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एक और किसान ने की आत्महत्या, लोगों में सरकार के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा 

एक और किसान ने की आत्महत्या, लोगों में सरकार के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा 

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आंदोलन में अब तक कई किसान आत्महत्या कर चुके हैं। 

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आंदोलन में अब तक कई किसान आत्महत्या कर चुके हैं। ताज़ा घटना में हरियाणा के रोहतक के रहने वाले 42 साल के एक किसान ने मंगलवार रात को जहर खाकर आत्महत्या कर ली। पिछले दो महीने में आत्महत्या की ये पांचवीं घटना है। इस किसान का नाम जय भगवान राणा था। भारतीय किसान यूनियन का कहना है कि आंदोलन के दौरान अब तक 100 से ज़्यादा किसानों की मौत हो चुकी है। 

दिल्ली में इन दिनों रात के वक़्त पाला गिर रहा है और तापमान 2-3 डिग्री तक पहुंच रहा है। सवाल ये है कि किसान आख़िर कब तक खुले आसमान के नीचे बैठे रहेंगे और इस मसले का हल कब निकलेगा। किसानों के साथ छोटे बच्चे और महिलाएं भी हैं। 

पुलिस ने कहा है कि राणा ने मंगलवार को शाम 7-8 बजे सल्फ़ास की गोलियां खा लीं और रोड पर ही गिर पड़े। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। 

एक सुसाइड नोट भी मिला है, कहा जा रहा है कि इसे राणा ने लिखा है, पुलिस इसकी जांच कर रही है। राणा ने इसमें लिखा है, ‘मैं एक छोटा आदमी हूं। कई किसान कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं। सरकार कहती है कि यह केवल दो-तीन राज्यों का मामला है। किसानों और सरकार के बीच समझौता नहीं हो पा रहा है।’ राणा ने आगे लिखा है कि सभी राज्यों से किसान नेता दिल्ली आएं और कृषि क़ानूनों को लेकर सरकार को अपनी राय दें। 

 - Satya Hindi

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, राणा रोहतक जिले के पाकास्मा गांव के रहने वाले थे और अपने दोस्तों के साथ दो हफ़्ते पहले धरने में आए थे। राणा के तीन भाई हैं और 11 साल की बेटी भी है। 

राणा का शव लेने वाले आए उनके पिता ने कहा कि वे लोग छोटे किसान हैं और उनके पास ज़मीन नहीं है। वे अनाज उगाने में दूसरे किसानों की मदद करते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को इन क़ानूनों को तुरंत वापस लेना चाहिए। किसान नेताओं ने राणा के परिवार को 51 हज़ार रुपये की सहायता दी है। 

किसानों का साफ कहना है कि वे अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं और तब तक नहीं जाएंगे जब तक ये कृषि क़ानून वापस नहीं हो जाते। उनका कहना है कि ये कृषि क़ानून उनके लिए डेथ वारंट हैं और इनके लागू होने से वे तबाह हो जाएंगे।

इस तरह की मौत बेहद तोड़ने वाली है। अन्न उगाने वाला किसान खेतों में जी-तोड़ मेहनत करता है, अमूमन वह बेहद ख़राब हालात से भी घबराता नहीं है। लेकिन कृषि क़ानूनों ने उसे तोड़ दिया है। किसानों के धरने को लगभग दो महीने होने वाले हैं। ऐसे में किसानों का इंतजार लंबा होता जा रहा है कि आख़िर कब ये कृषि क़ानून रद्द होंगे। 

पिछले साल दिसंबर में सिख धर्म गुरू संत बाबा राम सिंह ने ख़ुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने सुसाइड नोट में लिखा था कि वह किसानों की बेहद ख़राब हालत के कारण यह आत्मघाती क़दम उठा रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग संत बाबा राम सिंह के कीर्तन को सुनते थे। किसान आंदोलन में लगातार हो रही मौतों के कारण आम किसानों, आंदोलनकारियों में सरकार के ख़िलाफ़ जबरदस्त ग़ुस्सा है। 

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