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'द कश्मीर फाइल्स' को टैक्स फ्री कर सरकार नफरत फैलाना चाहती है: अब्दुल्ला

'द कश्मीर फाइल्स' को टैक्स फ्री कर सरकार नफरत फैलाना चाहती है: अब्दुल्ला

'द कश्मीर फाइल्स' फ़िल्म का मक़सद क्या है? बीजेपी सरकार ने कहा है कि इसमें सच्चाई दिखाई गई है। जानिए, नेशनल कॉन्फ़्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने क्या कहा है।

'द कश्मीर फाइल्स' फ़िल्म को बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है? इस पर नफ़रत फैलाने का आरोप क्यों लग रहा है? इन सवालों की कड़ी में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने मंगलवार को कहा कि विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित - 'द कश्मीर फाइल्स' को टैक्स फ्री करके बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार लोगों के दिलों में नफरत फैलाना चाहती है।

द कश्मीर फाइल्स पर विवाद के बीच ही फारूक अब्दुल्ला का बयान आया है। इस फिल्म को बीजेपी शासित कई राज्य सरकारों ने टैक्स फ्री कर दिया है। कई जगहों पर सरकारी कर्मचारियों को फिल्म देखने के लिए छुट्टी दी गई है। बीजेपी इस फिल्म को काफी बढ़ावा दे रही है। फिल्म की आलोचनाओं पर प्रधानमंत्री मोदी ने तो कह दिया था कि इस फिल्म को बदनाम करने की 'साजिश' की गई है।

आलोचकों को निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, 'वे गुस्से में हैं क्योंकि हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म उस सच्चाई को सामने ला रही है जिसे जानबूझकर छिपाया गया था। पूरी जमात जिसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का झंडा फहराया था, 5-6 दिनों से उग्र है। तथ्यों और कला के आधार पर फिल्म की समीक्षा करने के बजाय, इसे बदनाम करने की साज़िश की जा रही है।'

बहरहाल, फारूक अब्दुल्ला ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, 'वे नफरत से लोगों के दिलों को और भरना चाहते हैं। वे कह रहे हैं कि हर पुलिसकर्मी और सैनिक... सभी को यह फिल्म देखनी चाहिए ताकि वे हमसे आखिरी हद तक नफ़रत करें, जैसा कि हिटलर और गोएबल्स ने जर्मनी में किया था। तब 60 लाख यहूदियों को क़ीमत चुकानी पड़ी थी। भारत में कितनों को क़ीमत चुकानी पड़ेगी, मुझे नहीं पता।' 

उन्होंने फिल्म को प्रचार का मंच बताया। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार अब्दुल्ला ने कहा, 'यह एक प्रचार फिल्म है। इसने एक ऐसी त्रासदी को भुनाया है जिसने राज्य की हर आत्मा, हिंदू और मुसलमानों को समान रूप से प्रभावित किया है। मेरा दिल अभी भी त्रासदी पर रोता है। राजनीतिक दलों का एक तत्व था जो एथनिक क्लीनजिंग यानी जातीय सफाई में रुचि रखता था।' 

फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि न केवल कश्मीरी पंडितों के साथ बल्कि 1990 के दशक में कश्मीर में सिखों और मुसलमानों के साथ जो हुआ, इसकी जाँच के लिए किसी तरह का एक सच्चा आयोग बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'मेरे विधायक, मेरे कार्यकर्ता, मेरे मंत्रियों को हमें पेड़ के ऊपर से उनके अंग को चुनना पड़ा। यही स्थिति थी।'

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