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अमेरिकी फ़ेसबुक और चीनी टिक-टॉक की लड़ाई भारत में

अमेरिकी फ़ेसबुक और चीनी टिक-टॉक की लड़ाई भारत में

अमेरिका की फ़ेसबुक और चीन की टिक-टॉक के बीच जंग छिड़ी है। और मैदान बना है भारत। भारत में पहले से ही पैठ बनाई हुई फ़ेसबुक को अब टिक-टॉक ने कड़ी चुनौती दी है। 

अमेरिका की फ़ेसबुक और चीन की टिक-टॉक के बीच जंग छिड़ी है और मैदान बना है भारत। भारत में पहले से ही पैठ बनाई हुई फ़ेसबुक को अब टिक-टॉक ने इतनी कड़ी चुनौती दी है कि एक मामले में तो वह फ़ेसबुक से भी आगे निकल गई है। पिछली तिमाही में ऐप डाउनलोड किए जाने के मामले में टिक-टॉक ने फ़ेसबुक को भी पीछे छोड़ दिया है। इस मामले में टिक-टॉक की भारत में काफ़ी ज़्यादा पहुँच हो गई है।

इंटरनेट यूज करने वाले युवाओं को लुभाने में टिक-टॉक काफ़ी तेज़ी से आगे बढ़ी है। 2019 की पहली तिमाही में टिक-टॉक ऐप को दुनियाभर में 18.8 करोड़ लोगों ने डाउनलोड किया है, इसमें से 47 फ़ीसदी डाउनलोड भारत में किया गया। जबकि इस मामले में फ़ेसबुक दूसरे स्थान पर रही, इस ऐप को 17.6 करोड़ लोगों ने डाउनलोड किया है जिसमें से 21 फ़ीसदी लोगों ने भारत में डाउनलोड किया। बता दें कि फ़ेसबुक को मोबाइल के अलावा डेस्कटॉप पर भी चलाया जाता है, जबकि टिक-टॉक छोटे-छोटे वीडियो वाली एक मोबाइल ऐप है। टिक-टॉक के इस गति से बढ़ने के बाद एक सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या फ़ेसबुक को टिक-टॉक से ख़तरा है

आँकड़ों का विश्लेषण करने वाली संस्था स्टैटिस्टा के अनुसार भारत में फ़ेसबुक के क़रीब 30 करोड़ यूजर हैं, जबकि टिक-टॉक के 20 करोड़ यूजर हैं। इसका अनुमान है कि 2020 तक इंटरनेट उपयोग करने वाले 67 फ़ीसदी लोग 35 वर्ष से कम उम्र के होंगे। यानी यह एक बड़ी संभावना होगी।

हालाँकि टिक-टॉक से फ़ेसबुक को निकट भविष्य में ख़तरा नहीं है, लेकिन सोशल मीडिया पर नज़र रखने वाले और इडवरटाइजिंग से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों कंपनियों को पहली बार इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले और युवाओं पर पकड़ बनानी होगी। भारत की क़रीब आधी आबादी युवा है और छोटे-छोटे वीडियो के प्लेटफ़ॉर्म काफ़ी तेज़ी से बढ़ रहे हैं, टिक-टॉक लोगों में काफ़ी लोकप्रिय हुआ है। हालाँकि, डिजिटल मीडिया से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि फ़ेसबुक के लिए फ़िलहाल के लिए यह ख़तरा नहीं है।

हालाँकि टिक-टॉक कड़ी प्रतिस्पर्धा के लिए पूरी तरह से तैयार है। इकॉनमिक टाइम्स को दिए ई-मेल से जवाब में टिक-टॉक की ओर से कहा गया है, 'भारत के बाजार में कुछ ऐसा अप्रत्याशित होने जा रहा है कि 20-40 करोड़ लोग जल्द ही इंटरनेट से जुड़ जाएँगे जो टिक-टॉक को अपने पहले सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के रूप में उपयोग कर सकते हैं।'

फ़ेसबुक क्यों है चिंतित

आँकड़ों का विश्लेषण करने वाले एक संगठन सेंसर टावर में डाटा एनालिस्ट सैंडर्स ट्रान ने कहा कि फ़ेसबुक के लिए यह काफ़ी महत्वपूर्ण है कि वह भारत में अपना दबदबा बनाए रखे। चीन में फ़ेसबुक प्रतिबंधित है, इसलिए भारत ही वह जगह है जहाँ बड़ी संख्या में नये यूजर को जोड़ा जा सकता है। भारत दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और जनसंख्या के लिहाज़ से दूसरा सबसे बड़ा देश है।

विशेषज्ञों का मानना है कि चीन टेक्नोलजी में बड़ा खिलाड़ी बनकर उभरा है और इस क्षेत्र में यह 2020 में भी छाया रह सकता है। टिक-टॉक की युवाओं में लोकप्रियता इसका एक प्रमाण है। 

सेंसर टावर का आँकड़ा है कि भारत में फ़ेसबुक ऐप डाउनलोड 2018 में 24.9 फ़ीसदी थी जो दो साल पहले तक सिर्फ़ 11.8 फ़ीसदी थी। यानी फ़ेसबुक के लिए यह अच्छी ख़बर रही है, लेकिन हाल के दिनों में टिक-टॉक के स्पर्धा में आने के बाद से फ़ेसबुक की चिंता बढ़ गई है।

यही वजह है कि पिछले साल फ़ेसबुक ने छोटे-छोटे वीडियो बनाने के मामले में टिक-टॉक से मुक़ाबला करने के लिए लैसो ऐप लॉन्च किया था। हालाँकि लैसो ने वह रफ़्तार नहीं पकड़ी जिस रफ़्तार से टिक-टॉक आगे बढ़ती रही।

चिंता की बात तो टिक-टॉक के लिए भी रही है। वीडियो कंटेंट को लेकर टिक-टॉक विवादों में रहा है। यह मामला तो एक बार कोर्ट तक पहुँच गया था और कुछ समय के लिए इसे प्रतिबंधित भी किया गया था। बच्चों के लिए नुक़सानदेह होने की चिंताओं को लेकर मद्रास हाई कोर्ट द्वारा कुछ समय के लिए टिक-टॉक पर हाल ही में लगाये गये प्रतिबंध के बाद भी इसकी लोकप्रियता में कमी नहीं आयी है। और यही वजह है कि यह फ़ेसबुक के सामने एक कड़ी प्रतिस्पर्द्धा पेश करने की स्थिति में है।

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