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आइये जानें: हमारी पृथ्वी पर जीवन कैसे आया?

आइये जानें: हमारी पृथ्वी पर जीवन कैसे आया?

हमारी पृथ्वी पर जीवन कैसे आया? यह बहुत ही गूढ़ प्रश्न है और उसका उत्तर पाना उतना ही जटिल भी है। प्रश्न है कि क्या पृथ्वी पर जीवन के लिए ज़रूरी तत्व पहले से उपलब्ध थे?

हमारी पृथ्वी पर जीवन कैसे आया? यह बहुत ही गूढ़ प्रश्न है और उसका उत्तर पाना उतना ही जटिल भी है। प्रश्न है कि क्या पृथ्वी पर जीवन के लिए ज़रूरी तत्व पहले से उपलब्ध थे, जिससे इस धरती पर ही प्रारम्भिक या आदिम जीवों की उत्पत्ति हुई या वे सूदूर अंतरिक्ष के किसी कोने से किसी छुद्र ग्रह या पुच्छल तारे के द्वारा लाए गए? क्या मंगल ग्रह पर भी अरबों साल पहले जीवन था? ऐसे अनगिनत गूढ़ सवालों के उत्तर जानने के लिए वैज्ञानिकों की तरफ़ से विगत काफी समय से लगातार गंभीर प्रयास होते रहे हैं। इस सवाल ने इस धरती के वैज्ञानिकों को भी बहुत ही संशय और भ्रम में डाल रखा है।

अमेरिका के एक विश्वविद्यालय मिनेसेटा के वैज्ञानिकों ने एक शोध से निष्कर्ष निकाला है। उस शोध निष्कर्ष के अनुसार सौरमंडल बनने के शुरुआती दिनों में हमारी पृथ्वी और मंगल पर एक धूमकेतु जीवन की सारी परिस्थितियों को लेकर आया। उन्होंने अपने शोध में आगे बताया है कि इस बात के पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि हमारी धरती के बनने के समय इस पर पर्याप्त मात्रा में कार्बन था या नहीं, जो जीवन के लिए बहुत ही ज़रूरी है, इसलिए इसकी बहुत बड़ी संभावना है कि सूदूर अंतरिक्ष से कोई धूमकेतु या छुद्र ग्रह पृथ्वी पर पर्याप्त मात्रा में कार्बन लाया हो! 

इसी प्रकार आयरलैंड की राजधानी डब्लिन के ट्रिनिटी कॉलेज के वैज्ञानिकों का एक अन्य मत है। उनके अनुसार अरबों साल पहले हमारी पृथ्वी के समुद्र के पानी के ऊपर ही संयोग से सूदूर अंतरिक्ष से आए एक क्षुद्र ग्रह या एस्ट्रॉएड और एक पुच्छल तारे में भयंकरतम् टक्कर से एक ऐसी विशिष्ठ परिस्थिति का निर्माण हुआ या एक ऐसा ढाँचा बना, जिससे इस पृथ्वी पर जीवन के शुरुआती लक्षण पैदा हुए। उक्त वैज्ञानिकों के दल ने बताया कि धूमकेतु और उस उल्का पिंड के टकराव से जो तत्व पृथ्वी के समुद्र के पानी में गिरे उसके रासायनिक प्रतिक्रिया के फलस्वरूप जटिल कार्बनिक अणुओं और ऊर्जा का निर्माण हुआ। यह उपयुक्त वातावरण समुद्र के पानी में बना जिसमें शुरुआती जीवन की संभावना पनपने की अपार संभावनाएँ अंतर्निहित थीं।

वैज्ञानिकों का एक समूह मानता है कि पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत कुछ छुद्र ग्रहों के टकराने की वजह से हुई। इन अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार ये आकाशीय पिंड बंदूक़ की गोली की तरह अमीनों अम्ल और इसी प्रकार के अन्य पदार्थों को पृथ्वी सहित मंगल जैसे अनेक ग्रहों पर भी तेज़ी से गिराए होंगे, ये पदार्थ जब वहाँ के समुद्री पानी में गिरे होंगे, तब उनके गिरने से पानी और अमीनों अम्ल में प्रतिक्रिया हुई होगी और एक विशिष्ट अणु बने होंगे। ये अणु इस धरती के प्रथम एककोशिकीय जीव के प्रतिनिधि बने होंगे, परन्तु अभी तक सभी वैज्ञानिक इस विषय पर एकमत नहीं हैं।

