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पर्दा जो उठ गया...2004 में जब 'भारत' नाम का भाजपा ने विरोध किया था!

पर्दा जो उठ गया...2004 में जब 'भारत' नाम का भाजपा ने विरोध किया था!

भारत और इंडिया के नाम पर भाजपा और विपक्षी दलों में घमासान मचा हुआ है। हालांकि 2004 में जब भारत के नाम का प्रस्ताव यूपी विधानसभा में पास किया गया तो भाजपा ने इसके विरोध में सदन का बहिष्कार कर दिया था। जानिए पूरा घटनाक्रमः

जी20 शिखर सम्मेलन से जुडे़ तमाम कार्यक्रमों में मेहमानों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रेसीडेंट इंडिया की जगह प्रेसीडेंट ऑफ भारत लिखा हुआ निमंत्रणपत्र भेजा। इसके बाद भाजपा नेताओं और मंत्रियों ने इसका स्वागत करना शुरू कर दिया। देश में यह संदेश गया कि मोदी सरकार देश का नाम सिर्फ भारत चाहती है, वो इंडिया शब्द के खिलाफ है। इसके बाद प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत का पत्र भी सामने आ गया। इस पर विपक्ष ने इस तरह इंडिया बदले जाने का विरोध शुरू कर दिया। विपक्ष ने कहा कि चूंकि उनके गठबंधन का नाम इंडिया है। इसलिए भाजपा और केंद्र सरकार डर गई है। लेकिन भाजपा और केंद्र सरकार अपनी इस पहल को सही करार देती रही। लेकिन यही भाजपा है, जिसने 2004 में यूपी विधानसभा में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के उस प्रस्ताव का विरोध किया, जिसमें इंडिया का नाम बदलकर भारत करने की बात थी। भाजपा ने प्रस्ताव रखते ही यूपी विधानसभा से वॉकआउट कर दिया। 

मिन्ट की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2004 में, मुलायम सिंह यादव की कैबिनेट ने एक प्रस्ताव पारित किया कि संविधान में संशोधन करके 'इंडिया, दैट इज़ भारत' की बजाय 'भारत, दैट इज़ इंडिया' लिखा जाना चाहिए। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने फिर यह प्रस्ताव राज्य विधान सभा में रखा, भाजपा को छोड़कर सभी ने इसे स्वीकार कर लिया। भाजपा ने प्रस्ताव पारित होने से पहले ही वॉकआउट कर दिया था।

प्रेसीडेंट ऑफ भारत और प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत के कागजात, निमंत्रणपत्र सामने आने के बाद यह कयास लगाया जा रहा है कि विधानसभा के विशेष सत्र में इंडिया को खत्म करके सिर्फ भारत नाम करा प्रस्ताव लाया जा सकता है। विपक्ष को आशंका है कि 18 सितंबर से 22 सितंबर के बीच चलने वाले सत्र में मोदी सरकार देश का नाम बदलने का प्रस्ताव पारित कर सकती है। विपक्ष का आरोप है कि चूंकि विपक्षी गठबंधन ने अपना नाम इंडिया रख लिया है तो इससे केंद्र सरकार को चिढ़ हो रही है, इसलिए वो इंडिया शब्द हटाना चाहती है।

इस तरह की आशंकाएं इसलिए भी उठ रही हैं कि सरकार ने इस विशेष सत्र का एजेंडा अभी तक जारी नहीं किया है और उसे पूरी तरह गोपनीय बना दिया है। हालांकि कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष ने एजेंडा जारी करने की मांग की लेकिन सरकार एजेंडा पहले से नहीं बताने की जैसे कसम खा रखी है।

मुलायम सिंह यादव का इंग्लिश विरोध किसी समय चरम पर था। 2004 में इसी मंशा के साथ वो इंडिया को भारत से बदलने का प्रस्ताव लाया था। मुलायम खुद को सोशलिस्ट विचारक राम मनोहर लोहिया का अनुयायी बताते थे। लोहिया का अंग्रेजी को त्यागने का संकल्प एक समाजवादी रुख था, जिसे मुलायम मानते थे।

टाइम्स ऑफ इंडिया की उस समय की रिपोर्ट बताती है कि लोहिया की समझ थी कि अंग्रेजी ने पढ़े लिखे और अनपढ़ों के बीच विभाजन पैदा किया है और इसलिए इसकी जगह हिंदी को राजभाषा बनाया जाना चाहिए। मुलायम के समय सपा ने अपने घोषणापत्र में कहा था- “हमारा देश सदैव भारत के नाम से जाना जाता था। हालांकि, ब्रिटिश शासन के 200 वर्षों के दौरान इसका नाम इंडिया रखा गया था।''

बताया जाता है कि 2014 में ही तत्कालीन भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ संसद में इंडिया हटाकर सिर्फ भारत नाम रखने का प्रस्ताव लाए थे लेकिन पार्टी ने उन्हें कुछ संकेत दिया। जब यह प्रस्ताव सदन में आया और योगी आदित्यनाथ का नाम पुकारा गया तो वो मौजूद नहीं थे। यानी इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी। इस तरह भाजपा का भारत और इंडिया पर दोहरा स्टैंड शुरू से रहा है लेकिन अब वो इसे राष्ट्रवाद के रूप में पेश करना चाहती है।

यहां एक बात और भी महत्वपूर्ण है कि 18 सितंबर, 1949 को संविधान के अनुच्छेद 1 का मसौदा, जो राज्यों के संघ (समूह) को "इंडिया, यानी भारत" के रूप में संदर्भित करता है, जिसे औपचारिक रूप से संविधान सभा ने अपनाया था।

संविधान के अनुच्छेद 1 के अलावा, मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किए गए संविधान में किसी अन्य प्रावधान में "भारत" शब्द का उल्लेख नहीं है। यहां तक की संविधान की प्रस्तावना में "वी द पीपुल ऑफ इंडिया" (हम भारत के लोग) का ही उल्लेख है। यानी संविधान ने भी इंडिया को स्वीकार किया और संविधान अंग्रेजी में ही लिखा गया। आज भी भारत की मातृ भाषा हिन्दी होने के बावजूद अंग्रेजी का चलन ज्यादा है। भारतीय कॉरपोरेट बेशक आज भारत नाम का स्वागत कर रहा है लेकिन विदेशों में उसका सारा कारोबार इंडिया शब्द के नाम पर चलता है।

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