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तीसरी बार क्यों बढ़ा ईडी प्रमुख का कार्यकाल?

तीसरी बार क्यों बढ़ा ईडी प्रमुख का कार्यकाल?

साल 2020 में संजय कुमार मिश्रा ऐसे पहले शख्स थे, ईडी प्रमुख रहते हुए जिनके कार्यकाल को विस्तार दिया गया था। साल 2021 में उन्हें दूसरा कार्यकाल विस्तार देने से पहले केंद्र सरकार ने जांच एजेंसियों के प्रमुखों के कार्यकाल को बढ़ाने के संबंध में नियमों में संशोधन कर शासनादेश जारी किया था। ईडी प्रमुख का कार्यकाल आखिर बार-बार क्यों बढ़ाया जा रहा है। 

केंद्र सरकार ने गुरुवार को जांच एजेंसी ईडी के प्रमुख संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल एक बार फिर बढ़ा दिया है। मिश्रा के कार्यकाल को तीसरी बार विस्तार दिया गया है और अब वह इस पद पर 18 नवंबर 2023 तक रहेंगे और तब वह ईडी प्रमुख के पद पर अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा कर लेंगे। केंद्रीय कैबिनेट की एक कमेटी ने इसे मंजूरी दी है। संजय कुमार मिश्रा को मई 2020 में रिटायर होना था। 

साल 2020 में संजय कुमार मिश्रा ऐसे पहले शख्स थे, ईडी प्रमुख रहते हुए जिनके कार्यकाल को विस्तार दिया गया था। साल 2021 में उन्हें दूसरा कार्यकाल विस्तार देने से पहले केंद्र सरकार ने जांच एजेंसियों के प्रमुखों के कार्यकाल को बढ़ाने के संबंध में नियमों में संशोधन कर शासनादेश जारी किया था। 

इससे पहले केंद्रीय एजेंसियों के प्रमुखों का कार्यकाल 2 साल का होता था लेकिन इस संशोधन के बाद वह अपने पद पर 5 साल तक बने रह सकते हैं। 

केंद्र सरकार के द्वारा किए गए इस संशोधन का कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस सहित कई अन्य दलों ने विरोध किया था। 13 नवंबर 2020 को जब पहली बार संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल बढ़ाया गया था तो इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसमें किसी तरह का दखल देने से इंकार कर दिया था। 

साल 2021 में दूसरी बार कार्यकाल बढ़ाए जाने के बाद एक एनजीओ कॉमन कॉज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्र सरकार के इस फैसले को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि सरकार ईडी के प्रमुख का कार्यकाल इस एजेंसी द्वारा देखे जा रहे सभी अहम मामलों की जांच के पूरा होने तक नहीं बढ़ा सकती है। 

ऐसे में ईडी प्रमुख के कार्यकाल को बढ़ाए जाने को लेकर एक बार फिर विपक्षी दल केंद्र सरकार पर हमला बोल सकते हैं।  

सुप्रीम कोर्ट ने इस साल जुलाई में ईडी के खिलाफ दायर सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया था और पीएमएलए के सभी कड़े प्रावधानों जिसमें जांच करना, तलाशी लेना, संपत्तियों की कुर्की करना, गिरफ्तार करना और जमानत आदि के प्रावधान हैं, इन्हें बरकरार रखा था। 

इस मामले में कांग्रेस नेता और सांसद कार्ति चिदंबरम, जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सहित कई अन्य लोगों ने याचिकाएं दायर की थी। 

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याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलील में कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में ईडी के द्वारा छापेमारी मोदी सरकार में 26 गुना बढ़ गई है जबकि इसमें अपराध साबित होने की दर कम है। वित्त मंत्रालय ने राज्यसभा में बताया था कि पिछले 8 सालों में मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में 3010 बार छापेमारी की गई है और इसमें सिर्फ 23 अभियुक्त दोषी पाए गए हैं।

ईडी को लेकर जोरदार विरोध

बता दें कि ईडी की कार्रवाई को लेकर बीते कई महीनों से हंगामा चल रहा है। तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने आरोप लगाया है कि ईडी मोदी सरकार के इशारे पर उनके नेताओं को परेशान कर रही है। बीते कुछ सालों में विपक्ष के कई नेताओं को ईडी के साथ ही दूसरी जांच एजेंसियां भी समन भेज चुकी हैं और कई बड़े नेताओं की गिरफ्तारी भी हो चुकी है। 

कुछ महीने पहले सोनिया गांधी और राहुल गांधी से नेशनल हेराल्ड मामले में हुई कथित गड़बड़ियों के बारे में ईडी की पूछताछ को लेकर देशभर का सियासी माहौल बेहद गर्म रहा था। कांग्रेस ने ईडी को सरकार की कठपुतली बताया था।

विपक्षी नेता निशाने पर 

अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जांच एजेंसी ईडी ने साल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से 121 नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की है। इन 121 नेताओं में से 115 विपक्षी दलों के नेता हैं। इसका मतलब ईडी के निशाने पर 95 फीसद विपक्षी नेता रहे जबकि यूपीए सरकार के 2004 से 2014 यानी 10 साल के कार्यकाल में ईडी ने 26 राजनेताओं के खिलाफ जांच की थी और इसमें से 14 राजनेता विपक्षी दलों के थे। यह आंकड़ा 54 फीसद है। 

अखबार की इस रिपोर्ट से पता चलता है कि मोदी सरकार के 8 साल के कार्यकाल में यूपीए सरकार के 10 सालों के शासन की तुलना में कहीं ज्यादा विपक्षी नेताओं के खिलाफ ईडी ने कार्रवाई की है। 

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सीबीआई का भी यही हाल

द इंडियन एक्सप्रेस ने जांच एजेंसी सीबीआई को लेकर भी इस तरह की खबर प्रकाशित की थी। जिसमें कहा गया था कि यूपीए सरकार के 10 साल के शासन में यानी 2004 से 2014 तक अलग-अलग राजनीतिक दलों के 72 नेता सीबीआई के शिकंजे में आए। इसमें से 43 नेता विपक्षी दलों के थे। इस हिसाब से यह आंकड़ा 60 फीसद होता है लेकिन बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की दूसरी सरकार के 2014 से अब तक यानी 8 साल के शासन में ही 124 नेताओं के खिलाफ सीबीआई ने कार्रवाई की है। इसमें से 118 नेता विपक्षी राजनीतिक दलों के हैं और यह आंकड़ा 95 फीसद है। 

हिमंता के खिलाफ जांच बंद?

अखबार ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के खिलाफ जांच एजेंसी सीबीआई और ईडी ने साल 2014 और 2015 में शारदा चिटफंड घोटाले के मामले में जांच की थी। उस वक्त सरमा कांग्रेस में थे। सीबीआई ने साल 2014 में उनके घर पर छापेमारी की थी और उनसे पूछताछ भी की थी लेकिन बीजेपी में शामिल होने के बाद से ही उनके खिलाफ किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई है। 

इसी तरह तृणमूल कांग्रेस के नेता शुभेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय के खिलाफ भी जांच एजेंसी सीबीआई और ईडी ने नारदा स्टिंग ऑपरेशन मामले में कार्रवाई की थी। शुभेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे हालांकि मुकुल रॉय बाद में तृणमूल कांग्रेस में लौट आए थे। लेकिन इन दोनों के खिलाफ पिछले कुछ वक्त में जांच एजेंसियों ने कोई कार्रवाई नहीं की है। 

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