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फिल्म समीक्षाः इमरजेंसी और गूंगी गुड़िया का आयरन लेडी बनना

फिल्म समीक्षाः इमरजेंसी और गूंगी गुड़िया का आयरन लेडी बनना

एक्ट्रेस कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी चर्चा में है। सिख समुदाय इसका खुलकर विरोध कर रहा है। शुक्रवार को पंजाब में इसका प्रदर्शन नहीं हो सका। प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक डॉ प्रकाश हिन्दुस्तानी ने इस फिल्म को पहले ही दिन देख डाला और लीक से हटकर इसकी समीक्षा की। कंगना क्या फिल्म बनाना चाहती थीं और उन्होंने क्या फिल्म बना दी, इस बारीकी को डॉ प्रकाश हिन्दुस्तानी ही बता सकते हैं। जरूर पढ़ियेः

कंगना रनौत इमरजेंसी फिल्म के बहाने अपनी वफ़ादारी साबित करने में लगी थीं, पर इसमें तो इंदिरा गांधी  की तारीफें करनी पड़ी।  दर्शकों को बताना पड़ा कि इंदिरा गांधी आयरन लेडी इसलिए कहलाई कि उन्होंने साहसिक फैसले लिये थे। बांग्लादेश की आज़ादी, पोखरण में शांतिपूर्ण परमाणु परिक्षण, विपक्षी नेता के रूप में गरीबों की हमदर्द बनकर हिंसा से जूझ रहे बेलछी में हाथी पर बैठकर जाना और अंतरात्मा की आवाज़ पर इमरजेंसी हटाने और चुनाव कराने की घोषणा और फिर सत्ता में आने की कहानी कंगना को दिखानी ही पड़ी।  अगर यह फिल्म लोक सभा चुनाव के पहले लग जाती तो इससे कांग्रेस के वोट बढ़ जाते।  

फिल्म में इंदिरा कहती हैं इंदिरा इज़  इण्डिया और इण्डिया इज़ इंदिरा।  लेकिन यह बात इंदिरा गाँधी ने कभी नहीं कही थी। उनके चमचों और मीडिया ने ज़रूर कही थी। हुसैन जैसे कलाकारों ने तो उन्हें दुर्गा के रूप में चित्रित किया था। कंगना का मन हुआ कि यह डायलॉग बोलें, बोल दिया।

कंगना रनौत इमरजेंसी फिल्म में  दिखाना चाहती थी कि इंदिरा गांधी बचपन से ही जिद्दी और बदमिजाज़ थीं, लेकिन उन्हें फिल्म में यह दिखाना पड़ा कि इंदिरा गांधी अपने सिद्धांतों पर कितनी अडिग थीं - जिन्होंने कहा था कि मेरे लहू का एक-एक कतरा देश के लिए है। चिंता नहीं है कि मैं जीवित रहूँ या नहीं , मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को जीवित रखेगा।

कंगना रनौत यह दिखाना चाहती थी कि जवाहरलाल नेहरू का देश के प्रति कोई विज़न नहीं था, लेकिन उन्हें यह दिखाना पड़ा कि भारत ने नेहरू के नेतृत्व में कितना अच्छा काम किया।

कंगना रनौत यह दिखाना चाहती थीं कि इंदिरा गांधी अपनी बुआ विजय लक्ष्मी पंडित को बचपन में ही घर से बाहर कर देना चाहती थी, लेकिन उन्हें यह दिखाना पड़ा कि इंदिरा गांधी को पिता जवाहरलाल नेहरू और दादा मोतीलाल नेहरू ने कैसा इतिहास बोध  कराया था।

कंगना रनौत यह दिखाना चाहती थी कि इंदिरा गांधी बहुत तानाशाह थी, लेकिन उन्हें यह दिखाना पड़ा कि भारी दबाव के बावजूद उन्होंने अंतरात्मा की आवाज पर इमरजेंसी खत्म की और साहस के साथ चुनाव की घोषणा की, जिसमें उन्हें बुरी तरह हारना ही था।

कंगना रनौत यह दिखाना चाहती थी कि इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी में देश के लोगों पर भारी जुल्म किये थे, लेकिन उन्हें यह दिखाना पड़ा कि इंदिरा गांधी के सत्ता में नहीं रहने के कारण विपक्ष में किस तरह जूतमपैजार हुई और बेलछी जैसे कांड हुए।  नरसंहार को रोकने में जनता पार्टी की सरकार नाकाम रही और वापस इंदिरा गाँधी सत्ता में आई।

कंगना  दिखाना चाहती थी  कि इंदिरा गांधी अपने पुत्र प्रेम में असहाय थीं।  वे बीमार रहती थीं और संजय ने सत्ता के सूत्र थाम  लिए थे, तो इसका मतलब यह कि इमरजेंसी का गुनाह संजय गाँधी ने किया था। कंगना को यह दिखाना पड़ा कि इंदिरा गांधी ने संजय को किस तरह एक तरफ कर दिया था और वे  संजय गांधी से मिलती तक नहीं थी। यहां तक कि संजय गांधी उनके पीए से बार बार गुजारिश करते थे कि मुझे मेरी मां से मिलने दो लेकिन इंदिरा गांधी ने अपने बेटे को ज्यादा अहमियत नहीं दी थी।

