जमातियों को पकड़ने में जुटी यूपी सरकार; लॉकडाउन से किसानों की कमर टूटी
उत्तर प्रदेश में अब कोरोना वायरस से रोकथाम की सारी कवायद तब्लीग़ी जमात पर आकर थम गयी है। प्रदेश मुख्यालय से लेकर जिलों तक सरकारी अमला जमातियों की तलाश, उनको पकड़ने, जांच कराने में और इस बारे में मीडिया को बताने में ही व्यस्त है। फसल कटाई के इस सीजन में किसान की बेहाली, गांवों में गेहूं काटने नहीं पहुंच सके हार्वेस्टर, खेतों में सड़ रही सब्जियां और बेभाव बिकता दूध सरकार के एजेंडे में कहीं नहीं हैं। हर रोज सुबह, दोपहर और शाम जमात के पकड़े गए लोगों, उनके कोरोना टेस्ट और क्वरेंटीन किये जाने की ख़बरें जारी हो रही हैं।
गेहूं कटाई के इस मौसम में लॉकडाउन ने उत्तर प्रदेश के किसानों को फिर से अतीत में पहुंचा दिया है। बीते एक दशक से कम्बाइन हार्वेस्टर के सहारे गेहूं की फसल काट रहे उत्तर प्रदेश के किसानों में से खासी तादाद में लोग इस बार परंपरागत तरीके से कटाई और मड़ाई का काम शुरू कर रहे हैं। हालांकि प्रदेश सरकार ने हाय तौबा के बाद रजिस्टर्ड कम्बाइन हार्वेस्टरों को कटाई की मंजूरी दे दी है।
कोरोना लॉकडाउन की सबसे ज्यादा मार सब्जी उगाने वाले किसानों पर पड़ी है। बाजार में सब्जियां जा नहीं पा रही हैं और बिचौलिये कम दाम दे रहे हैं। हालात यह हैं कि सब्जियां खेतों में सड़ रही हैं।
किसानों का कहना है कि बीते महीने ओले-बारिश से फसल आधी रह गई और फिर लॉकडाउन ने मंडियों के रास्ते बंद कर दिए। गोरखपुर, बनारस, कानपुर और लखनऊ के किसानों के लिए यह लॉकडाउन मुसीबत का सबब बन गया है। बरेली की तरफ के किसान ज़रूर कुछ अपनी सब्जियां उत्तराखंड भेज पा रहे हैं। किसान औने-पौने दामों पर आढ़तियों को सब्जियां बेचने पर मजबूर हैं।
फसल काटने के लिये मशीनों की कमी
योगी सरकार ने बीते हफ्ते ही रजिस्टर्ड हार्वेस्टरों से कटाई की इजाजत दी है। जानकारी के मुताबिक़, प्रदेश में इस समय कुल 3316 रजिस्टर्ड कम्बाइन हार्वेस्टर हैं, जिनसे कटाई व मड़ाई का काम लिया जायेगा। सरकार की ओर से फसल कटाई और कृषि उपज के लिए गठित समिति ने यह इजाजत दी है।
समिति का कहना है कि कम्बाइन हार्वेस्टरों को अगर कटाई के काम के लिए दूसरे जिले में जाना होगा तो इसके लिए संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों से पास लेना ज़रूरी होगा। इसके लिए मुख्य सचिव ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ज्यादातर हार्वेस्टर पीलीभीत, बरेली, उधमसिंह नगर से आते हैं।
मुश्किल होगा कटाई, मड़ाई का काम
किसान नेताओं का कहना है कि प्रदेश में गेहूं के रकबे को देखते हुए केवल रजिस्टर्ड हार्वेस्टरों के सहारे कटाई और मड़ाई का काम पूरा नहीं किया जा सकता है। उनका कहना है कि सरकार की ओर से सभी हार्वेस्टरों को आने-जाने व कटाई की इजाजत न देने के चलते किसानों को बड़े पैमाने पर परंपरागत तरीकों से कटाई का काम करना होगा। प्रदेश में रजिस्टर्ड हार्वेस्टरों के मुकाबले असल में कटाई का काम करने वाले हार्वेस्टर कई गुना ज्यादा हैं।
लॉकडाउन के चलते इस बार गांवों में पहले के मुक़ाबले कहीं ज्यादा तादाद में मजदूर लौटे हैं पर उन्हें सरकार के आदेश पर क्वरेंटीन कर दिया गया है जिससे वे कटाई के काम में भी नहीं लग पा रहे हैं। इसके अलावा सड़क किनारे बसे गांवों में मजदूरों को खेतों में काम करने में परेशानी हो रही है।
पुलिस व प्रशासन के लोग मजदूरों को एक साथ काम करने से रोक रहे हैं। हालांकि उनका कहना है कि दूर-दराज के गांवों में इस तरह की दिक्कत नहीं है। किसान नेता हरिनाम सिंह चौहान का कहना है कि परंपरागत तरीके से कटाई में न केवल समय ज्यादा लगेगा बल्कि पैसा भी ज्यादा खर्च होगा।
किसी तरह अपनी सब्जियां लेकर लखनऊ की थोक मंडी दुबग्गा और सीतापुर रोड पहुंचे किसानों पर भीड़ जमा होने के चलते कई बार लाठीचार्ज हो चुका है। किसानों का कहना है कि पिछले 10 दिन में शायद ही कोई ऐसा किसान होगा, जिसने बाजार जाकर सब्जी बेचने की कोशिश की हो और पिटा न हो।
जगह-जगह की रोक और पाबंदियों के चलते बजाय मंडी तक पहुंचने के खेतों में ही सब्जियां ख़राब हो रही हैं। सब्जी की कटाई और समय से बाजार तक नहीं पहुंचने से किसानों के सामने आर्थिक तंगी आ गई है। लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में जहां सब्जियों के भाव खासे ऊंचे थे, वहीं अब ये सामान्य दिनों के मुक़ाबले काफी नीचे आ गए हैं।
दूध फेंकने की नौबत
किसानों ने खेत में उगाए बैगन और पालक काटकर जानवरों को खिलाना शुरू किया है। हलवाईयों, मिठाई की दुकानों और संस्थाओं में खपत घटने के बाद दूध बेभाव बिकने लगा है। सरकारी डेयरी पराग तक ने चेतावनी दी है कि यही हाल रहा तो दूध फेंकने की नौबत आ जाएगी। राजधानी लखनऊ के तालकटोरा इलाक़े में पनीर के दाम गिर कर 200 रुपये के नीचे आ गए हैं।
आम की फसल पर मार
देश भर में अपने दशहरी आमों के लिए मशहूर मलिहाबाद में बागवानों की हालत इस बार कमजोर फसल के चलते पहले से ही ख़राब थी, अब लॉकडाउन के चलते उनके बागों के सौदे भी इस बार नहीं हो पाए हैं। उनका कहना है कि अमूमन अप्रैल आते-आते बाहर के व्यापारी बागों का सौदा बौर के आधार पर कर लेते थे पर इस बार वे भी नहीं आ पाए हैं।
जिन लोगों को बाहर के देशों में सप्लाई के ऑर्डर मिलते थे, वे भी खाली हाथ बैठे हैं। मलिहाबाद के बागवान और नफीस नर्सरी के मालिक शबीहुल हसन का कहना है कि देर तक चली सर्दी, फरवरी-मार्च की बारिश के चलते आम की फसल पहले से ही कमजोर थी और अब लॉकडाउन ने कमाई की सारी उम्मीदें तोड़ दी हैं।