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जीएसटी वसूली 7% कम हुई, पर ख़बर छपी, लगातार 6 महीने वसूली बढ़ी! 

जीएसटी वसूली 7% कम हुई, पर ख़बर छपी, लगातार 6 महीने वसूली बढ़ी! 

आए दिन अख़बारों में खबर छपती है, जीएसटी वसूली बढ़ी। सरकारी विज्ञप्ति के आधार पर गैर बिज़नेस अख़बारों में भी यह ख़बर पहले पन्ने पर छप जाती है। आज 'द हिन्दू' जैसे अखबार में शीर्षक है, 'जीएसटी वसूली रिकार्ड ऊँचाई पर'।

आए दिन अख़बारों में खबर छपती है, जीएसटी वसूली बढ़ी। सरकारी विज्ञप्ति के आधार पर गैर बिज़नेस अख़बारों में भी यह ख़बर पहले पन्ने पर छप जाती है। आज 'द हिन्दू' जैसे अखबार में शीर्षक है, 'जीएसटी वसूली रिकार्ड ऊँचाई पर'।

बेशक वसूली बढ़ना ख़बर है, लेकिन सरकारी प्रेस विज्ञप्ति ख़बर ही नहीं प्रचार भी होता है। ख़बर-छापना या नहीं छापना संपादक के विवेक का मामला है। किस ख़बर को महत्व देना है और किसे नहीं यह भी संपादकीय विवेक का मामला है। लेकिन ख़बर से जो सवाल उठे उसका जवाब तो ख़बर में होना चाहिए। यह संपादकों को पहली सीख होती है। 

टीआरपी पत्रकारिता

टीआरपी पत्रकारिता में 'बिना ड्राइवर की गाड़ी' और 'भूत दिखा' जैसी खबरें चलती हैं, लेकिन मंदी और लॉकडाउन की बंदी के बाद कई कॉलम सेंटीमीटर में यह बताया जाए कि जीएसटी वसूली बढ़ी तो पहला सवाल होगा कि कैसे बढ़ी। आधार तो साफ है कि पिछले साल या पिछली तिमाही के मुकाबले बढ़ रही है, लेकिन उससे रिकार्ड जैसी बात नहीं होती है।

इस प्रचार के दो मकसद हैं – जीएसटी की प्रशंसा और अर्थव्यवस्था को ठीक होता बताना। पर अर्थव्यवस्था ऐसे प्रचारों से ठीक नहीं होने वाली है और इसे सरकार जितनी जल्दी मान ले उतना ही अच्छा है।

कारण नहीं बताते

यह दिलचस्प है कि ख़बर के साथ कोई अख़बार नहीं बताता कि सरकार को अलादीन का कौन सा चिराग मिल गया है कि जीएसटी वसूली बढ़ती जा रही है। जीएसटी वसूली बढ़ रही है मतलब कारोबार अच्छा हो रहा है, बिक्री बढ़ गई और ऐसे तमाम कारण हो सकते हैं।

लेकिन कारण पर जोर नहीं है। कारण बताया जाए तो खबर संतोषजनक रहेगी और यह कोई मुश्किल भी नहीं है। आँकड़े तो सब होते ही हैं, सिर्फ बताने के लिए कहा जाना है। पर कहा नहीं जाता है क्योंकि उसकी जरूरत ही नहीं समझी जाती है।

प्रचारक जानते हैं कि ख़बर बिना आधार छप जाएगी, सवाल कोई करेगा नहीं और करेगा तो उसकी कोई बिसात नहीं है और प्रचारकों तथा ट्रोल सेना उनसे निपट लेगी। ये सब ग़ैर आधिकारिक उपाय हैं, फिर भी। 

(2 अप्रैल 2021) प्रकाशित ख़बर के अनुसार लगातार छह महीने से जीएसटी वसूली एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रह रही है। पर तथ्य यह है कि लगातार छह महीने तक एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की वसूली के बावजूद 20-21 में कुल वसूली 11.37 लाख करोड़ रुपए हुई।

यह कोविड-19 या लॉकडाउन से पहले के वर्ष 2019-20 के 12.22 लाख करोड़ रुपए के मुकाबले करीब सात प्रतिशत कम है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि पूरे साल की वसूली कम हुई फिर भी छह महीने प्रचार किया गया कि जीएसटी वसूली बढ़ गई। 

स्थिति समान्य?

जीएसटी की वसूली बढ़ने का कारण सख्ती है। यह ख़बर में भी कहा गया है। लेकिन मंत्रालय ने कहा है, यह महामारी के बाद तेजी से स्थिति समान्य होने का स्पष्ट संकेत है। इसी खबर में आगे कहा गया है यह जीएसटी ऑडिट की बंदी और सरकार द्वारा अनुपालन तथा चोरी रोकने के उपाय सख्त किए जाने के कारण है।

चोरी रोकने के उपायों की सख्ती पर कोई एतराज नहीं हो सकता है। 

अनुपालन की सख्ती का मतलब है कि कोरोना के टीके पर भी टैक्स लिया जा रहा है। अब करोड़ों लोगों को सरकारी पैसे से टीके लगें और उनपर टैक्स भी लगे तो ऐसे टैक्स और वसूली बढ़ने का क्या मतलब?

इससे अर्थव्यवस्था सुधरने का क्या लाभ। कायदे से अर्थव्यवस्था सुधर रही है, रिकार्ड वसूली हो रही है तो टैक्स नहीं होना चाहिए था। वैसे भी यह सरकार का पैसा सरकार के पास ही तो जा रहा है। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे और भी उदाहरण मिल जाएंगे। 

वसूली में सख़्ती

वसूली में सख़्ती का आलाम यह है कि आप कोई भी छोटा मोटा कारोबार शुरू करना चाहें या कर रहे हैं तो आपको जीएसटी पंजीकरण करवाना ज़रूरी है। पहले नियम था और जीएसटी में भी बाद में प्रावधान किया गया कि एक निश्चित राशि से कम कारोबार करने वालों के लिए जीएसटी पंजीकरण जरूरी नहीं है।

 - Satya Hindi

लेकिन पते के सबूत, बैंक खाता खोलने और यहां तक कि एमएसएमई कारोबार के रूप में पंजीकरण के लिए भी यह एक अप्रैल से ज़रूरी कर दिए जाने की खबर थी। 

अब साइट पर पता चला कि उसे बेहतर और अपडेट किया जा रहा है तथा यह 4 अप्रैल से उपलब्ध होगा। पर ज़बरन पंजीकरण कराने के नियम से कम पैसे वालों के लिए कारोबार शुरू करना मुश्किल है और शुरू कर दे तो अनुपालन मुश्किल है, उत्पाद या सेवा महंगी हो जाएगी तो ग्राहक भाग जाएंगे और कई बार पंजीकरण न होने से ग्राहक नहीं मिलते हैं।

ऐसी स्थिति में छोटा कारोबार बहुत मुश्किल हो गया है और इसपर ध्यान दिए बगैर ना बड़े कारखाने लगेंगे ना लाखों बेरोजगारी को नौकरी मिलेगी। प्रचार सो जो हो सकता है वह होता रहेगा।

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