पर्दाफाशः लैटरल एंट्री में अब दलित सुर, तो 6 साल पहले आरक्षण क्यों हड़पा था
छह वर्षो में कितना कुछ बदल गया। ये असर भाजपा को मिली मात्र 240 सीटों का है। शनिवार को अखबारों में यूपीएससी का एक विज्ञापन छपा, जिसमें लैटरल एंट्री के जरिए 45 वरिष्ठ पदों पर नियुक्ति के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे। इन वरिष्ठ पदों पर भारत की आजादी से अब तक सिविल सर्विसेज के जरिए चुने गए या डेपुटेशन पर राज्यों से भेजे गए आईएएस जगह पाते रहे हैं। लेकिन मोदी सरकार ने पिछले दरवाजे से उच्च पदों पर सीधी नियुक्तियों के लिए लैटरल एंट्री का रास्ता खोजा या पुराने को जिन्दा किया। लेकिन इस विज्ञापन को मंगलवार को मोदी सरकार ने खुद वापस ले लिया। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यूपीएससी का विज्ञापन पीएम मोदी के निर्देश पर वापस लिया गया है। मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि हाशिये पर पड़े लोगों के "सही प्रतिनिधित्व" के लिए "सामाजिक न्याय के प्रति संवैधानिक जनादेश" का हवाला देते हुए पीएम मोदी ने इसे वापस लेने को कहा है।
यह छिपी बात नहीं है कि शनिवार को विज्ञापन आया। रविवार को नेता विपक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस पर ऐतराज जताया कि इसमें आरक्षण क्यों हड़पा जा रहा है। आईएएस वाले युवक कहां जाएंगे। सरकार पर कोई असर नहीं हुआ। सोमवार को राहुल, खड़गे, अखिलेश और बसपा प्रमुख मायावती ने फिर से आरक्षण हड़पने का आरोप दोहराया और सरकार से कहा कि इस विज्ञापन को वापस लिया जाए। उसी दिन एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान और जेडीयू प्रवक्ता ने कहा कि हम इसके विरोध में हैं। सरकार से कहेंगे कि इसे वापस लिया जाए। तब सरकार को होश आया। मंगलवार को यूपीएससी का विज्ञापन वापस ले लिया गया। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। यह भाजपा को इस बार मिली 240 सीटों का असर है। छह साल पहले यानी 2018 से ही तो लैटरल भर्ती शुरू हो गई थी और मोदी सरकार अब तक 67 लोगों को लैटरल एंट्री के जरिए सरकार में उच्च पदों पर नियुक्त कर चुकी है। तब 2014 और 2019 में उसके पास प्रचंड बहुमत था। इस बार भी अगर उसके पास बहुमत होता तो न वो विपक्ष की बात सुनती और न एनडीए के घटक दलों की। इंडियन एक्सप्रेस ने 2018 से जुड़े दस्तावेजों की पड़ताल की है। सवाल यही है कि आपने 2018 में आरक्षण की परवाह क्यों नहीं की थी।
2018 में, नीति तैयार करते हुए, सरकार ने डीओपीटी के 1978 के निर्देश पर भरोसा करते हुए निष्कर्ष निकाला कि लैटरल एंट्री "डेपुटेशन जैसी चीज है और इसमें एससी/एसटी/ओबीसी के लिए अनिवार्य आरक्षण आवश्यक नहीं है।" लेकिन उस समय उसी डीओपीटी का 1978 का निर्देश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा जानबूझकर नजरन्दाज कर दिया गया था: डेपुटेशन या ट्रांसफर पोस्टिंग करते समय, 1978 के निर्देश में कहा गया था कि सरकार को "यह देखने का प्रयास करना चाहिए कि ऐसे पदों को उचित अनुपात में एससी / एसटी द्वारा भरा जाए।"
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19 मार्च, 2018 को कैबिनेट सचिवालय ने डीओपीटी को लैटरल एंट्री के तहत 50 पदों को भरने के लिए प्रधानमंत्री के निर्देश से अवगत कराया। कहा गया कि 10 विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में 10 संयुक्त सचिव, और 40 उप सचिव (डीएस)/निदेशक पदों के लिए "एक सामान्य विज्ञापन" दिया जाए। यानी स्पष्ट तौर पर प्रधानमंत्री ने इसके लिए कहा था।
