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आज़ाद पत्रकारिता को दबाने के लिए एजेंसियों का इस्तेमाल: एडिटर्स गिल्ड

आज़ाद पत्रकारिता को दबाने के लिए एजेंसियों का इस्तेमाल: एडिटर्स गिल्ड

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने दैनिक भास्कर और भारत समाचार के दफ़्तरों पर आयकर छापे को स्वतंत्र पत्रकारिता को दबाने वाला क़रार दिया है। 

एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने दैनिक भास्कर और भारत समाचार के दफ़्तरों पर आयकर छापे को स्वतंत्र पत्रकारिता को दबाने वाला क़रार दिया है। इसने आज बयान जारी कर कहा है कि वह 'स्वतंत्र पत्रकारिता को दबाने के लिए सरकारी एजेंसियों को एक जबरदस्त उपकरण के रूप में इस्तेमाल किए जाने' पर चिंतित है। 

बयान में इसने कहा है, 'पेगासस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल से पत्रकारों और नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं की व्यापक निगरानी पर हालिया मीडिया रिपोर्टों को देखते हुए यह और भी अधिक परेशान करने वाला है।'

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया यानी ईजीआई ने कहा है कि वह 'देश के प्रमुख समाचार पत्र समूह दैनिक भास्कर और लखनऊ स्थित एक स्वतंत्र समाचार चैनल भारत समाचार के कार्यालयों पर छापे के बारे में चिंतित है। इसने कहा कि यह कार्रवाई तब हुई है जब दैनिक भास्कर ने इस महामारी पर गंभीर रिपोर्टिंग की है। दैनिक भास्कर ने महामारी में सरकारी अधिकारियों द्वारा घोर कुप्रबंधन किए जाने और मानव जीवन के भारी नुक़सान को सामने लाया है।

एक दिन पहले ही देश के सबसे बड़े मीडिया समूहों में से एक दैनिक भास्कर के साथ ही न्यूज़ चैनल भारत समाचार के दफ़्तर पर भी आयकर छापे मारे गए हैं। इन मीडिया समूहों के अलावा दैनिक भास्कर अख़बार के मालिक सुधीर अग्रवाल और भारत समाचार के मुख्य संपादक बृजेश मिश्रा के घर भी छापे मारे जाने की ख़बर है। 

बता दें कि दैनिक भास्कर समूह काफ़ी वक़्त से तल्ख़ ख़बरें कर रहा है। केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार के अलावा मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरकार को एक्सपोज़ करने वाली अनेक ख़बरें पिछले कुछ महीनों में समाचार पत्र ने बहुत प्रमुखता के साथ प्रकाशित की हैं।

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान स्वास्थ्य के मोर्चे पर केन्द्र और राज्य की सरकारों की कथित नाकामियों को दैनिक भास्कर समूह ने बिंदास ढंग से छापा है। ऐसी ही ख़बरें उत्तर प्रदेश में भारत समाचार भी करते रहा है।

चाहे वह कोरोना संक्रमण के कारण अव्यवस्था का मामला हो या हाथरस मामले में रिपोर्टिंग का मामला या फिर उत्तर प्रदेश में अपराध की रिपोर्टिंग का मामला, भारत समाचार ने साहसिक पत्रकारिता की है। 

एडिटर्स गिल्ड ने दैनिक भास्कर की ऐसी साहसिक पत्रकारिता का भी ज़िक्र किया है। इसने बयान में कहा है, 'गिल्ड द्वारा आयोजित एक हालिया वेबिनार में भास्कर के राष्ट्रीय संपादक ओम गौड़ ने कहा था कि राज्य के अधिकारियों के हालिया आलोचनात्मक कवरेज के बाद सरकारी विभागों से उनके विज्ञापन में कटौती की गई थी। उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स में एक ऑप-एड भी लिखा था, जिसका शीर्षक था 'द गंगा इज रिटर्निंग द डेड'। इट डज नॉट लाई।'

भारत समाचार के बारे में भी गिल्ड ने कहा कि इस पर भी आयकर अधिकारियों ने छापे की कार्रवाई की है जो 'यूपी के कुछ चैनलों में से एक है जो राज्य सरकार से महामारी प्रबंधन के संबंध में कड़े सवाल पूछ रहा है'।

इसने आयकर छापे के समय को लेकर चिंता जताई है जब दोनों मीडिया संस्थान कड़े सवाल कर रहे थे। इसने फ़रवरी में ईडी द्वारा न्यूज़क्लिक.इन की वेबसाइट पर छापे मारे जाने का भी ज़िक्र किया है जो किसान आंदोलन और सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन की रिपोर्टिंग आगे बढ़कर कर रहा था। 

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