अब गाँवों में गाय-बैल के आतंक से किसान परेशान
बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित गोरक्षकों की कृपा से उत्तर प्रदेश के गाँव अब गायों और बैलों के आतंक से जूझ रहे हैं। इन गाँवों में स्वच्छंद घूम रहे बैलों और गायों के झुंड खेतों में खड़ी फ़सल तबाह कर रहे हैं। अलीगढ़ के गाँवों में किसानों ने आवारा गायों और बैलों के झुंड को स्थानीय स्कूलों तथा दूसरे सरकारी दफ़्तरों में क़ैद करके विरोध जताने का नया तरीक़ा शुरू किया है।
पुलिस और प्रशासन इन आवारा पशुओं को गौशालाओं में रखवाने के लिए परेशान है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में आवारा गायों और बैलों पर नियंत्रण की माँग को लेकर लगातार प्रदर्शन भी शुरू हो गए हैं। ख़ास बात यह है कि आवारा गाय-बैलों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाले किसान हिन्दू हैं। कई इलाक़ों में मुसलमान किसानों ने तो गाय पालना ही बंद कर दिया है।
आवारा पशुओं की समस्या बढ़ी
2017 में योगी सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेश में आवारा गायों और बैलों की समस्या तेज़ी से बढ़ी है। योगी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद जिन कामों को उच्च प्राथमिकता दी, उसमें गोरक्षा शामिल है। इसके बाद से गाँवों में गोरक्षा के नाम पर अराजक लोगों की भीड़ खड़ी हो गई है। ये गोरक्षक गायों और बैलों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने वाले किसानों पर भी बेरोकटोक हमला करते हैं। मुसलिम गायपालक किसानों और जानवर बेचने-ख़रीदने का धंधा करने वाले मुसलिम व्यापारियों पर कई जगह हमले भी हुए।
गोरक्षकों के आतंक से परेशान कई गाँवों के मुसलिम किसानों ने गाय पालना भी बंद कर दिया। लेकिन ताज़ा समस्या मुसलिम गाय पालकों की तरफ़ से नहीं है। इन दिनों हिंदू किसान आवारा गाय-बैल के ख़िलाफ़ खड़े हो रहे हैं। अलीगढ़ के जिला अधिकारी चंद्रभूषण सिंह ने संवाददताओं को बताया कि इसकी शुरुआत तमाेतिया गाँव से हुई।
सबसे पहले इस गाँव के किसानों ने एक स्कूल के अहाते में क़रीब दो सौ आवारा गाय-बैलों को क़ैद कर दिया। स्कूल में बच्चों की पढ़ाई बंद हो गई। बाद में जिला प्रशासन ने इन गायों और बैलों को आसपास की गोशालाओं में भेज कर स्कूल को मुक्त कराया। लेकिन समस्या यहीं ख़त्म नहीं हुई। आस पास के कई गाँवों के किसानों ने अपने-अपने इलाक़ों से आवारा गायों और बैलों को इकट्ठा करके स्कूलों या सरकारी दफ्तरों के अहातों में बंद करना शुरू किया तो प्रशासन के हाथ-पाँव फूल गए।
योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरक्षा को प्राथमिकता दी है। इसके बाद से गाँवों में गोरक्षा के नाम पर अराजक लोगों की भीड़ खड़ी हो गई है। ये गोरक्षक पशुओं को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने वाले किसानों पर भी हमला कर चुके हैं।
इतनी बड़ी संख्या में पशुओं को रखने के लिए आस पास में पर्याप्त गोशाला नहीं है। ज़िला प्रशासन के मुताबिक़, मोहकमपुर, केसर गंगेरी और आस पास के कई गाँवों के किसानों ने तीन-चार दिनों के भीतर इस इलाक़े के स्कूलों में क़रीब 8 सौ आवारा गायों और बैलों को क़ैद कर दिया। कुछ इलाक़ों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी आवारा पशु क़ैद किए गए। अलीगढ़ के जिलाधिकारी चन्द्रभूषण सिंह इसे राजनीति से प्रेरित मानते हैं और किसानों के ख़िलाफ़ पुलिस की कार्रवाई की चेतावनी भी दे चुके हैं। लेकिन किसान आवारा पशुओं को हटाने की माँग पर डटे हुए हैं।