हाल ही में हुए बहुत से वैज्ञानिक शोधों ने इस धारणा को बहुत मज़बूत किया है कि हमारी धरती पर जीवन की शुरुआत किसी धूमकेतु से लाए जीवन के परमावश्यक तत्व से हुई।

वैज्ञानिकों के अनुसार अत्यधिक गर्म चट्टानों पर पानी गिरने से दोनों के बीच रासायनिक क्रिया हुई और एक जटिल कार्बनिक अणु का निर्माण हुआ।

वैज्ञानिकों के अनुसार जीवन के लिए छः तत्व क्रमशः कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, फॉस्फोरस और सल्फर अत्यंत ज़रूरी हैं। इन्हें वैज्ञानिकों की संक्षिप्त भाषा में अंग्रेजी के अल्फाबेट में 'सीएचओपीएस 'भी कहते हैं। इन्हीं छः तत्वों से हमारी पृथ्वी के ज़्यादातर जैविक अणुओं का निर्माण हुआ है। वैज्ञानिकों ने काफी पहले ही धूमकेतुओं में उक्तवर्णित छः तत्वों में शुरुआत के पाँच तत्वों को ढूँढ़ लिया था। फॉस्फोरस नामक तत्व बहुत पहले के वैज्ञानिक खोजों में अनुपस्थित था। परन्तु कुछ समय पहले  2016 में 67-पी चुर्युमोव गेरा सिमेन्को या कैटालिना नामक धूमकेतु हमारी धरती से बहुत नज़दीक से गुजरा। जर्मन एयर स्पेस और अमेरिकन स्पेस एजेंसी नासा के संयुक्त प्रोजेक्ट स्ट्राटोस्फेरिक ऑब्जर्वेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी या संक्षेप में सोफिया ने और यूरोपियन एजेंसी के रोसेटा अभियान के आँकड़ों के आधार पर फिनलैंड के तुर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं और एस्ट्रोफिजिक्स और सॉफ्टवेयर इंजीनियरों के दल ने इसका गहन अध्ययन किया, जो नोटिसेज ऑफ़ द रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायिटी की मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस शोध निष्कर्ष के अनुसार उक्त वर्णित इस धूमकेतु में जीवन के लिए अत्यावश्यक छः तत्वों में अंतिम तत्व फॉस्फोरस की उपस्थिति पायी गयी।

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धूमकेतुफ़ोटो साभार: ट्विटर/क्रिस्टोफर

जीवन के लिए फॉस्फोरस एक अति महत्वपूर्ण तत्व है। पृथ्वी पर जीवन का शुरुआती प्रादुर्भाव कैसे हुआ, इसकी खोज के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण खोज है। इसी प्रकार जीवन के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण तत्व कार्बन भी वैज्ञानिकों के अनुसार इस सौरमण्डल बनने के शुरुआती दिनों में इस पृथ्वी पर उपलब्ध नहीं था, क्योंकि पृथ्वी के अत्यधिक गर्म रहने की वजह से इस पर उपस्थित कार्बन भी धरती से उड़ गया, वाष्पित हो गया। इस सौरमण्डल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति पर कार्बन की मात्रा बहुत ज़्यादा थी, लेकिन बृहस्पति ग्रह के अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से वहाँ का कॉर्बन पृथ्वी जैसे छोटे ग्रहों तक पहुँच ही नहीं सकता है! अधिकतर वैज्ञानिकों का मत है कि बृहस्पति जैसे ग्रहों से यह कॉर्बन धुमकेतुओं के माध्यम से इस धरती और मंगल जैसे ग्रहों तक पहुँचा।

