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बैठक में नहीं गए कृषि मंत्री, किसानों ने फाड़ी विधेयक की कॉपी

बैठक में नहीं गए कृषि मंत्री, किसानों ने फाड़ी विधेयक की कॉपी

बुधवार को सरकार के साथ 30 किसान संगठनों की बैठक बुलाई गई थी, लेकिन वह नारेबाजी और शोरगुल के बीच ख़त्म हो गई। कृषि मंत्री के मौजूद नहीं रहने से गुस्साए किसानों ने बिल की प्रतियाँ फाड़ कर फेंक दीं।

कई तरह के विरोधों और विवादों के बीच पारित हुए कृषि विधेयक क़ानून तो बन गए, पर इनका असर जिन लोगों पर पड़ेगा, इन किसानों ने इन क़ानूनों को स्वीकार नहीं किया है। बुधवार को सरकार के साथ 30 किसान संगठनों की बैठक बुलाई गई थी, लेकिन वह नारेबाजी और शोरगुल के बीच ख़त्म हो गई। कृषि मंत्री के मौजूद नहीं रहने से गुस्साए किसानों ने बिल की प्रतियाँ फाड़ कर फेंक दीं।

दरअसल विवाद की शुरुआत इसी से हुई कि पहले से तय और बहु-प्रतीक्षित बैठक में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर क्यों नहीं मौजूद हैं। हालांकि उनकी जगह कृषि सचिव मौजूद थे, पर किसानों का कहना था कि वे सीधे मंत्री से ही बात करना चाहते हैं।

किसानों ने पहले नारेबाजी की और उसके बाद बिल फाड़ कर फेंक दिया। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वे किसी कीमत पर इन क़ानूनों को नहीं मानेंगे। इसके बाद वे बैठक छोड़ कर चले गए।

बैठक नाकाम

बता दें कि पंजाब में किसानों के आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने नए क़ानून के प्रावधानों पर बातचीत के लिए किसान संगठनों के प्रतिनिधिमंडलों को दिल्ली बातचीत के लिए बुलाया था। दूसरी ओर, किसानों ने आरोप लगाया है कि सरकार पंजाब में नेताओं को फोन कर किसानों के ख़िलाफ़ भड़का रही है।

इस बैठक में किसानों के सबसे बड़े संगठन भारतीय किसान यूनियन के प्रतिनिधि भी मौजूद थे।बैठक से निकलने के बाद एक किसान संगठन के प्रतिनिधि ने कहा, 'हम बातचीत से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए हम बैठक से बाहर निकल गए।'

इन किसानों ने कहा कि कृषि क़ानूनों के लागू होने के बाद के बाद वे पूरी तरह कॉरपोरेट जगत की दया पर निर्भर हो जाएंगे। न तो एपीएमसी के बाज़ार होंगे न ही न्यूनतम समर्थन मूल्य रहेगा। ऐसे में किसान पूरी तरह बाज़ार की दया पर निर्भर रहेंगे।

कृषि क़ानून

याद दिला दें कि केंद्र सरकार ने पिछले महीने संसद के दोनों सदनों से भारी विरोध के बीच तीन कृषि बिल पारित कराए हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 27 सितंबर को तीनों कृषि विधेयकों को मंजूरी दे दी।

किसानों का विरोध इससे समझा जा सकता है कि आरएसएस का किसान संगठन भारतीय किसान संघ भी इन कृषि विधेयकों को लेकर बेहद निराश है। उसका कहना है कि इनसे किसानों को बहुत ज़्यादा फायदा नहीं होगा, ये उनके जीवन को जटिल ही बनाएंगे।

बीकेएस के महासचिव बद्री नारायण चौधरी ने इंडिया टुडे के साथ बातचीत में कहा था कि ये विधेयक कॉरपोरेट के पक्ष में ज़्यादा हैं। उन्होंने कहा था, ‘हम इस मुद्दे पर किसानों के साथ हैं। बीकेएस सुधारों के ख़िलाफ़ नहीं है लेकिन किसानों की कुछ वाजिब चिंताए हैं।’

भले ही बीकेएस इन विधेयकों के विरोध की बात कर रहा हो लेकिन सरकार इन्हें किसान हितैषी ही बता रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधेयक पारित होने के बाद कहा था, ‘नए कृषि सुधारों ने किसान को यह आज़ादी दी है कि वे किसी को भी, कहीं पर भी अपनी फसल अपनी शर्तों पर बेच सकता है। उसे अगर मंडी में ज्यादा लाभ मिलेगा, तो वहां अपनी फसल बेचेगा। मंडी के अलावा कहीं और से ज्यादा लाभ मिल रहा होगा, तो वहां बेचने पर भी मनाही नहीं होगी।’

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