चुनाव आयोग का पर्दाफाशः क्या सुप्रीम कोर्ट में फॉर्म 17 सी को लेकर झूठ बोला गया
सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार 24 मई को होने वाली सुनवाई से पहले केंद्रीय चुनाव आयोग या ईसीआई ने एक हलफनामा दायर कर मतदाता की संख्या बताने वाले फॉर्म को सार्वजनिक करने का विरोध किया है। इसने कहा कि वेबसाइट पर मतदान की संख्या बताने वाले फॉर्म 17सी को अपलोड करने से गड़बड़ियाँ हो सकती हैं। इमेज के साथ छेड़छाड़ की संभावना है। यह तर्क किसी के गले नहीं उतर रहा है। पहले यह जानिए कि फॉर्म 17 सी क्या है।
क्या है फॉर्म 17 सी
फॉर्म 17सी भारतीय चुनावी प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण वैधानिक दस्तावेज है, जो हर मतदान केंद्र पर महत्वपूर्ण विवरण दर्ज करता है। इनमें इस्तेमाल की गई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की पहचान संख्या, मतदान केंद्र को सौंपे गए पंजीकृत मतदाताओं की कुल संख्या और रजिस्टर (फॉर्म 17 ए) के अनुसार वास्तव में मतदान करने वाले मतदाताओं की कुल संख्या शामिल होती है। इसके अतिरिक्त, यह उन मतदाताओं की संख्या को नोट करता है जिन्होंने रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने के बाद मतदान नहीं करना चुना या नोटा किया। हर ईवीएम में दर्ज किए गए कुल वोट फॉर्म 17सी का भाग II विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें मतगणना के दिन दर्ज किया गया अंतिम गणना डेटा होता है। चुनाव आयोग न तो यह डेटा देना चाहता है, न वेबसाइट पर सार्वजनिक करना चाहता है।
इस मुद्दे पर आगे बढ़ने से पहले जानिए कि टीएमसी प्रवक्ता साकेत गोखले और मशहूर वकील कपिल सिब्बल ने क्या कहा।
टीएमसी प्रवक्ता साकेत गोखले ने गुरुवार 23 मई को एक ट्वीट में साफ शब्दों में कहा कि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में सरासर झूठ बोला है। गोखले ने मतदान केंद्र के रिटर्निंग अफसरों (ROs) को मिली हैंडबुक के हवाले से बताया है कि प्वाइंट 13.47.2 मतदान के समापन से संबंधित है। उसमें, यह साफ-साफ रूप से कहा गया है कि रिटर्निंग ऑफिसर को बस "क्लोज बटन दबाना" है। और इससे तुरंत फॉर्म 17 में दर्ज किए जाने वाले वोटों की कुल संख्या प्रदर्शित हो जाएगी। साकेत गोखले ने बताया कि इस काम में सिर्फ 3 सेकंड लगेंगे। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग बेशर्मी से झूठ बोल रहा है। कुल वोटों का डेटा बेशर्मी से छिपाया जा रहा है। इस बात को और स्पष्ट तरीके से समझने के लिए नीचे साकेत गोखले का ट्वीट देखिए-
VERY important & concerning:
— Saket Gokhale MP (@SaketGokhale) May 23, 2024
How the Election Commission is OPENLY LYING in the Supreme Court
On the issue of not disclosing total voter turnout (Form 17) data, the SC asked ECI as to why it was not being done in this election.