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वैज्ञानिकों के अनुसार अरबों साल पूर्व इस धरती पर सूदूर अंतरिक्ष से आए एक धुमकेतु और एक उल्कापिंड के टकराव की वजह से हुए घर्षण और रासायनिक तत्वों व पृथ्वी के समुद्रों में स्थित जल के रासायनिक अभिक्रिया की वजह से यह धरती आदिम जीवों के साँसों के स्पंदन से युक्त हुई। करोड़ों साल के क्रमिक विकास के फलस्वरूप 25 करोड़ से 20 करोड़ वर्ष पूर्व तक ट्राइएसिक कालखंड रहा, फिर उसके बाद मेसोजोइक कालखंड आया, फिर जुरैसिक कालखंड आया, लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग साढ़े छः करोड़ साल पहले इसी जुरैसिक कालखंड के लगभग अंतिम समय में, एक बड़ा धूमकेतु पृथ्वी से आ टकराया था। जिस जगह ये टक्कर हुई थी, वह आज दक्षिण-पूर्व मैक्सिको के युकातान प्रायद्वीप कहा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार धूमकेतु के टकराने से पूर्व इस क्षेत्र में बहुत घने हरे-भरे जंगल थे जिसमें टायरानोसॉरस या टीरैक्स जैसे डॉयनोसॉर और नन्हें स्तनपायियों से लेकर 8 किलोग्राम वजन तक के स्तनपायी जीव वहाँ खूब मजे में रहा करते थे। यह टक्कर इतनी भीषण और संहारक थी कि इसके प्रभाव से समस्त पृथ्वी पर बेहद गर्म तरंगें पैदा हुईं। काले धुँए, धूल, काली राख और छोटी-मोटी चट्टानों की घनीभूत चादर से पृथ्वी की सम्पूर्ण सतह और इसका सारा वातावरण ढक गया। सारा आकाश ढक गया, सूर्य की किरणें सालों-साल तक इस धरती पर आनी बंद हो गईं। इसका नतीजा यह हुआ कि इस धरती की समस्त हरियाली, इस पर उपस्थित पेड़, पौधे सूरज की किरणों के अभाव में मृत हो गए, पेड़-पौधों पर पलनेवाले शाकाहारी भोजन करने वाले सभी जीव भूख से तड़प-तड़पकर मर गये, जैसे जुरासिक काल के दैत्याकार छिपकली के आकार-प्रकार के डॉयनोसॉर प्रजाति के सभी लगभग 1000 प्रजातियों की लगभग तीन चौथाई आबादी नष्ट हो गई, मौत के मुँह में चली गई। धूमकेतु गिरने के समय इस धरती पर डॉयनोसॉरों का ही दबदबा था। 

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प्रतीकात्मक तसवीर। फ़ोटो साभार/ट्विटर/@thesparklewedge

हालाँकि उस समय की धरती पर भी कुछ बहुत छुद्र और अत्यंन्त छोटे स्तनधारियों का भी उद्भव हो चुका था, परन्तु उनका वजन और आकार विशाल डॉयनोसॉरों की तुलना में लगभग नगण्य सा था। उस समय सबसे छोटे स्तनधारी का वजन मात्र 500 ग्राम और सबसे बड़े स्तनधारी का वजन भी केवल 8 किलोग्राम से ज़्यादा नहीं था! लेकिन अतिबलशाली व हिंसक डॉयनोसॉरों की वजह से उनके डर के मारे ये कमजोर व निरीह स्तनधारी आज के चूहों और खरहों जैसे ज़मीन के अंदर अपने बिलों में ही अक्सर छिपकर रहने को विवश थे! 

महाविनाश के बहुत बाद में धीरे-धीरे इस धरती से डॉयनोसॉरों के विलुप्त होने या अनुपस्थित हो जाने की वजह से बिल में दुबके ये छोटे-छोटे स्तनपायी जीवों के विकास का मार्ग बड़ी ही तीव्र गति से प्रशस्त हो गया। भूवैज्ञानिकों को उत्तरी अमेरिकी प्रायद्वीप के कोलोरोडो झरने के पास लगभग 17 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले एक पहाड़ी की तीखी ढलानों पर 16 तरह के जानवरों और 600 से ज़्यादा प्रजाति के पौधों के जीवाश्म मिले हैं। अमेरिकी प्रायद्वीप के कोलोरोडो झरने के पास मिले प्राचीन जीवों के इन बहुत बढ़िया जीवाश्म सबूतों और रिकॉर्डों से यह बात बहुत बढ़िया ढंग से विश्लेषित की जा सकती है कि साढ़े छह करोड़ साल पूर्व एक धूमकेतु के टकराने के बाद इस धरती पर जीवन दुबारा कैसे पनपा।

