किसान नेताओं ने केंद्र का प्रस्ताव ठुकराया, बोले- रद्द हों क़ानून
कृषि क़ानूनों को लेकर मोदी सरकार की ओर से दिए गए प्रस्ताव को किसानों ने ठुकरा दिया है। संयुक्त किसान मोर्चा ने साफ किया है कि उन्हें कृषि क़ानूनों को रद्द करने और एमएसपी की क़ानूनी गारंटी देने से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।
इससे पहले किसानों और सरकार के बीच बुधवार को दसवें दौर की बातचीत बातचीत हुई थी। इस बातचीत में सरकार ने किसानों के सामने इन क़ानूनों को एक से डेढ़ साल तक स्थगित करने का प्रस्ताव रखा था।
किसानों के साथ बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि इस अवधि के दौरान किसान नेता और सरकार मिलकर इस मसले का हल निकालेंगे और तब तक सरकार इन क़ानूनों के क्रियान्वयन पर स्थगन के लिए तैयार है। कुल मिलाकर सरकार की ओर से किसानों को मनाने के लिए की गई कवायद बेकार होती दिख रही है।
कमेटी की आलोचना पर लगाई फटकार
बुधवार को कृषि क़ानूनों के मसले पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई कमेटी की आलोचना पर अदालत ने नाराज़गी जताई थी। अदालत ने कहा था कि इस कमेटी के पास कृषि क़ानूनों के बारे में फैसला करने की कोई ताक़त नहीं है, ऐसे में किसी तरह के पक्षपात का सवाल कहां उठता है।
अदालत बुधवार को किसान आंदोलन को लेकर दायर तमाम याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। किसान महापंचायत की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने अदालत से कहा कि किसानों की ओर से इस कमेटी को फिर से गठित करने की मांग रखी गई है। इस पर सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि वह कमेटी की आलोचना करने और इसकी छवि ख़राब करने से बेहद निराश हैं।
उन्होंने किसान महापंचायत के अधिवक्ता से कहा, ‘आप कमेटी को बदलना चाहते हैं। इसके पीछे क्या आधार है। कमेटी में शामिल लोग खेती को अच्छे से समझते हैं और आप उनकी आलोचना कर रहे हैं।’
ट्रैक्टर परेड पर पुलिस फ़ैसला ले: कोर्ट
सुनवाई के दौरान अदालत ने दिल्ली पुलिस से कहा कि वह 26 जनवरी को होने वाली किसान ट्रैक्टर परेड को लेकर दायर अपनी याचिका को वापस ले ले। दिल्ली पुलिस ने याचिका में किसान ट्रैक्टर परेड पर रोक लगाने की मांग की थी। पुलिस का कहना था कि परेड होने से गणतंत्र दिवस समारोह के आयोजन में अड़चन आएगी और इससे दुनिया भर में देश की छवि ख़राब होगी।
अदालत ने कहा है कि पुलिस को ही इस बारे में फ़ैसला करना होगा कि परेड की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। अदालत ने कहा कि पुलिस के पास इस बारे में फ़ैसला लेने का पूरा अधिकार है और वह इस मामले में दख़ल नहीं दे सकती।
बाहरी रिंग रोड पर निकालेंगे परेड
दूसरी ओर, किसानों ने कहा है कि वे दिल्ली की बाहरी रिंग रोड पर ट्रैक्टर परेड निकालेंगे और गणतंत्र दिवस समारोह में किसी भी तरह की रुकावट पैदा नहीं करेंगे। किसान नेताओं ने कहा है कि उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहेगा।
किसान संयुक्त मोर्चा की ओर से जारी की गई प्रेस रिलीज में कहा गया है कि परेड में शामिल ट्रैक्टर्स पर भारत का तिरंगा और किसानों की यूनियनों के झंडे लगे होंगे। किसी भी राजनीतिक दल के झंडे लगाने की अनुमति नहीं होगी। परेड में इस आंदोलन में शहीद हुए लोगों के परिवार के सदस्य, सेना में रह चुके अफ़सर और नामी खिलाड़ी भी शामिल होंगे।
किसान आंदोलन पर देखिए वीडियो-
किसानों के साथ खड़ा हूं: राहुल
कृषि क़ानूनों के मसले पर ख़ासे मुखर राहुल गांधी ने मंगलवार को मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला। उन्होंने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर देश की अर्थव्यवस्था को पूंजीपतियों को सौंपने का आरोप लगाया।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने कहा, ‘आज तक खेती में मोनोपॉली नहीं थी, आज तक हिंदुस्तान के खेतों का फ़ायदा किसानों को, मजदूरों को, मिडिल क्लास को और ग़रीबों को जाता था। एक पूरा ढांचा था, जो इन लोगों की रक्षा करता था। लेकिन इन तीन क़ानून खेती में आज़ादी से पहले की हालत करने जा रहे हैं।’
राहुल ने कहा, ‘4-5 लोगों के हाथ में मोदी जी खेती का पूरा ढांचा दे रहे हैं। इसीलिए किसान बाहर खड़े हैं। हमारे युवाओं और मध्य वर्ग को इस बात को समझना होगा कि किसान अपनी रक्षा नहीं कर रहे हैं, वे हमारी और हमारे भोजन की रक्षा कर रहे हैं।’
राहुल गांधी ने कहा, 'मैं किसानों के आंदोलन का 100 फ़ीसदी समर्थन करता हूं और देश के हर नागरिक को उनका समर्थन करना चाहिए। इसके पीछे कारण यह है कि वे हमारे लिए लड़ रहे हैं न कि ख़ुद के लिए।'
धड़ाधड़ समन भेज रही एनआईए
एक ओर मोदी सरकार किसान आंदोलन में शामिल नेताओं से बातचीत कर रही है, दूसरी ओर केंद्रीय एजेंसियां आंदोलन का समर्थन करने वालों पर शिकंजा कस रही हैं। आढ़तियों, पंजाबी गायकों से शुरू हुआ यह सिलसिला लेखकों, पत्रकारों, व्यापारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं तक जा पहुंचा है। एनआईए ने बीते कुछ दिनों में कई लोगों को समन भेजे हैं और गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक़ जिन लोगों को समन भेजा गया है, उन सभी को हाल ही में विदेशों से पैसा मिला है और इसके स्रोत संदेहास्पद हैं।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने खालिस्तान समर्थक प्रतिबंधित संगठन सिख फ़ॉर जस्टिस (एसएफ़जे) के द्वारा आतंकवाद के लिए धन उपलब्ध कराने को लेकर एफ़आईआर दर्ज की है। एफ़आईआर में दावा किया गया है कि एसएफ़जे और कुछ अन्य खालिस्तान समर्थक संगठन इस साज़िश में शामिल हैं और इसके लिए सोशल मीडिया पर लगातार अभियान चला रहे हैं। इसके अलावा ये संगठन युवाओं को अलग खालिस्तान राष्ट्र के लिए भड़का रहे हैं।