Note that these numbers have been provided… pic.twitter.com/g5lRXWfEhb
जाने-माने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने इसी बात को आसान तरीके से आलोचानात्मक लहजे में बताया। कपिल सिब्बल ने एक्स पर लिखा है- चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा: फॉर्म 17 अपलोड करने का कोई कानूनी आदेश नहीं है जो मतदान केंद्र पर डाले गए वोटों का रिकॉर्ड है। सचमुच चौंकाने वाला है! यदि गिने गए वोट अपलोड किए गए हैं तो डाले गए वोट क्यों नहीं अपलोड किए जा सकते? ऐसे आयोग पर हम कैसे भरोसा करें! यानी सिब्बल का कहना है कि अगर आप टोटल गिन गए वोट बता रहे हैं तो डाले गए वोट बताने से क्यों पीछे हट रहे हैं। सिब्बल का ट्वीट देखिए-
Election Commission :
— Kapil Sibal (@KapilSibal) May 23, 2024
Tells Supreme Court :
No legal mandate to upload Form 17 which is the record of votes polled at a polling station
Truly shocking !
If the votes counted are uploaded why not the votes polled ?
How do we trust such a Commission !
चुनाव आयोग ने मतदान प्रतिशत का अंतिम आंकड़ा कई दिन बाद जारी करते हुए उसे बढ़ा दिया। उससे कई लाख वोटों का अंतर आ गया। यह मुद्दा भी गंभीर है। कांग्रेस ने गुरुवार को कहा कि देश में वोटिंग के बाद मतदान प्रतिशत के बढ़ने का मामला गंभीर है। चार चरणों के चुनाव के बाद लगातार मतदान प्रतिशत के आंकड़ें बढ़ते गए और क़रीब 1 करोड़ वोट बढ़ गए। ये बात लोगों के मन में संशय पैदा करती है और निष्पक्ष चुनाव प्रणाली पर सवाल खड़े करती है। एडीआर ने भी इस मामले को उठाया है, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगते हुए कहा है कि- ऐसा कैसे संभव है? चुनाव आयोग को इस मामले पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि देश में पिछले चार चरण के मतदान प्रतिशत के आंकड़ों को लेकर मतदाताओं के मन में कई सवाल और संदेह है। पहले तो चुनाव आयोग मतदान प्रतिशत के आंकड़ों को सार्वजनिक करने में देरी करता है। फिर उन आंकड़ों में और मतदान की शाम के आंकड़ों में 1 करोड़ 7 लाख मतों का अंतर आ जाता है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। चुनाव आयोग को इन सवालों का जवाब देना चाहिए। चुनाव आयोग पर सवाल उठने इसलिए भी स्वाभाविक हैं, क्योंकि चुनाव आयोग लाखों EVM मशीनों के लापता होने पर भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं देता है।
सुप्रीम कोर्ट के सामने फॉर्म 17 C डेटा का खुलासा करने की मांग बड़ी सरल है-
— Congress (@INCIndia) May 23, 2024
1. 17 C जो फॉर्म है, जिसमें दर्ज होता है कि एक पोलिंग स्टेशन में कितने वोट दिए गए
2. कौन सी मशीन, किस सीरियल नंबर वाली कौन से पोलिंग स्टेशन में लगाई है
3. हर मशीन पर कितने वोट पड़े.. ये सारी बातें चुनाव… pic.twitter.com/J9FStfSbvE
फॉर्म 17 सी का मामला वाकई गंभीर है
सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद प्राचा से लेकर सिविल सोसाइटी के तमाम लोगों ने इस संबंध में चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट को लेकर तमाम जानकारियां दी हैं लेकिन बुधवार को चुनाव आयोग का जो हलफनामा आया, उससे साफ हो गया कि चुनाव आयोग तथ्यों को छिपा रहा है। वकील महमूद प्राचा ने रामपुर लोकसभा क्षेत्र से आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। उन्होंने आरोप लगाया कि संबंधित रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) ने चुनाव संचालन नियम, 1961 (1961 नियम) के तहत उनके निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए वोटों के फॉर्म 17सी रिकॉर्ड की प्रतियां उपलब्ध नहीं कराईं।
“
फॉर्म 17सी में डेटा का इस्तेमाल उम्मीदवारों द्वारा ईवीएम के कुल वोटों के साथ मिलान करके मतगणना के दिन नतीजे को सत्यापित करने के लिए किया जाता है। इसके बाद, किसी भी गड़बड़ी के मामले में संबंधित हाईकोर्ट में चुनाव याचिका भी दायर की जा सकती है। यानी जिस फॉर्म 17 सी का डेटा इतना महत्वपूर्ण है, चुनाव आयोग उसी को सार्वजनिक करने से बचना चाहता है।
चुनाव आयोग तभी से शक के दायरे में आ गया जब उसने अंतिम मतदान प्रतिशत बताने में जरूरत से ज्यादा देरी कर दी। यही डेटा 2014 और 2019 के आम चुनाव में आसानी से उपलब्ध हो रहा था। बहुत पहले जो बैलेट पेपर से चुनाव होते थे, तब भी यह डेटा उसी दिन शाम या रात को उपलब्ध हो जाता था। इस आम चुनाव में किसी भी लोकसभा क्षेत्र में डाले गए वोटों की पूर्ण संख्या जारी नहीं करने की वजह से ही आयोग पर सभी की नजर है। आयोग ने सिर्फ मतदान प्रतिशत प्रकाशित किया, उसमें भी काफी देरी की गई। पहले चरण यानी 19 अप्रैल के मतदान का डेटा 11 दिनों के बाद आया, 26 अप्रैल का डेटा दूसरे चरण के मतदान के चार दिन बाद आया।
किस वजह से और किसके लिए यह डेटा महत्वपूर्ण है
द हिंदू अखबार की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि एक लोकसभा क्षेत्र में लगभग 2,000-2,200 बूथ होते हैं, इसलिए एक उम्मीदवार को फॉर्म 17सी की कॉपी पाने के लिए हर लोकसभा क्षेत्र में लगभग 6,000 बूथ एजेंटों की जरूरत होती है। कैसे तमाम निर्दलीय या क्षेत्रीय पार्टियों के प्रत्याशी इतनी बड़ी संख्या में बूथ एजेंट नियुक्त कर पाएंगे। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद शक्ति सिंह गोहिल का कहना है कि "इससे पता चलता है कि छोटी पार्टियों और कई निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए सभी बूथों पर पोलिंग एजेंट रखना नामुमकिन है।" अगर यह डेटा चुनाव आयोग मुहैया करा देगा तो जो प्रत्याशी साधन संपन्न नहीं हैं, उन्हें भी ये डेटा मिल जाएगा।इसी बात को एडीआर के संस्थापक जगदीप एस चोक्कर ने द वायर में अपने लेख में और भी बेहतर ढंग से बताया है। एडीआर ही वो संस्था है जिसने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में उठाया है। उसी की याचिका पर सुनवाई हो रही है। जगदीप चोक्कर ने कहा कि सभी राजनीतिक दल सभी लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव नहीं लड़ते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि जो राजनीतिक दल अगर किसी लोकसभा क्षेत्र में चुनाव नहीं लड़ रहा है तो उसके मतलब का वो डेटा नहीं होगा। यह बात तर्कसंगत नहीं है। चोक्कर का कहना है कि कैसे छोटे राजनीतिक दल फंडिंग की कमी की वजह से सभी बूथों या लोकसभा क्षेत्रों में पोलिंग एजेंट रखने का जोखिम नहीं उठा सकते।
भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जा रहा है। सात चरणों में होने वाला मौजूदा लोकसभा चुनाव यकीनन इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा चुनाव है। लेकिन लोकतंत्र और इसकी संवैधानिक संस्थाओं की आजादी दांव पर लगी हुई है। भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) की विश्वसनीयता सामने है। एक तरफ तो भारतीय चुनाव प्रक्रिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता देखने के लिए दूसरे देश के चुनाव आयोगों या वहां की संस्थाओं, बड़ी संख्या में विदेशी लोगों को आमंत्रित किया गया है। लेकिन तमाम आरोप कह रहे हैं कि ईसीआई वास्तव में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्था नहीं है। उसकी असलियत सामने आ चुकी है।