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एक कृषि क़ानून पर विपक्ष बाहर किसानों के, संसद में सरकार के साथ

एक कृषि क़ानून पर विपक्ष बाहर किसानों के, संसद में सरकार के साथ

एक ओर विपक्षी दल सड़क में मोदी सरकार के तीनों कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ खड़े हैं और दूसरी ओर ये इनमें से एक क़ानून का संसद में समर्थन कर रहे हैं। 

एक ओर विपक्षी दल सड़क में मोदी सरकार के तीनों कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ खड़े हैं और दूसरी ओर ये इनमें से एक क़ानून का संसद में समर्थन कर रहे हैं। खाद्य, उपभोक्ता मामलों की स्थायी समिति जिसमें 13 दलों के 30 सांसद शामिल हैं, इस समिति ने केंद्र सरकार से कहा है कि वे तीन कृषि क़ानूनों में से एक- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 को लागू करे। 

इस समिति में बीजेपी के साथ ही कांग्रेस, टीएमसी, आम आदमी पार्टी, एनसीपी, डीएमके, जेडीयू, पीएमके और शिव सेना सहित कई दलों के सांसद शामिल हैं। 

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, शुक्रवार को लोकसभा में रखी गई इस समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 क़ानून से निवेश की बढ़ोतरी का माहौल बनेगा, साथ ही कृषि बाज़ार में उचित प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा और किसानों की आय भी बढ़ेगी। समिति की रिपोर्ट यह भी कहती है यह क़ानून अभी तक अप्रयुक्त संसाधनों को खोलने में उत्प्रेरक का काम करेगा। 

समिति ने सरकार से सिफ़ारिश की है कि वह इस रिपोर्ट को ‘बिलकुल ऐसा’ ही लागू करे जिससे किसानों और खेती के क्षेत्र के अन्य शेयरधारकों को इस क़ानून के तहत होने वाले फ़ायदे मिल सकें।

रिपोर्ट कहती है कि देश में अधिकांश कृषि उत्पाद अधिकता में होने लगे हैं और किसान चूंकि कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउस और निर्यात में निवेश नहीं कर पाते इसलिए उन्हें अपनी उपज का बेहतर मूल्य नहीं मिल पाता और इस वजह से उन्हें अच्छा-खासा नुकसान होता है। समिति ने सरकार से कहा है कि वह इस बात का ध्यान रखे कि ज़रूरी उत्पादों की क़ीमतें न बढ़ें। 

इस समिति के चेयरमैन टीएमसी के सांसद सुदीप बंदोपाध्याय हैं। वे समिति की अंतिम बैठक में कुछ कारणों से शामिल नहीं हो पाए थे और उनकी जगह पर कार्यवाहक चेयरमैन बीजेपी सांसद अजय मिश्रा टेनी ने समिति की इस रिपोर्ट को प्राप्त किया। 

एक ओर समिति की रिपोर्ट आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 को किसानों के हक़ में बता रही है, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों के नेताओं के साथ ही किसान नेता भी इस क़ानून की मुखालफत ही करते आए हैं। 

किसान दिल्ली के बॉर्डर्स पर लगभग चार महीने से धरना दे रहे हैं और वे तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने के साथ ही एमएसपी को लेकर गारंटी का क़ानून भी चाहते हैं। 

हैरानी की बात ये है कि ये विपक्षी दल तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने की किसानों की मांग को पिछले चार महीने से देश भर में कई मंचों पर उठा चुके हैं लेकिन संसद में वे इनमें से एक क़ानून का पुरजोर समर्थन कर दोहरा चरित्र दिखा रहे हैं। 

सवाल यह है कि किसानों के साथ खुलकर खड़े होने वाले विपक्षी दल संसद में जो कह रहे हैं, उसे वे किसानों को क्यों नहीं बता रहे हैं। 

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