19 लाख ईवीएम ग़ायब, चुनाव आयोग ने ख़बर को बताया ग़लत
19 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) ग़ायब हो गई हैं, इसे पढ़ने के बाद आप हिल उठे होंगे और पहला सवाल पूछेंगे कि क्या यह बात सच है बांबे हाई कोर्ट में दायर एक याचिका में आरोप लगाया गया है कि चुनाव आयोग के पास क़रीब 19 लाख ईवीएम कम हैं यानी इन ईवीएम का कोई रिकॉर्ड नहीं मिल रहा है। मुंबई हाई कोर्ट में यह याचिका 27 मार्च 2018 को आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन रॉय ने दायर की है। इस ख़बर के सामने आने के बाद भारतीय चुनाव आयोग की आधिकारिक प्रवक्ता शेफ़ाली शरण ने कहा है कि यह ख़बर पूरी तरह भ्रामक है और इसमें कोई सच्चाई नहीं है।
अंग्रेजी पत्रिका फ़्रंटलाइन में छपी ख़बर के मुताबिक़, बांबे हाई कोर्ट में सूचना के अधिकार को आधार बनाकर दायर की गई एक जनहित याचिका में चुनाव आयोग की ओर से पिछले 13 महीने में जिस तरह के जवाब दिए गए हैं, उससे पता चलता है कि ईवीएम को लेकर उसके काम करने का तरीक़ा क्या है। आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन रॉय ने जनहित याचिका दायर कर चुनाव आयोग और राज्य निर्वाचन आयोग से ईवीएम और वोटर वेरिफ़ाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) की ख़रीद, भंडारण और यह किन जगहों पर इस्तेमाल होती है, इसकी प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी माँगी थी। यह जनहित याचिका पूरी तरह से आरटीआई के माध्यम से जुटाई गई जानकारियों के आधार पर थी। कोर्ट ने केंद्रीय चुनाव आयोग, महाराष्ट्र राज्य निर्वाचन आयोग, केंद्रीय गृह मंत्रालय और ईवीएम बनाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की दो कंपनियों - इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल), हैदराबाद और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल), बेंगलुरु से जानकारी माँगी।
इन जानकारियों में ईवीएम की ख़रीद, भंडारण और इसके इस्तेमाल को लेकर जो जानकारियाँ दी गई थीं वह बहुत ज़्यादा भयावह थीं। इसमें 116.15 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितताओं की ओर भी इशारा किया गया था। इसके अलावा ईवीएम की संख्या को लेकर भी बड़ी गड़बड़ियाँ सामने आई थी।
ख़बर के मुताबिक़, इन दस्तावेज़ों में कहा गया था कि कंपनियों की ओर से चुनाव आयोग को दी गई और उसे मिली ईवीएम की संख्या में बहुत बड़ा अंतर था। इन दस्तावेज़ों से पता चलता है कि ईवीएम निर्माता कंपनियों की ओर से चुनाव आयोग को दी गई लगभग 20 लाख ईवीएम अब आयोग के पास नहीं हैं। पिछले 13 महीनों में इस जनहित याचिका पर सात सुनवाईयाँ हो चुकी हैं लेकिन न तो चुनाव आयोग और न ही राज्य निर्वाचन आयोग इन ग़ायब हुई ईवीएम के बारे में कुछ बता पाये।
रॉय की ओर से दायर की गई आरटीआई पर चुनाव आयोग ने 21 जून, 2017 को दिए अपने जवाब में कहा कि उसे बीईएल की ओर से 1989-90 और 2014-15 के बीच 10,05,662 ईवीएम मिलीं। जबकि बीईएल ने 2 जनवरी, 2018 को आरटीआई के जवाब में कहा कि उसने 1989-90 और 2014-15 के बीच 19,69,932 ईवीएम चुनाव आयोग को दी थीं। ईवीएम बनाने वाली दूसरी कंपनी ईसीआईएल ने आरटीआई के जवाब में 16 सितंबर, 2017 को कहा कि उसने 19,44,593 ईवीएम की आपूर्ति चुनाव आयोग को की। जबकि चुनाव आयोग की ओर से कहा गया कि उसे ईसीआईएल की ओर से 1989-90 और 2016-17 के बीच 10,14,644 ही मिलीं।
अब आती है इसमें हैरान करने वाली जानकारी। वह जानकारी यह है कि लगभग 15 सालों के अंतराल में चुनाव आयोग को बीईएल की ओर से दी गई 9,64,270 ईवीएम प्राप्त नहीं हुईं और 9,29,949 ईवीएम जो, दूसरी कंपनी ईसीआईएल ने चुनाव आयोग को दी थी, वह भी उसे नहीं मिली। है ना, हैरान करने वाली बात।
आरटीआई दाख़िल करने वाले रॉय भी इससे बुरी तरह हैरान हो गए। रॉय ने ईवीएम बनाने वाली दोनों कंपनियों से आरटीआई के माध्यम से हर साल के ऑर्डर-सप्लाई चार्ट की माँग की। लेकिन इससे भी जो जानकारी मिली, उसमें बहुत सारी गड़बड़ियाँ थीं।
उदाहरण के लिए, 2003-04 में, बीईएल ने कहा कि उसने 1,93,475 ईवीएम की आपूर्ति की, जबकि चुनाव आयोग का दावा है कि उसे केवल 1,67,850 ईवीएम (25,625 कम) मिलीं। 2004-05 में, चुनाव आयोग ने कहा कि उसे 36,395 ईवीएम मिलीं लेकिन बीईएल की ओर से जारी बयान में कहा गया कि उसने केवल 2,070 मशीनों की आपूर्ति की है। ख़बर के मुताबिक़, 2008-09 की अवधि में बीईएल की ओर से 9,62,000 कम ईवीएम की आपूर्ति की गई। 2010-11 में कम आपूर्ति की गई ईवीएम की संख्या 13,490 थी लेकिन 2013-14 में चुनाव आयोग को बीईएल की ओर से जारी की गई 1,39,725 ईवीएम से 51,713 ज़्यादा ईवीएम मिल गईं। है ना, कमाल की बात। मोदी सरकार के पहले साल में यानी 2014-15 में, बीईएल ने दावा किया कि उसने 62,183 ईवीएम की आपूर्ति की, लेकिन चुनाव आयोग कहता है कि उसे कोई ईवीएम नहीं मिली। दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट में ईवीएम का माँग और आपूर्ति का जो चार्ट पेश किया गया वह बेहद ही चौंकाने वाला दस्तावेज़ है।
भुगतान में भी बहुत बड़ी गड़बड़ियाँ
ईवीएम को लेकर किए गए भुगतान में भी भयंकर गड़बड़ियाँ सामने आईं। 2006-07 से 2016-17 तक यानी 10 साल की अवधि में चुनाव आयोग और बीईएल के बीच चुनाव आयोग की ओर से ईवीएम पर किया गया कुल ख़र्च 5,36,01,75,485 रुपये बताया गया है, जबकि बीईएल की ओर से आरटीआई के जवाब में 20 सितंबर, 2017 को दिए गए उत्तर में कहा गया है कि उसने 6,52,56,44,000 का भुगतान प्राप्त किया है। इससे यह पता चलता है कि बीईएल को 116.15 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान किया गया।चुनाव आयोग ने ईसीआईएल की ओर से ईवीएम को प्राप्त करने पर किए गए ख़र्च के सवाल का जवाब नहीं दिया। दिलचस्प बात यह है कि ईसीआईएल ने कहा कि उसने 2006-07 और 2013-14 के बीच किसी भी राज्य को एक भी ईवीएम की आपूर्ति नहीं की है। फिर भी, ईसीआईएल की ओर से दिए गए एक जवाब से पता चलता है कि मार्च और अक्टूबर के बीच उसे ईवीएम की आपूर्ति के लिए चुनाव आयोग के माध्यम से महाराष्ट्र सरकार की ओर से 50.64 करोड़ रुपये मिले।
मार्च 2018 में जनहित याचिका दायर करने से पहले रॉय ने जो इतनी मैराथन आरटीआई कसरत की थी, उसमें उन्होंने चुनाव आयोग से राज्यवार ईवीएम की यूनिट आईडी संख्या (बैलट यूनिट (बीयू) सहित), नियंत्रण इकाई (सी.यू) और वीवीपैट के बारे में जानकारी माँगी थी। साथ ही परिवहन की चालान कॉपी और ट्रांसपोर्टर के नाम और किस माध्यम से विभिन्न राज्यों को आपूर्ति की जाती है, इस बारे में जानकारी माँगी थी। चुनाव आयोग की ओर से जो जवाब दिया गया उसमें वर्ष-वार बजट प्रावधान और ख़र्च के बारे में जानकारी दे दी गई, बजाय इसके कि जो जानकारी माँगी गई थी। रॉय ने जो जनहित याचिका दायर की थी, उसमें उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र की दो कंपनियों से चुनाव आयोग को मिलीं ईवीएम के आंकड़ों में भारी गड़बड़ियों को जाँचने की माँग की थी।
ख़बर के सामने आने के बाद प्रेस इन्फ़ॉर्मेशन ब्यूरो की अपर महानिदेशक और चुनाव आयोग की प्रवक्ता शेफ़ाली शरण ने ट्वीट कर कहा है कि ख़बर में ईवीएम की माँग और आपूर्ति के बारे में किए गए दावे सिर्फ़ अनुमान पर आधारित हैं।
शेफ़ाली शरण ने यह भी कहा है कि फ़्रंटलाइन और टीवी9 भारतवर्ष के संपादकों को उनकी पत्रिका/चैनल में ली गई इस भ्रामक ख़बर के बारे में उचित जानकारी दे दी गई है। फ़्रंटलाइन के संपादक ने इस बात को स्वीकार किया है कि इसका प्रतिउत्तर प्रकाशित कर दिया जाएगा। टीवी9 भारतवर्ष ने अपने टेलीकास्ट से ख़बर को हटा दिया है।शरण ने ट्वीट में फ़्रंटलाइन और टीवी 9 भारतवर्ष को लिखे एक पत्र में कहा, ‘यह पता चलता है कि इस ख़बर में एक व्यक्ति को आरटीआई से और बांबे हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका के माध्यम से मिली जानकारियों का चुनिंदा हिस्सा प्रकाशित किया गया है। इस ख़बर में पक्षपातपूर्ण और एकतरफ़ा जानकारी दी गई है, जो कि ग़लत है और तथ्यों की ग़लत व्याख्या पर आधारित है, इससे आम जनता के मन में बेवजह का संदेह पैदा हो रहा है।’पत्र में लिखा है कि ईवीएम को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के बारे में स्पष्ट है कि चुनाव आयोग की स्वीकृति के बिना एक भी ईवीएम को इसके गोदाम से बाहर नहीं ले जाया जा सकता है और इस संबंध में प्रशासनिक नियमों का कड़ाई से पालन किया जाता है। आयोग के पास एक मजबूत 'ईवीएम प्रबंधन सॉफ़्टवेयर' है, जिसके माध्यम से प्रत्येक ईवीएम/वीवीपैट की स्थिति के बारे में पता किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों की सक्रिय भागीदारी और चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के साथ सभी काम पारदर्शी तरीके़ से किए जाते हैं।
The editors of Frontline and TV9 Bharatvarsh have been informed due details with respect to misleading stories carried in their magazine/Channel. Editor Frontline has acknowledged that due rejoinder shall be published. TV9channel has deleted the story from their telecast pic.twitter.com/AwzZlFeRGA
— Sheyphali Sharan (@SpokespersonECI) May 9, 2019
लेकिन रॉय की जनहित याचिका से ढेरों सवाल खड़े होते हैं। मसलन, ईवीएम को एक राज्य से दूसरे राज्य में बिना किसी रिकॉर्ड के ले जाया जाना, उनकी संख्या, सीरियल नंबर, मॉडल नंबर और परिवहन के किस माध्यम से ले जाया गया आदि की जानकारी के बारे में। इससे यह सवाल खड़ा होता है कि उचित प्रणाली और बुनियादी ढाँचे के बिना भी ईवीएम के विस्थापन के साथ-साथ धन का दुरुपयोग हो सकता है। याचिका में कहा गया है कि पुरानी ईवीएम को नष्ट करने के सवाल पर भी, कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिली है।
आरटीआई के तहत माँगी गई एक जानकारी के जवाब में चुनाव आयोग ने 21 जुलाई, 2017 को कहा कि उसने किसी भी ईवीएम को कबाड़ के रूप में नहीं बेचा और 1989-90 में ख़रीदी गईं ईवीएम को निर्माताओं ने ख़ुद ही नष्ट कर दिया था। हालाँकि, आयोग ने कहा कि 2000 और 2005 के बीच प्राप्त की गईं ईवीएम को नष्ट करने की प्रक्रिया अभी भी विचाराधीन है।
अब सवाल यह है कि जब चुनाव आयोग ईवीएम के रखरखाव को लेकर इतना लापरवाह है और उसकी ओर से दी गई जानकारियों में भयंकर गड़बड़ी है तो तो ईवीएम में छेड़छाड़ होने की बात को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता।
ईवीएम पर लंबे अरसे से सवाल उठते रहे हैं। कर्नाटक से लेकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, असम, और गुजरात तक और निकाय चुनाव से लेकर लोकसभा चुनावों तक में ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप लगते रहे हैं।आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, सपा मुखिया अखिलेश यादव, बीएसपी प्रमुख मायावती, कांग्रेस के कई नेताओं भी चुनाव आयोग से ईवीएम को हटाकर बैलेट पेपर से चुनाव कराने की माँग की। नायडू ने यह भी कहा था कि रूस में बैठे लोग भारत में हो रहे चुनाव की ईवीएम हैक कर रहे हैं। लेकिन आयोग ने इन सभी दलों की माँग को यह कहकर नकार दिया कि ईवीएम हैक प्रूफ़ है और इसमें छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।
2009 मे बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने प्रेस कांफ़्रेंस कर कहा था कि ईवीएम फ़ुलप्रूफ़ नहीं है और मशीनों में छेड़छाड़ कर चुनावों को प्रभावित किया जा सकता है। पार्टी नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने ईवीएम में धांधली को लेकर एक किताब भी लिख डाली थी।
चुनाव आयोग को इस बात का जवाब देना होगा कि अगर ईवीएम हैक-प्रूफ़ है तो आख़िर क्यों बार-बार इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। हाल ही में 66 पूर्व नौकरशाहों ने चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखकर आयोग के कामकाज पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने कहा था कि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर संकट है।इसके बाद विपक्ष की ओर से ईवीएम को 50 फ़ीसदी वीवीपैट (वोटर वैरिफ़ाइएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) से मिलान की माँग की गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने विपक्षी दलों द्वारा दायर की गई पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया था। बता दें कि कांग्रेस, सपा, बसपा, आरजेडी, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, सीपीएम और तेलगु देशम समेत कुल 21 पार्टियों ने याचिका में अदालत से आग्रह किया था कि ईवीएम के 50 फ़ीसदी नतीजों का चुनावों के परिणाम की घोषणा किए जाने से पहले वीवीपैट के साथ मिलान किया जाना चाहिए।
ईवीएम हैक कर दिखाई थी
आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज ने 2017 में दिल्ली विधानसभा में ईवीएम को हैक कर दिखाने का दावा किया था, इससे पूरे देश में तहलका मच गया था। लेकिन चुनाव आयोग ने इसे खारिज करते हुए कहा था कि वह मशीन चुनाव आयोग की ईवीएम से सिर्फ़ देखने में मिलती-जुलती है, लेकिन उसके फ़ीचर ईवीएम जैसे नहीं हैं। इसलिए ईवीएम हैक करने का दावा ग़लत है।
रॉय को मिली इन जानकारियों से ईवीएम और वीवीपैट को लेकर निश्चित ही सवाल खड़े होते हैं। लोकसभा चुनाव में अब तक हुए 5 चरणों में कई जगहों पर ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायतें आई हैं। इसे लेकर विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग में शिकायत भी दर्ज कराई है। इससे पहले भी लगभग हर चुनाव में ईवीएम में गड़बड़ी की ख़बरें आती रही हैं। ऐसे में चुनाव आयोग की ओर से निष्पक्ष चुनाव कराने के दावे पर स्वाभाविक रूप से सवाल खड़े होते हैं।