23 अप्रैल, 2018 को पीएमओ ने साफ कर दिया कि लैटरल एंट्री नीति को हर हाल में लागू करना है। डीओपीटी ने अपने आरक्षण विंग से केवल दो दिनों में प्रतिनियुक्ति (सरकारी कर्मचारियों के लिए) या अनुबंध (निजी क्षेत्र के उम्मीदवारों के लिए) के माध्यम से पदों को भरने पर राय मांगी।
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25 अप्रैल, 2018 को आरक्षण विंग ने जवाब दिया कि 1967 और 1978 के डीओपीटी निर्देशों के अनुसार, डेपुटेशन या ट्रांसफर द्वारा भरी गई रिक्तियों में एससी/एसटी के लिए कोई आरक्षण नहीं था और आरक्षण पर कोई विशेष निर्देश नहीं था। अनुबंध के आधार पर भरे गए पदों के लिए. और 1978 के निर्देशों की "भावना को ध्यान में रखते हुए भी इसी तरह का नजरिया अपनाया जा सकता है।
9 मई, 2018 को सचिव (पर्सनल) के साथ एक बैठक के बाद, आरक्षण विंग को "एक स्पष्ट निर्णय" के लिए "अधिक विश्लेषणात्मक" सबमिशन फिर से प्रस्तुत करने के लिए कहा गया। आरक्षण विंग ने सिंगल-पोस्ट का आइडिया दिया। यानी सिंगल पोस्ट पर आरक्षण लागू ही नहीं होगा। मसलन मंत्रालय में उपसचिव के चार पद खाली हों तो भर्ती सिंगल पद की पर लैटरल एंट्री के जरिए बिना आरक्षण नियम लागू किए की जाए।
10 मई, 2018 को यह देखते हुए कि "इस योजना के तहत भरा जाने वाला हर पद एक सिंगल पोस्ट है जहां आरक्षण लागू नहीं होता है" आरक्षण प्रभाग ने नोट पेश किया: "वर्तमान में, इन पदों को भरने की व्यवस्था को एक माना जा सकता है। जहां एससी/एसटी/ओबीसी के लिए अनिवार्य आरक्षण आवश्यक नहीं है। हालाँकि, इसमें यह भी कहा गया है कि यदि विधिवत योग्य एससी/एसटी/ओबीसी उम्मीदवार उपलब्ध हैं, तो उन पर विचार किया जाना चाहिए और समान स्थिति वाले मामलों में ऐसे उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। आरक्षण विंग ने अपने बचाव का रास्ता इसमें बाकायदा होशियारी से रखा था।
16 मई, 2018 को 40 डीएस/निदेशक पदों की लेटरल एंट्री पर प्रधान मंत्री के सचिव की अध्यक्षता में सचिव (डीओपीटी) के साथ एक बैठक आयोजित की गई।
11 जून, 2018 को कैबिनेट सचिवालय ने विभिन्न मंत्रालयों में डीएस/डीआईआर पदों के वितरण का संकेत देने वाली एक सूची "आगे बढ़ा" दी।
18 जुलाई, 2018 को सचिव (कार्मिक) द्वारा आरक्षण मुद्दे की जांच करने के बाद, 18 जुलाई, 2018 को डीओपीटी ने माना कि “एक सामान्य विज्ञापन के परिणामस्वरूप विशेषज्ञों के एक समूह का चयन हो सकता है।
नतीजा
- डीओपीटी ने तर्क दिया कि लैटरल एंट्री योजना के तहत, "प्रत्येक पद को प्रत्येक विभाग/मंत्रालय की आवश्यकता के अनुरूप विशेष योग्यता और अनुभव की आवश्यकता होती है, जहां पद भरा जाना है" और आरक्षण ऐसे एकल पदों पर लागू नहीं होता है। लेटरल एंट्री स्कीम के तहत अब तक 63 पद भरे जा चुके हैं।
लैटरल एंट्री का जब विपक्ष की ओर से पिछले रविवार को जोरदार विरोध हुआ था तो सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पत्रकारों से कहा था कि इसे तो कांग्रेस सरकार 2005 में लाई थी। लेकिन जब मंगलवार को सरकार ने लैटरल एंट्री का विज्ञापन वापस ले लिया तो अश्विनी वैष्णव ने फौरन सुर बदले और पीएम मोदी के कसीदे गढ़ने लगे और कांग्रेस वाले तथ्य का दोबारा भूल से भी जिक्र नहीं किया। पत्रकार उनसे सवाल करते रहे कि अगर कांग्रेस ने लैटरल एंट्री बनाया था तो लागू क्यों नहीं किया और उनकी सरकार ने इसे लागू क्यों नहीं किया। इस तरह की मुहिम में सिर्फ अश्विनी वैष्णव ही शामिल नहीं थे, कुछ तथाकथित पत्रकार भी लगे हुए थे।