एनआरसी की फ़ाइनल लिस्ट जारी, 19 लाख लोगों के नाम नहीं
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस की फ़ाइनल लिस्ट जारी कर दी है। एनआरसी में 3 करोड़ 11 लाख लोगों के नाम हैं और 19 लाख लोगों के नाम नहीं हैं। बता दें कि एनआरसी को लेकर असम में ख़ौफ़ का माहौल है।
एनआरसी के स्टेट को-ऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने बताया कि 3 करोड़ 11 लाख 21 हजार लोगों को एनआरसी की फ़ाइनल लिस्ट में जगह मिली है और 19,06,657 लोग इससे बाहर रहे हैं। जो लोग इस सूची में अपना नाम न आने से असंतुष्ट हैं वे फ़ॉरनर्स ट्रिब्यूनल के सामने अपील दाख़िल कर सकते हैं।
Prateek Hajela,State Coordinator,NRC: A total of 3,11,21,004 persons found eligible for inclusion in final NRC leaving out 19,06,657 persons including those who did not submit their claims.Those not satisfied with outcome can file appeal before Foreigners Tribunals. (file pic) https://t.co/HfgIsjZ6lr https://t.co/A73ATaijTC
— ANI (@ANI) August 31, 2019
असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा है कि जिन लोगों के नाम लिस्ट में शामिल नहीं हैं, वे लोग 120 दिनों के भीतर फ़ॉरनर्स ट्रिब्यूनल में आवेदन कर सकते हैं। सोनोवाल ने कहा है कि जो लोग एनआरसी की लिस्ट में नाम आने से छूट गए हैं, सरकार उनकी बातों पर ध्यान देगी।
देश में असम इकलौता राज्य है जहाँ सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है। एनआरसी के मुताबिक़, जिस व्यक्ति का नाम सिटिजनशिप रजिस्टर में नहीं होता है उसे अवैध नागरिक माना जाता है। इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। इसमें यहाँ के हर गाँव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम और संख्या दर्ज की गई है। असम में सिटिजनशिप रजिस्टर देश में लागू नागरिकता कानून से अलग है। यहाँ असम समझौता 1985 से लागू है और इस समझौते के मुताबिक़, 24 मार्च 1971 की आधी रात तक राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा।
1979 में अखिल असम छात्र संघ (आसू) द्वारा अवैध आप्रवासियों की पहचान और निर्वासन की माँग करते हुए एक 6 वर्षीय आन्दोलन चलाया गया था। यह आन्दोलन 15 अगस्त, 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद शान्त हुआ था।
असम में एनआरसी को आख़िरी बार 1951 में अपडेट किया गया था। उस समय असम में कुल 80 लाख नागरिकों के नाम इसमें पंजीकृत किए गये थे। साल 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में केंद्र सरकार, असम सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के बीच त्रिपक्षीय बैठक हुई थी जिसमें तय किया गया था कि असम समझौते में किए गए वादों को पूरा करने के लिए एनआरसी को अपडेट किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एनआरसी को अपडेट करने का आदेश दिया था ताकि वह वहाँ के मूल नागरिकों की पहचान कर सके और अवैध आप्रवासियों को राज्य से बाहर निकाला जा सके। 31 दिसंबर 2017 को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का पहला ड्राफ़्ट प्रकाशित किया गया।
लेकिन लगता है कि एनआरसी का मुद्दा बीजेपी के गले की फांस बन गया है। एक ओर तो वह लंबे समय से यह वादा करती रही है कि देश की सत्ता में आने पर देश में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से निकाल बाहर करेगी लेकिन अब इसकी चपेट में अपने ही समर्थकों के आने से उसके सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है। इसे लेकर हाल ही में हिंदू संगठनों ने असम में प्रदर्शन किया था और असम बीजेपी ने भी नाराजगी जताई थी।