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एडिटर्स गिल्ड की वेबिनार में साइबर हुड़दंग, रद्द करनी पड़ी

एडिटर्स गिल्ड की वेबिनार में साइबर हुड़दंग, रद्द करनी पड़ी

नक्सल प्रभावित इलाक़ों में काम करनेवाले और लगातार उन इलाक़ों का दौरा करनेवाले पत्रकारों पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की वेबिनार में साइबर हुड़दंग हुआ। दस मिनट के भीतर ही वेबिनार रद्द करनी पड़ी।

एडिटर्स गिल्ड शुक्रवार को अनहर्ड वॉइसेज़ शृंखला की दूसरी वेबिनार कर रहा था। इसमें देश के नक्सल प्रभावित इलाक़ों में काम करनेवाले और लगातार उन इलाक़ों का दौरा करनेवाले पत्रकारों से बातचीत होनी थी। चर्चा का उद्देश्य इन इलाक़ों की समस्याओं और ख़ासकर वहाँ काम कर रहे पत्रकारों की चुनौतियों को सामने लाना था।

इस चर्चा में देश के जाने माने पत्रकार शामिल थे जिन्हें नक्सल प्रभावित इलाक़ों की कवरेज का लंबा अनुभव है। वरिष्ठ पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम और पूर्णिमा त्रिपाठी के अलावा झारखंड से फैसल अनुराग, छत्तीसगढ़ के बस्तर से तामेश्वर सिन्हा, महाराष्ट्र से मिलिंद उमरे और तेलंगाना से पी वी कोंडल राव को शामिल होना था। बातचीत ज़ूम के ज़रिए ऑनलाइन हो रही थी।

एडिटर्स गिल्ड के महासचिव संजय कपूर ने बातचीत की शुरुआत की और बताया कि यह शृंखला किस उद्देश्य से शुरू की गई है। उनकी बात के बीच में ही स्क्रीन पर एक गाना गाते हुए पुलिसवाले का वीडियो आना शुरू हुआ। उसे बंद किया गया तो कुछ ही देर के बाद फिर एक नाच-गाने का वीडियो दिखा। मीटिंग के होस्ट ने ऐसे वीडियो चलानेवाले लोगों को ब्लॉक किया।

इसके बाद चर्चा की शुरुआत में आलोक जोशी वक्ताओं का परिचय दे रहे थे जब अचानक एक आईडी से - ‘चुप, चुप, क्या बक रहा है’ की आवाज़ आनी शुरू हुई। कुछ देर फिर बात चली, जैसे ही आलोक ने पहली वक्ता मालिनी सुब्रमण्यम को बोलने के लिए कहा वैसे ही फिर किसी और आईडी से वैसी ही हरकत होने लगी। मीटिंग के होस्ट ऐसे लोगों को ब्लॉक कर रहे थे लेकिन अचानक ऐसे लोगों की भीड़ बढ़ने लगी और हालात क़ाबू से बाहर हो गए।

इसके साथ ही स्क्रीन पर अश्लील चित्रों की बारिश शुरू हो गई। किसी आईडी से वीडियो शेयर होने लगे तो अनेक लोग चैट बॉक्स में उलटी सीधी चीजें लिखने लगे और साथ-साथ अलग-अलग आईडी से तरह तरह का हो हल्ला भी शुरू हो गया।

इसमें गाली गलौज भी शामिल थी। मजबूरन वेबिनार को बंद करना पड़ा। तब तक एक भी वक्ता अपनी बात नहीं रख पाए थे। 

एडिटर्स गिल्ड ने एक बयान में कहा है कि गिल्ड इस घटना से स्तब्ध और व्यथित है। साफ़ है कि यह हमला ऐसे लोगों ने किया जो नहीं चाहते थे कि वक्ताओं की बात सुनी जाए। सरकारी ज़्यादतियों की कुछ सबसे भयावह और बर्बर वारदातें नक्सल प्रभावित इलाक़ों में ही हुई हैं। इस वेबिनार में जो वक्ता शामिल थे वो दसियों साल से इस इलाक़े में चल रहे संघर्ष और मानवाधिकार हनन की घटनाओं को प्रकाश में लानेवालों की अग्रिम पंक्ति में शामिल रहे हैं।

एडिटर्स गिल्ड इस घटना को अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बेशर्मी भरे हमला मानती है। बयान में यह भी कहा गया है कि इस वेबिनार के रद्द होने तक की पूरी रिकॉर्डिंग मौजूद है और गिल्ड दिल्ली पुलिस के साइबर सेल से इस हमले की जाँच की माँग करती है।

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