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EVMs v/s Ballot Paper: किन नियमों के तहत मतपत्र से चुनाव की मांग हो रही है

EVMs v/s Ballot Paper: किन नियमों के तहत मतपत्र से चुनाव की मांग हो रही है

सुप्रीम कोर्ट में वकील महमूद प्राचा ने गुरुवार को याचिका दायर कर मांग की है कि ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाएं। सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम और वीवीपैट विवाद से संबंधित याचिका पर पहले से ही सुनवाई हो रही है। जानिए कि किन नियमों के तहत ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव की मांग की जा रही है।

वकील महमूद प्राचा ने देश में सभी चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के बजाय मतपत्रों से कराने का निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। उत्तर प्रदेश के रामपुर निर्वाचन क्षेत्र से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में आगामी लोकसभा चुनाव लड़ रहे प्राचा ने तर्क दिया है कि 1951 के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम और 1961 के चुनाव संचालन नियमों के तहत सिर्फ मतपत्र का इस्तेमाल करके चुनाव कराने का कानून है।

देश में ईवीएम से मतदान तमाम सवालों के घेरे में है। विपक्ष बार-बार ईवीएम के जरिए धांधली के आरोप बार-बार लगा रहा है। इससे संबंधित कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं। ईवीएम से जुड़ी वीवीपैट पर्चियों की सौ फीसदी गिनती कराने से संबंधित याचिका पर भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। वीवीपैट वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिनों बाद सुनवाई की बात कही है। लेकिन वकील महमूद प्राचा ने अब नई याचिका दायर कर पूरा चुनाव बैलेट पेपर से कराने की मांग की है।

प्राचा ने अपनी याचिका में कहा है कि "मतपत्रों और मतपेटियों के इस्तेमाल से चुनाव कराने का नियम है... इसलिए, सभी चुनाव कागज वाले मतपत्रों का इस्तेमाल करके होने चाहिए। वोटिंग मशीनों का सहारा लेने पर चुनाव आयोग केवल अलग-अलग मामलों के आधार पर विचार कर सकता है। यानी सिर्फ असाधारण हालात में और वह भी उचित कारणों से ही ईवीएम का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।''

यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित एक मामले में अंतरिम आवेदन के रूप में दायर की गई है। उस मामले में, शीर्ष अदालत ने चुनावों में वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) पर्चियों की गहन गिनती की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर भारत चुनाव आयोग से जवाब मांगा था। प्राचा ने अपने आवेदन में इस बात पर जोर दिया है कि आरपी अधिनियम के अनुसार कागजी मतपत्रों को ईवीएम द्वारा बदला नहीं किया जा सकता है।

महमूद प्राचा ने तर्क दिया है कि "यदि कोई 'बैलट पेपर' और 'बैलट बॉक्स' के स्थान पर 'ईवीएम' पढ़ता है तो एक हास्यास्पद और कभी-कभी खतरनाक स्थिति/व्याख्या सामने आती है... काउंटर फ़ॉइल के प्रावधान मतदान और चुनावी पवित्रता को सुरक्षित रखने का एक और तरीका है। ईवीएम के होने पर यह प्रक्रिया संभव नहीं है और ईवीएम के मामले में लागू नहीं है।“ यानी बैलेट पेपर की काउंटर फाइल तो चुनाव आयोग के नियमों के तहत मौजूद रहती है। लेकिन ईवीएम के मामले में कोई काउंटर फाइल होती ही नहीं है। न ही उसका कोई रेकॉर्ड रहता है।

महमूद प्राचा का तर्क है कि ईवीएम के जरिए मतदान पर सबसे बड़ा सवाल पारदर्शिता का है। ईवीएम से मतदाता किसी भी स्तर पर अपने वोट का सत्यापन नहीं कर सकता है। हालांकि इससे बेहतर तो यह है कि मतदाता वीवीपैट की पर्ची को मतपेटी में डाल दे लेकिन इस स्थिति में भी मतदाता सिर्फ चंद सेकंड के लिए अपनी पर्ची को देख सकता है। सही मायने में वीवीपैट भी उचित नहीं है। ऐसे में सबसे बेहतर विकल्प बैलेट पेपर से चुनाव है, जिसके लिए कानून में भी व्यवस्था है। 

 - Satya Hindi

वकील महमूद प्राचा

बता दें कि महमूद प्राचा ने दिल्ली बार काउंसिल की सदस्यता लेने के बाद 1988 से एक वकील के रूप में प्रैक्टिस शुरू की। वो दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस लॉ सेंटर, विधि संकाय से ग्रैजुएट हैं। उन्होंने काफी दिनों से ईवीएम के खिलाफ आंदोलन छेड़ रखा है। कई संगठन उनके आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। 

