माँ की तरह हामिद का ख़्याल रखती थीं नाज़
पाकिस्तान से 6 साल बाद वतन वापस लौटे हामिद नेहाल अंसारी की कहानी किसी फ़िल्म जैसी ही है। अपने वतन से दूर एक ऐसा मुल्क़ जहाँ से भारत के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं हैं, वहाँ हामिद को ऐसे लोग भी मिले जो उसके लिए किसी फ़रिश्ते से कम नहीं थे। आइए ऐसे फ़रिश्तों के बारे में जानते हैं। 12 दिसंबर 2015 को पाकिस्तान की एक सैन्य अदालत ने हामिद को जासूसी और पाकिस्तान विरोधी गतिविधियों का दोषी ठहराया गया था।
इनमें दो नाम अहम हैं। रख्शंदा नाज़ और काज़ी मोहम्मद अनवर का। दोनों ही पाकिस्तान में मानवाधिकारों के वकील हैं। ख़बरों के मुताबिक़, रख्शंदा नाज़ और काज़ी मोहम्मद अनवर ने हामिद के परिवार से बिना पैसे लिए इस केस को लड़ा। काज़ी मोहम्मद अनवर जहाँ कोर्ट के सामने उसकी पैरवी करते रहे और रख्शंदा नाज़ ने माँ की तरह हामिद का ख्याल रखा। वह अक्सर जेल में हामिद से मिलने जातीं तो उनके लिए खाने का सामान ले जातीं।
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इसके अलावा भारत में जतिन देसाई ने हामिद के माँ-पिता की लड़ाई को दोनों देशों के लोगों तक पहुँचाया। देसाई पाकिस्तान-इंडिया पीपल्स फ़ोरम फ़ॉर पीस ऐंड डेमोक्रेसी (पीआईपीएफपीडी) के महासचिव हैं और और उन्होंने प्रेस क्लब ऑफ़ मुंबई और कराची प्रेस क्लब की सहायता से शांति वार्ता शुरू की थी। देसाई ने हामिद की रिहाई के लिए पाकिस्तान में अपने जानने वालों से सहायता करने को कहा। अंसारी की रिहाई की ख़बर पाकर देसाई हामिद के पिता निहाल अंसारी और मां फ़ौज़िया अंसारी के साथ पंजाब में वाघा सीमा पर उनका स्वागत करने के लिए आए थे।