए बड़ी मुसीबत?

एक और यूरोपीय देश फिनलैंड का नाटो में जल्द ही शामिल होना अब लगभग तय लग रहा है और स्वीडन भी उसी रास्ते पर चल सकता है। क्या रूस के लिए यह एक बड़ा झटका नहीं है?

यूक्रेन के नाटो में शामिल होने की आशंका भर से जिस रूस ने उस पर हमला कर दिया, क्या अब वह ऐसा ही हमला करने का जोखिम फिनलैंड और स्वीडन में उठा सकता है? ये सवाल इसलिए कि अब इन दो देशों के नाटो में शामिल होने की संभावना है। खासकर फिनलैंड के शामिल होते ही रूस के सामने एक बड़ी चुनौती ये होगी कि उसकी क़रीब 1300 किलोमीटर सीमा की सुरक्षा की चिंता बढ़ जाएगी क्योंकि इसकी इतनी लंबी सीमा रूस से लगती है। एक सवाल यह भी है कि अब तक यूक्रेन-रूस के बीच में सिमटा युद्ध क्या यूरोप में और व्यापक रूप लेगा? आख़िर ये आशंकाएँ क्यों बढ़ रही हैं?

फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने की संभावना को लेकर कहा जा रहा है कि यह अब तक का सबसे तेज नाटो विस्तार होने की संभावना है। इसके संकेत फ़िनलैंड के नेताओं के बयानों में भी मिलते हैं। उन्होंने गुरुवार को घोषणा की कि यूक्रेन में रूस के युद्ध के कारण फ़िनलैंड को दुनिया के सबसे बड़े सैन्य संगठन नाटो में शामिल होना चाहिए। इसी राह पर जल्द ही स्वीडन भी चल सकता है।

कहा जा रहा है कि यूक्रेन में रूस के युद्ध और मास्को-केंद्रित प्रभाव क्षेत्र स्थापित करने के पुतिन के इरादों ने फ़िनलैंड और स्वीडन के लोगों की सुरक्षा की धारणाओं को झकझोर दिया है। यह सब 24 फरवरी के यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के आदेश देने के कुछ ही दिनों में हुआ है। वहाँ की जनता की राय नाटकीय रूप से बदल गई।

फिनलैंड में नाटो की सदस्यता के लिए समर्थन वर्षों से 20-30% के आसपास रहा था, लेकिन यूक्रेन में युद्ध की घोषणा के बाद यह समर्थन अब 70% से अधिक हो गया है। 

अब तक के हालात ये हैं कि दोनों देश भले ही नाटो में शामिल नहीं हैं, लेकिन नाटो के सबसे क़रीबी साझेदारों में शामिल हैं। लेकिन इसके साथ ही उन दोनों देशों का अब तक रूस के साथ भी अच्छे संबंध बनाए रखना उनकी विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। 

तो सवाल है कि इन दोनों देश के लिए नाटो में शामिल होना क्या इतना आसान है? फ़िनलैंड और स्वीडन के बारे में यह साफ़ है कि वे स्विटज़रलैंड की तरह तटस्थ नहीं हैं, लेकिन इतना ज़रूर है कि वे पारंपरिक रूप से खुद को सैन्य रूप से गुटनिरपेक्ष मानते हैं।

नाटो में शामिल होने की योग्यता है?

फिनलैंड और स्वीडन नाटो के सबसे क़रीबी सहयोगी हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे पहले से ही फंक्शनिंग लोकतंत्रों, अच्छे पड़ोसी संबंधों, स्पष्ट सीमाओं और सशस्त्र बलों के मापदंडों पर नाटो के सदस्यता मानदंडों को पूरा करते हैं। यूक्रेन में आक्रमण के बाद उन्होंने औपचारिक रूप से नाटो के साथ सूचना के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया है और युद्ध के मुद्दों पर हर बैठक में वे शामिल रहे हैं। दोनों अपने सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण कर रहे हैं और नए उपकरणों में निवेश कर रहे हैं। फ़िनलैंड दर्जनों F-35 युद्धक विमान खरीद रहा है। स्वीडन के पास उच्च गुणवत्ता वाले लड़ाकू जेट ग्रिपेन हैं। न्यूज़ एजेंसी एपी की रिपोर्ट के अनुसार, फ़िनलैंड का कहना है कि वह पहले ही सकल घरेलू उत्पाद के 2% रक्षा खर्च के नाटो के दिशानिर्देश को पूरा करता है। स्वीडन भी अपने सैन्य बजट में तेजी ला रहा है और 2028 तक लक्ष्य तक पहुंचने की उम्मीद है। पिछले साल नाटो का औसत 1.6% अनुमानित था।

लेकिन निश्चित तौर पर रूस इससे बेहद नाराज़ होगा। वह शुरू से ही इसके ख़िलाफ़ रहा है कि कोई भी देश नाटो को रूस की सीमा तक ले आए। यूक्रेन पर हमले की भी वही मुख्य वजह बताई जाती है। ऐसे में 30 देशों के नाटो गठबंधन में फ़िनलैंड और स्वीडन की सदस्यता का क्या मतलब हो सकता है?

पुतिन ने मांग की है कि नाटो का विस्तार बंद हो और 9 मई के अपने भाषण में उन्होंने युद्ध के लिए पश्चिम को दोषी ठहराया। इस बीच फिनलैंड और स्वीडन में जनता की राय बताती है कि रूस की ऐसी ही कार्रवाई ने उन्हें नाटो खेमे में धकेल दिया है।

यानी रूस का यूक्रेन में हमला रूस के लिए अब घातक साबित होते जा रहा है। यूक्रेन में ही नहीं, बल्कि बाहर भी। फिनलैंड के मामले में रूस के इस ख़तरे को देखा जा सकता है। यदि फ़िनलैंड नाटो में शामिल हो जाता है तो यह रूस के साथ नाटो गठबंधन की सीमा की लंबाई दोगुनी हो जाएगी। इससे रूस के सामने अपनी सीमा की रक्षा के लिए 1,300 किलोमीटर लंबी सीमा और बढ़ जाएगी।

पुतिन ने चेताया है कि अगर वे शामिल होते हैं तो सैन्य और तकनीकी प्रतिक्रिया होगी। लेकिन रूस खुद मुश्किलों में फँसा है। रिपोर्टों में अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि फिनलैंड से लगने वाले रूस के पश्चिमी जिले से कई सैनिकों को यूक्रेन भेजा गया है और उन इकाइयों को भारी नुक़सान पहुँचा है। 

 - Satya Hindi

रूस ने गुरुवार को ही कहा है कि उसकी प्रतिक्रिया इस बात पर निर्भर हो सकती है कि रूस की सीमाओं की ओर नाटो का बुनियादी ढांचा कितना क़रीब है। अब रूस की ओर से कोई भी प्रतिक्रिया होने पर फ़िनलैंड और स्वीडन नाटो राज्यों से सुरक्षा सहायता की उम्मीद करेंगे। ब्रिटेन ने बुधवार को उनकी मदद के लिए आगे आने का संकल्प लिया भी है। लेकिन क्या नाटो के अन्य देश भी उनको साथ देने आगे आएँगे? और यदि ऐसा हो गया तो रूस नाटो और यूरोप से कैसे निपटेगा? क्या वह न्यूक्लियर के इस्तेमाल पर भी विचार करेगा? ऐसा हुआ तो पूरी दुनिया के लिए इसके गंभीर नतीजे होंगे।

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