ईवीएम को लेकर आरोप नए नहीं हैं

पिछले महीने ही ईवीएम को लेकर राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर बड़ा हमला किया है। उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ईवीएम के बिना नहीं जीत सकते हैं। उन्होंने कहा कि 'राजा की आत्मा ईवीएम, ईडी, सीबीआई, सभी संस्थाओं में है'। उन्होंने कहा, 'मैं आपको बता रहा हूँ, ईवीएम के बिना नरेंद्र मोदी चुनाव नहीं जीत सकता है। इलेक्शन कमीशन से हमने कहा कि एक काम कीजिए- विपक्ष की पार्टी को ये मशीनें दिखा दीजिए, खोलकर हमें दिखा दीजिए। ये मशीनें कैसे चलती हैं, हमारे एक्सपर्ट को दिखा दीजिए लेकिन नहीं दिखाया। फिर हमने कहा कि इसमें से कागज निकलता है, वोट मशीन में नहीं है, वोट कागज में है। ठीक है, मशीन चलाइए, कागज की गिनती कर दीजिए। इलेक्शन कमीशन कहता है कि गिनती नहीं होगी। क्यों नहीं होगी? कैसे नहीं होगी? सिस्टम नहीं चाहता है कि ईवीएम की गिनती हो जाए।'

क्या ईवीएम बनाने वाली कंपनी के 4 स्वतंत्र निदेशक भाजपा से जुड़े हैंः आर्थिक मामलों की खबरें देने वाली वेबसाइट मनी लाइफ डॉट इन ने जनवरी 2024 में देश को बताया था कि भारत सरकार में सचिव स्तर के अधिकारी रह चुके रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ईएएस शर्मा ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर कहा है कि ईवीएम बनाने वाली कंपनी के 4 स्वतंत्र निदेशक भाजपा से जुड़े हुए हैं। मनी लाइफ डॉट इन की रिपोर्ट में कहा गया ता कि ईएएस शर्मा ने इस मामले पर भारतीय चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण देने को कहा है। साथ ही उन्होंने मांग की है कि संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि भाजपा से जुड़े इन व्यक्तियों को निदेशक पद से हटाया जाए। उन्होंने मांग की है कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और इसके द्वारा की गई कार्रवाई का विवरण इस देश के लोगों को देखने के लिए सार्वजनिक डोमेन में रखा जाए। उन्होंने अपने पत्र में पूछा है कि क्या भाजपा से जुड़े पदाधिकारी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स के मामले चला सकते हैं, जो ईवीएम बनाती है। मनी लाइफ डॉट इन की रिपोर्ट कहती है कि ईएएस शर्मा ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और दो अन्य चुनाव आयुक्तों को लिखे पत्र में कहा है कि मैंने आपके ध्यान में लाया था कि कैसे कम से कम चार ऐसे लोग जो भाजपा से जुड़े हैं को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के बोर्ड में "स्वतंत्र" निदेशक के रूप में नामित किया गया है। बीईएल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के लिए सॉफ्टवेयर विकसित करने के अत्यधिक संवेदनशील काम में लगी हुई है। इसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि, इसका तात्पर्य यह है कि एक राजनीतिक दल के रूप में भाजपा की बीईएल के मामलों को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका है। जिससे यह अपरिहार्य निष्कर्ष निकलता है कि भाजपा बीईएल के कामकाज की निगरानी करती रहती है।

संदेह इसलिए भी है

शर्मा ने कहा है कि यह तथ्य है कि चुनाव आयोग द्वारा पूरी तरह से समर्थित बीईएल ने अपने स्रोत कोड को एक खुले स्वतंत्र ऑडिट के अधीन करने से इनकार कर दिया है। यह कदम हमारे देश में ईवीएम का इस्तेमाल करने के तरीके और हेरफेर के प्रति उनकी संवेदनशीलता के बारे में जनता की चिंताओं को मजबूत करता है। ईएएस शर्मा इस पत्र में कहते हैं कि मुझे सबसे अधिक परेशान करने वाली बात यह लगी है कि चुनाव आयोग, स्पष्ट रूप से एक संवैधानिक प्राधिकारी के रूप में स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से चुनाव कराने के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका को पूरी तरह से महसूस नहीं कर रहा है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा है कि क्या चुनाव आयोग को इस बात पर अपनी आंख बंद कर लेनी चाहिए कि सत्तारूढ़ राजनैतिक दल ने बीईएल के मामलों को चलाने के लिए अपने चार प्रतिनिधियों को नियुक्त करवाया है। क्या इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय चुनाव आयोग अब खुद को एक स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकरण नहीं मानता है? 

विपक्ष ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ईवीएम और वीवीपैट का मुद्दा जोरशोर से उठाया था। उसी समय करीब 19 लाख ईवीएम के गायब होने की सूचना आई थी, जिसका केंद्रीय चुनाव आयोग ने खंडन किया था। लेकिन इसके बाद भी लगातार ईवीएम को लेकर सवाल उठते रहे हैं। 19 लाख ईवीएम गायब होने को कभी अदालत में गंभीरता से चुनौती नहीं दी गई।

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