दरअसल, मुख्यमंत्री के गोरक्षा अभियान के बाद से आवारा पशुओं की समस्या बड़ी तेज़ी से बढ़ रही है। ये आवारा पशु कभी न कभी पालतू रहे थे, इसलिए वे गाँव के पास ही झुंड बनाकर पड़े रहते हैं। भूख मिटाने के लिए वे किसानों के खेत में खड़ी फ़सल पर टूट पड़ते हैं। ये रबी का मौसम है। खेतों में गेहूँ, चना और दूसरी फ़सलें खड़ी हैं। आवारा गाय और बैल इसी खड़ी फ़सल को तबाह कर रहे हैं। आवारा पशुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है।
नहीं रही गाय-बैल की ज़रूरत
दरअसल, गाय जब दूध देना बंद कर देती है तो किसान ही उन्हें आवारा छोड़ देते हैं। ट्रैक्टर आने के कारण खेती में अब बैल की कोई ज़्यादा उपयोगिता नहीं रह गई है। दूध देना बंद कर देने वाली गायों और बेकार बैलों को किसान पहले पशु कारोबारियों को बेच देते थे। गो रक्षा ब्रिगेड ने जब से पशु कारोबारियों पर भी हमला शुरू किया तब से उत्तर प्रदेश में बेकार गाय-बैल ख़रीदने वालों ने इस व्यापार से हाथ खींच लिया है। किसानों के पास अब उन्हें आवारा छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। एक गाय या बैल को एक दिन खिलाने का ख़र्च दो सौ से पाँच सौ रुपये आता है और ज़्यादातर किसान बेकार पशु पर इतनी रक़म ख़र्च करने के लिए तैयार नहीं हैं।
ख़र्च के कारण ही गोशाला के संचालक भी ज़्यादा जानवर रखने के लिए तैयार नहीं है। 27 दिसंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को आदेश दिया कि इन गायों की पर्याप्त देखभाल की जाए। इसी क्रम में उन्होंने सार्वजनिक चरागाह पर से अतिक्रमण हटाने का भी आदेश दिया। मुख्यमंत्री ने इसकी पूरी योजना बनाने की ज़िम्मेदारी मुख्य सचिव अनूप चंद्र पाण्डे को दी है। स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि इसके लिए फ़ंड की कमी है और तुरत-फुरत कोई उपाय मुश्किल है।
मुसलिम गायपालकों ने की तौबा
यह एक ऐसी समस्या है जो साल दर साल बढ़ती ही जाएगी, क्योंकि दूध देना बंद करते ही किसान गायों को आवारा छोड़ने के लिए मजबूर हैं। नोएडा और ग़ाज़ियाबाद के किसान भी इस तरह के आवारा जानवरों पर प्रतिबंध लगाने की माँग को लेकर प्रदर्शन कर चुके हैं। इन इलाक़ों के मुस्लिम गायपालक इस धंधे से ही बाहर हो रहे हैं। इस इलाक़े के किसान बदर-उल-इसलाम राजनीति में भी अच्छी पकड़ रखते हैं। 2004 में उन्होंने बीजेपी के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा और महज़ 8 वोटों से हारे।
इलाम ने हाल में अपनी 2 गायों को बेच दिया। वे मेरठ के सैदत गाँव के हैं। इस गाँव में मुसलमानों की आबादी क़रीब 7 हज़ार और हिन्दुओं की महज 200 है, फिर भी यहाँ के ज़्यादातर किसान गाय पालना बंद कर रहे हैं। उनका कहना है कि गोरक्षकों के आतंक के कारण वे अपनी गायों को चरागाह में या इलाज के लिए अस्पताल में भी नहीं ले जा सकते।
पिछले कुछ समय में गो रक्षकों के पशु कारोबारियों पर हमला करने की कुछ घटनाएँ हुईं। इस कारण बेकार गाय-बैल ख़रीदने वालों ने इस काम को करना बंद कर दिया। किसानों के पास अब उन्हें आवारा छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।
गोरक्षा के नाम पर वसूली
किसानों का यह भी आरोप है कि गोरक्षकों के नाम पर वसूली करने वाले कई गैंग सक्रिय हो गए हैं और मनमाना पैसा नहीं मिलने पर वे किसानों को निशाना बनाते हैं।
अलीगढ़, मेरठ, नोएडा और ग़ाज़ियाबाद जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज़िलों के किसानों की बेचैनी सामने आ चुकी है। लेकिन यह समस्या सिर्फ़ इसी इलाक़े की नहीं है।
बीजेपी शासित सभी राज्यों में गो रक्षकों का आतंक बढ़ने की रिपोर्ट मिल रही है। बंदर और नीलगाय जैसे जंगली जानवरों से किसान पहले से ही परेशान थे। आवारा गाय और बैलों ने उनकी समस्या और बढ़ा दी है। उत्तर प्रदेश में जन्मे हिंदी के प्रमुख कवि धूमिल की एक कविता इस संदर्भ में आज भी मौज़ूँ लगती है, “भारत के फड़फड़ाते हुए नक़्शे पर गाय ने गोबर कर दिया है”।