+
चुनावी बांड की पूरी सूचना ECI की साइट पर, फिर भी SBI का यह इनकार क्यों?

चुनावी बांड की पूरी सूचना ECI की साइट पर, फिर भी SBI का यह इनकार क्यों?

भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने सूचना अधिकार अधिनियम (RTI) के तहत चुनावी बांड के विवरण का खुलासा करने से इनकार कर दिया है। हालांकि यह पूरी जानकारी अब केंद्रीय चुनाव आयोग की साइट पर है और पूरी तरह सार्वजनिक है। इसके बावजूद एसबीआई का जवाब है कि जानकारी व्यक्तिगत है। इसलिए यह नहीं दी जा सकती। भारत के सबसे बड़े घोटाले को सरकार के तमाम विभाग हर स्तर पर किस तरह दबाने को बेताब हैं, उसका यह नायाब नमूना है। जानिए पूरी बातः

भारतीय स्टेट बैंक ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत चुनावी बांड के विवरण का खुलासा करने से इनकार कर दिया है। वैसे चुनावी बांड की पूरी जानकारी केंद्रीय चुनाव आयोग के साइट पर मौजूद है। एसबीआई ने पूरी हठधर्मिता दिखाते हुए कहा है कि बेशक, पूरी जानकारी चुनाव आयोग की साइट पर है लेकिन जानकारी व्यक्तिगत है और प्रत्ययी क्षमता (fiduciary capacity) में रखी गई है। यहां पर प्रत्ययी का मतलब वह व्यक्ति है जो एक विश्वास पर दूसरे की संपत्ति या धन को रखता है। उस व्यक्ति के धन की देखभाल करना प्रत्ययी का कर्तव्य है।

चुनावी चंदे के इस सबसे बड़े खेल में सबसे ज्यादा चंदा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 69.86.5 करोड़ रुपये मिले। दूसरे नंबर पर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) है, जिसे 1397 करोड़ रुपये मिले। कांग्रेस को 1334 करोड़ मिले। सीपीएम और सीपीआई भारत की दो ऐसी पार्टियां हैं जिन्होंने चुनावी बांड के जरिए चंदा लेने से इनकार कर दिया। दोनों ही कम्युनिस्ट दलों ने इलेक्ट्रोरल बांड के लिए अलग से कोई खाता खोलने से मना कर दिया था। तमिलनाडु की डीएमके एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने अपने डोनर्स का खुलासा किया था कि उसे कहां से कितने पैसे चंदे के रूप में मिले।


पीटीआई के मुताबिक एक आरटीआई एक्टिविस्ट को एसबीआई ने जवाब दिया कि "आपके द्वारा मांगी गई जानकारी में खरीददारों और राजनीतिक दलों का विवरण शामिल है और इसलिए, इसका खुलासा नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह प्रत्ययी क्षमता में रखा गया है, जिसके प्रकटीकरण को आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (ई) और (जे) के तहत छूट दी गई है।" बता दें कि धारा 8(1) (ई) प्रत्ययी क्षमता में रखे गए रिकॉर्ड से संबंधित है और धारा 8 (1) (जे) व्यक्तिगत जानकारी को रोकने की अनुमति देती है।

आप लोगों को याद ही होगा कि 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक को 12 अप्रैल, 2019 से खरीदे गए बांड का पूरा विवरण चुनाव आयोग को पेश करने का निर्देश दिया था। अदालत ने चुनावी बांड योजना को "असंवैधानिक और स्पष्ट रूप से मनमाना" बताया था। अदालत ने चुनाव आयोग को 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर चुनावी बांड की जानकारी प्रकाशित करने का निर्देश दिया था।

11 मार्च को, जब एसबीआई ने समय सीमा बढ़ाने की मांग की, तो सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और उसे 12 मार्च को शाम 5 बजे तक चुनाव आयोग को चुनावी बांड के विवरण का खुलासा भेजने का आदेश दिया। आरटीआई एक्टिविस्ट कमोडोर (रिटायर्ड) लोकेश बत्रा ने 13 मार्च को एसबीआई से संपर्क कर डिजिटल फॉर्म में चुनावी बांड का पूरा डेटा आरटीआई के तहत मांगा, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग को दिया गया था। लेकिन एसबीआई ने आरटीआई के तहत वही सूचना देने से इनकार कर दिया।

पीटीआई के मुताबिक लोकेश बत्रा ने कहा कि यह ''अजीब'' है कि उन्हें वही जानकारी देने से इनकार कर दिया गया जो चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर पहले से ही उपलब्ध है। चुनावी बांड डेटा के अलावा, बत्रा सुप्रीम कोर्ट में स्टेट बैंक द्वारा खड़े किए गए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे को दी गई फीस के बारे में भी जानकारी मांगी थी। एसबीआई ने साल्वे को दी गई फीस का खुलासा आरटीआई के तहत यह कहकर देने से इनकार किया वो पैसा टैक्सपेयर्स का है। इसलिए सूचना नहीं दी जा सकती।

15 मार्च को, सुप्रीम कोर्ट ने हर चुनावी बांड के लिए पूरी जानकारी नहीं देने के लिए स्टेट बैंक की खिंचाई की। यह जानकारी बांड पर अंकित यूनीक नंबरों को लेकर थी। जिससे राजनीतिक दलों की पहचान सामने आ सकती थी।एसबीआई ने कहा कि इस साल 1 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी के बीच दानकर्ताओं द्वारा विभिन्न मूल्यवर्ग के कुल 22,217 चुनावी बांड खरीदे गए, जिनमें से 22,030 को राजनीतिक दलों द्वारा भुनाया गया।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें