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असम के बीजेपी विधायक की भी हेट स्पीच नहीं हटाई थी, फ़ेसबुक ने माना

असम के बीजेपी विधायक की भी हेट स्पीच नहीं हटाई थी, फ़ेसबुक ने माना

फ़ेसबुक इंडिया पर यह आरोप लगा है कि उसने असम के बीजेपी नेता के नफ़रत फैलाने वाले पोस्ट को जानबूझ कर नहीं हटाया।

भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के हेट स्पीच नहीं हटाने के मुद्दे पर फ़ेसबुक का संकट बढ़ता ही जा रहा है। नए-नए मामले सामने आ रहे हैं और कंपनी से उसका उचित जवाब देना नहीं बन पा रहा है। एक नए मामले में फ़ेसबुक इंडिया पर यह आरोप लगा है कि उसने असम के बीजेपी नेता के नफ़रत फैलाने वाले पोस्ट को जानबूझ कर नहीं हटाया। फ़ेसबुक ने इसे मान लिया है। 

मुसलमान-विरोधी पोस्ट

मशहूर अमेरिकी पत्रिका 'टाइम मैगज़िन' ने एक ख़बर में दावा किया है कि असम के बीजेपी विधायक शिलादित्य देव ने फ़ेसबुक पर एक पोस्ट डाला था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि 'एक मुसलमान आदमी ने एक बंगाली लड़की को नशा खिला दिया और उसके बाद उसके साथ बलात्कार किया।' इसके बाद शिलादित्य देव ने लिखा, 'ये बांग्लादेशी मुसलमान हमारे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं।'

'टाइम' का कहना है कि यह घटना 2019 की है, उसके बाद एक साल तक फ़ेसबुक ने इस पोस्ट को नहीं हटाया। फ़ेसबुक इंडिया ने ग़ैरसरकारी संगठन 'आवाज़' की ओर से यह मुद्दा उठाने पर टाइम से कहा, 

'जब आवाज़ ने इस ओर ध्यान दिलाया तो हमने इसे पहली बार देखा था, हमारे रिकॉर्ड में यह दर्ज है कि इसे हेट स्पीच माना गया था, पर हम इसे हटा नहीं पाए।'


फ़ेसबुक इंडिया के जवाब का अंश

नहीं हटाई हेट स्पीच

'टाइम मैगज़िन' ने अपनी ख़बर में यह भी कहा कि 'आवाज़' की अलाफ़िया जोएब ने फ़ेसबुक के साउथ एशिया के पब्लिक पॉलिसी डाइरेक्टर शिवनाथ ठकराल से इस मुद्दे पर फ़ोन पर बात की तो वह बीच में ही उठ कर चले गये। 

बता दें कि इसके पहले वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक ख़बर में कहा था कि तेलंगाना के बीजेपी विधायक टी राजा सिंह के हेट स्पीच को पकड़ा गया था। पर फ़ेसबुक इंडिया की पब्लिक पॉलिसी डाइरेक्टर आंखी दास ने उसे हटाने से यह कह कर रोक दिया कि ऐसा करने से कंपनी के भारत में व्यवसाय पर बुरा असर पड़ेगा।

'टाइम मैगज़िन' का कहना है कि भारत में मानवाधिकार के मुद्दे पर स्वतंत्र रिपोर्ट तैयार करने के लिए फ़ेसबुक ने किसी एजेंसी से कहा है। इससे हिंसा भड़काने में हेट स्पीच के असर का आकलन किया जा सकेगा। अमेरिकी क़ानून कंपनी फोली होग को इस पर रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है। इस तरह फ़ेसबुक ने इसके पहले म्यांमार में भी ऐसी ही एक रिपोर्ट तैयार की है। 

फ़ेसबुक पर म्यांमार में यह आरोप लगा था कि उसने रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ़ नफ़रत फैलाने वाले पोस्ट नहीं हटाए। फ़ेसबुक ने इसे स्वीकार भी किया था।

सत्तारूढ़ दल से सांठगांठ

समझा जाता है कि फ़ेसबुक सत्तारूढ़ दल के लोगों के हेट स्पीच को जानबूझ कर नज़रअंदाज करती है ताकि सरकार के साथ उसका समीकरण न बिगड़े।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि जिस समय फ़ेसबुक इंडिया ने तेलंगाना के बीजेपी विधायक के हेट स्पीच को नहीं हटाया, उस समय फ़ेसबुक इंक भारत में बड़े पैमाने पर निवेश की संभावना तलाश रहा था। बाद में उसने रिलायंस जियो के साथ करार किया और उसमें 5 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया। फ़ेसबुक की रणनीति भारत के डिजिटल बाज़ार और डिजिटल पेमेंट प्रणाली पर मजबूत पकड़ बनाना है। वह ऐसे में भारत सरकार के साथ बेहतर संबंध रखना चाहता है।

बहरहाल, फ़ेसबुक इंक ने एक कमेटी का गठन किया है, जिसका मकसद इस तरह के हेट स्पीच को रोकने में कंपनी की नाकामियों की ओर ध्यान दिलाना होगा। वह इसके साथ ही उपाय सुझाएगी जिससे इस तरह की गलती भविष्य में न हो। लेकिन इस कमेटी का गठन भी दो साल बाद हुआ है।

दूसरी ओर, अपने कर्मचारियों ने बग़ावत का झंडा बुलंद कर दिया है। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक ख़बर में कहा है कि फ़ेसबुक के मुसलमान कर्मचारियों ने कंपनी प्रबंधन को इस मुद्दे पर एक चिट्ठी लिख कर कड़ा विरोध जताया है।

भारत, अमेरिका और मध्य-पूर्व में फ़ेसबुक में काम करने वाले मुसलमानों ने 'मुसलिम एट दे रेट ऑफ़ स्टाफ़र्स फ्रॉम इंडिया, यूएस एंड मिडिल ईस्ट' नाम का समूह बनाया है। इसने कंपनी के शीर्ष अधिकारियों से कहा है कि कंपनी की कंटेट नीति को लागू करने के मामले में बड़े और नामी यूजर्स से जुड़े मामलों में अधिक पारदर्शिता अपनाने की ज़रूरत है। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि राजनीतिक प्रभाव का कम से कम असर पड़े।

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