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चुनावी बांड का सुप्रीम सचः किस कॉरपोरेट ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया, रहस्य रहेगा

चुनावी बांड का सुप्रीम सचः किस कॉरपोरेट ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया, रहस्य रहेगा

चुनावी बांड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला 15 फरवरी और सोमवार 11 मार्च को हर मायने में ऐतिहासिक है, लेकिन अभी भी पूरा सच सामने नहीं आ पाएगा। यानी जनता को यह बात कभी पता नहीं लग पाएगी कि किस कॉरपोरेट ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया। जबकि यही सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है कि आखिर कॉरपोरेट ने किस राजनीतिक दल को क्या भाव दिया। लेकिन यह अब रहस्य रहेगा। जानिए पूरी बातः

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड पर विवरण का खुलासा करने के लिए समय सीमा बढ़ाने की मांग करने वाली भारतीय स्टेट बैंक की याचिका खारिज कर दी, लेकिन उसे ऐसा करने की छूट भी दे दी है कि किस कॉरपोरेट या शख्स ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया, वो इस आंकड़े का न मिलान करे और न बताए। सुप्रीम कोर्ट के सोमवार 11 मार्च के फैसले का कुल सार है-

  • 1. किस कॉरपोरेट/व्यक्ति ने कितनी राशि का बांड खरीदा
  • 2. किस राजनीतिक दल को बांड से कितना चंदा मिला
  • 3. मंगलवार 12 मार्च शाम 5 बजे तक स्टेट बैंक को दोनों सूचना केंद्रीय चुनाव आयोग को सौंप देना है।

सुप्रीम कोर्ट के सोमवार के आदेश से अब यह तय हो गया कि किसने किस राजनीतिक दल को कितना चंदा या पैसा दिया। कॉरपोरेट को अब सिर्फ यह विवरण देना होगा कि किसने चुनावी बांड खरीदे, उनका मूल्य और अब समाप्त हो चुकी योजना के माध्यम से राजनीतिक दलों को कितनी राशि प्राप्त हुई। स्टेट बैंक को यह विवरण देने की जरूरत नहीं है कि किसने किस राजनीतिक दल को कितना दान दिया।

सरकार ने सिर्फ एसबीआई को ही चुनावी बांड जारी करने के लिए अधिकृत किया था। यानी सिर्फ उसी के पास यह सूचना है कि किसने किस राजनीतिक दल को कितना दान दिया। अब इस सूचना का डेटा स्टेट बैंक को तैयार नहीं करना है। हालांकि यह डेटा देना भी बहुत आसान है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट बेहतर जानता होगा कि उसने इस सूचना को क्यों रोका। 

इसका नतीजा क्या निकलेगाः यह तय करने के बाद ही कि किसने (कॉरपोरेट/व्यक्ति) किस पार्टी को कितना दान दिया, इससे यह पता लगाया जा सकता था कि क्या किसी के चंदे का उस कंपनी या व्यक्ति के पक्ष में किसी सरकारी नीति पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा। सारा मुद्दा तो यही था कि चंदा लेने के बाद उस कंपनी या उसके मालिक या व्यक्ति के पक्ष में सत्तारूढ़ पार्टी ने क्या किया। या फिर विपक्ष ने चंदा लेकर उस कंपनी या शख्सियत के खिलाफ सवाल क्यों नहीं उठाए।


2018 में चुनावी बांड योजना की शुरुआत के बाद से, भाजपा को सबसे ज्यादा चंदा मिला है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2019 से सारी सूचनाएं मांगी हैं। लेकिन योजना 2018 में आई थी जो अभी 2024 में 15 फरवरी तक प्रभावी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को पूरी योजना रद्द कर दी। सारा विवरण सार्वजनिक करने को कहा लेकिन स्टेट बैंक ने 4 मार्च को अर्जी लगाकर ज्यादा समय देने की मांग की।उसी पर सोमवार को, शीर्ष अदालत ने एसबीआई को 12 मार्च, 2024 को शाम 5 बजे तक विवरण पेश करने का निर्देश दिया। भारत के चुनाव आयोग को 15 मार्च तक डेटा संकलित करने और इसे अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने के लिए कहा गया है।

इस तरह स्टेटबैंक को 12 मार्च तक डेटा के दो अलग-अलग सेट पेश करने होंगे: हर चुनावी बांड की खरीद की तारीख, बांड के खरीदार का नाम और खरीदे गए बांड के मूल्य का विवरण। चुनावी बांड के माध्यम से पैसा या चंदा प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण, जिसमें हर बांड को भुनाने की तारीख और भुनाए गए बांड का मूल्य शामिल है।

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है, चुनावी बांड केवल कुछ निश्चित विंडो के भीतर ही जारी किए गए थे। जारी करने की अवधि आमतौर पर एक पखवाड़े से भी कम थी। चुनावी बांड जारी होने के बाद राजनीतिक दलों के पास इसे भुनाने के लिए 15 दिनों की एक छोटी सी अवधि थी।

हालांकि, चुनावी बांड की खरीद की तारीख और उसे कैश कराने की तारीख यह संकेत दे सकती है कि किसने किस राजनीतिक दल को दान दिया होगा, लेकिन निश्चित रूप से यह निर्धारित करना संभव नहीं है क्योंकि बांड जारी करने की खिड़की के साथ-साथ उनके कैश कराने का डेटा बहुत छोटा होगा। तो कुल मिलाकर स्थिति यह रहेगीः

किस कंपनी/कॉरपोरेट/व्यक्ति ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया...यह रहस्य ही रहेगा।


शायद कभी खोजी पत्रकार इस सूचना को खोजकर लाए। तब तक हम लोग इंतजार कर सकते हैं। या फिर सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका डालकर कोई इसका खुलासा करने की भी मांग करे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में तमाम याचिकाओं में यह सवाल शामिल था कि किस कंपनी ने किस दल को चंदा दिया। देश में एकमात्र सीपीएम पार्टी है, जिसने कोई बांड स्वीकार नहीं किया और न बांड भुनाने के लिए स्टेट बैंक में कोई खाता खोला।

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