कंगना ने दिखाना चाहा कि संजय गांधी एक नंबर का अय्याश और आवारा युवा था। उसके साथ देने वालों में उनकी गर्ल फ्रेंड माँ रुखसाना सुलतान भी थी जो फिल्म अभिनेत्री अमृता सिंह (सैफ अली खान की पूर्व पत्नी) मां थीं। फिल्म के अनुसार उसे लाइन पर लाने के लिए ही उसकी शादी मेनका गाँधी से करा दी गई थी। लेकिन राहुल गांधी सोनिया गांधी और मेनका गांधी के बारे में उन्होंने एक सीन भी दिखाने की हिम्मत नहीं की।

कंगना ने इंदिरा गाँधी के पति सांसद फ़िरोज़ गाँधी को भी वुमनाइजर दिखाने की कोशिश की और इंदिरा को स्वच्छंद विचार वाली स्त्री।

  • वास्तव में कंगना रनौत इमरजेंसी को लेकर फिल्म बनाना चाहती थी, लेकिन उन्हें बनानी पड़ी इंदिरा गांधी के पूरे जीवन पर फिल्म, जिसमें इंदिरा गांधी के जीवन से जुड़ी घटनाएं दिखानी पड़ीं। अंत में यह तक दिखाना पड़ा कि इंदिरा गांधी पूरे देश के 60 करोड़ ( तब इतनी ही आबादी थी) लोगों को अपना परिवार मानती थीं। जब उन्हें सलाह दी गई  कि वे अपने सिख सुरक्षाकर्मियों को हटा लें तो उन्होंने यह बात नहीं मानी  और कहा कि यह पूरा देश मेरा है और मुझे किसी भी व्यक्ति के प्रति कोई संदेह नहीं है।

कंगना को यह दिखाना पड़ा बांग्लादेश की मुक्ति के दौरान महाशक्तिशाली अमेरिका के राष्ट्रपति के अपमानजनक व्यवहार का मुंहतोड़ जवाब इंदिरा ने कैसे दिया था।  दिखाना पड़ा कि फ़्रांस के राष्ट्रपति के डिनर में परोसे गए केक को वे पैक कराकर भारत क्यों लाईं और उनके एक डायलाग ने फ़्रांस को 1971 के युद्ध के समय न्यूट्रल रहने पर बाध्य किया। उन्होंने लंदन जाकर बीबीसी को ऐसा इंटरव्यू दिया कि पाकिस्तान के हुक्मरान हिल गये।

इमरजेंसी फिल्म देखने के बाद समझ में आया कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अब तक यह फिल्म क्यों नहीं देखी और कंगना रनौत को नितिन गडकरी को फिल्म दिखा कर ही संतोष करना पड़ा। दरअसल बात यह कि यह फिल्म अगर लोकसभा चुनाव के पहले रिलीज हो जाती है तो इससे कांग्रेस को फायदा मिलता। लोग समझते कि कांग्रेस के नेताओं ने देश के लिए क्या-क्या किया है और जिन कारणों से इंदिरा गांधी को बदनाम किया जा रहा है, उनकी शख्सियत क्या थी?

इस फिल्म में पहले सीन में ही बच्ची इंदिरा को जिद्दी और बद्तमीज़ दिखाया गया है। उनके पिता, बुआ, पति, बेटे तक को तुच्छ दिखाने की कोशिश की गई है। लेकिन संजय गांधी ने पचास साल पहले ही स्वच्छ भारत, हरित भारत, श्रमदान, परिवार नियोजन और समाज सुधार के  लिए दहेज़ उन्मूलन के पांच सूत्र दिए थे।  

फिल्म के टाइटल में इमरजेंसी को 'ईमरजेन्सी' लिखा देखना अखरा। इतनी हिंदी तो आनी ही चाहिए। क्रेडिट में मनोज मुन्तशिर शुक्ला का नाम भी गलत लिखा देखा। वे  मनोज मुंतशिर शर्मा कब से हो गये? कंगना की प्रोस्थेटिक नाक देखकर अटपटा लगा। 

इस फिल्म पर कंगना को कोई न कोई राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना तय है।


इंदौर के C 21 मॉल के पीवीआर में पहले दिन का पहला शो बहुत ही शान से देखा। हॉल में मेरे अलावा एक शख्स और था। तयशुदा वक्त बीतने के 25 मिनट बाद भी फिल्म शुरू नहीं हुई तो पड़ताल की।  बताया गया कि मशीन में खराबी है, उसे सुधार रहे हैं। कुछ देर बाद दो जोड़े तोता-मैना ने हॉल में आकर और टॉप रो के दोनों कोनों को संभाला। तब जाकर फिल्म शुरू हुई। हॉल खाली हो तो तोता मैना को ओयो की क्या ज़रूरत?

*इमरजेंसी गूगी गुड़िया के आयरन लेडी बनने का सफर है। मेरी नज़र में देखनीय फिल्म है।

(डॉ प्रकाश हिन्दुस्तानी के फेसबुक पेज से साभार)

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