वैज्ञानिकों के अनुसार धूमकेतु के टकराने के लगभग एक लाख साल बाद पृथ्वी के जंगलों में ताड़ के वृक्षों की भाँति के पेड़ों का साम्राज्य हो गया।

इसके साथ-साथ स्तनधारी जीवों का वजन आज के उत्तरी व मध्य अमेरिका में पाए जाने वाले रैकून के बराबर हो गया। लगभग 3 लाख साल बाद अखरोट जैसे पेड़ों में विविधता आने लगी और स्तनधारी जीवों का वजन भी बढ़कर आज के बीवर जैसे जीवों के बराबर हो गया। जीवाश्म वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग 7 लाख साल बाद इस धरती पर मटर और बींस जैसे प्रोटीनयुक्त फलीदार पौधों का विकास तेज़ी से होने लगा था। इसी के साथ स्तनधारी जीवों के वजन और भार में भी क्रांतिकारी परिवर्तन आने शुरू होने लगे थे। अब इनका वजन बढ़कर 50 किलोग्राम तक और आकार में एक बड़े कुत्ते के वजन के बराबर हो गया, जो उल्कापिंड गिरने के समय के जीवों से लगभग 100 गुना भारी था।

अब प्रश्न यह पैदा हुआ कि इस काल में स्तनधारी जीवों का वजन इतनी तेज़ी से आख़िर क्यों बढ़ना शुरू हुआ? वैज्ञानिकों के अनुसार उस काल में फलीदार और प्रोटीन के सबसे अच्छे श्रोत वाले पौधों का अस्तित्व इस पृथ्वी पर हो चुका था और यही प्रोटीनयुक्त भोज्यपदार्थ जीवों को अपनी कद-काठी और वजन बढ़ाने में सहायता कर रहा था! वैज्ञानिकों के अनुसार वर्तमान में इस धरती पर उपस्थित बड़े से बड़ा स्तनधारी जीव जिसमें मनुष्य भी सम्मिलित है, उन्हीं छोटे-छोटे स्तनधारी जीवों से विकसित हुए हैं, जो डॉयनोसॉर के महाविनाश के समय अपने बिलों में दुबके हुए थे। इन जीवों में गैंडा, हिप्पो, हाथी और सबसे बड़े समुद्री स्तनपायी ह्वेल तथा सबसे बड़े मस्तिष्क वाला मनुष्य भी शामिल है।

इस पृथ्वी पर धूमकेतुओं के गिरने और उससे महाप्रलय जैसी घटनाएँ करोड़ों सालों में कभी-कभार होती हैं। लेकिन आज इस धरती के समस्त पर्यावरण, जैवविविधता व जैवमण्डल पर मनुष्यजनित कुकृत्यों यथा वायु, जल व भूगर्भीय प्रदूषण से ग्लोबल वार्मिंग, जंगलों की अंधाधुंध कटाई से इस धरती का पर्यावरण व इसके समस्त पशु, पक्षी और हज़ारों जीवों की प्रजातियाँ भयंकरतम विलोपन की दुखद स्थिति तक पहुँच चुकी हैं। इसलिए अब इस धरती के सर्वाधिक बुद्धिमान हम मानवों का परम व अभीष्ट कर्तव्य है कि हम अपनी धरती को हरा-भरा, प्रदूषणमुक्त रखें ताकि इस धरा पर उपस्थित जैवमण्डल के सभी जीव-जन्तु एक-दूसरे के साथ साहचर्य, अच्छे स्वास्थ्य और नैसर्गिक रूप से आनन्दित होकर अपनी भरपूर ज़िंदगी जी सकें।

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