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पुलिस ने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ को हिरासत में लिया, रिहा किया

पुलिस ने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ को हिरासत में लिया, रिहा किया

मशहूर अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज़ को झारखंड पुलिस ने गढ़वा में हिरासत में ले लिया। बाद में उन्हें बग़ैर किसी अभियोग के रिहा कर दिया गया। 

झारखंड पुलिस ने मशहूर अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज़ को दूसरे दो लोगों के साथ हिरासत में ले लिया, पर बाद में बग़ैर कोई आरोप लगाए उन्हें रिहा कर दिया। उन्हें हिरासत में लेते हुए पुलिस ने कहा था कि द्रेज़ बग़ैर पूर्व अनुमति के गढ़वा ज़िल के विष्णुपुर में भोजन के अधिकार पर एक जनसभा में बोल रहे थे। 

पुलिस ने उन तीनों को विष्णुपुर थाने ले जाकर पूछताछ की और उसके बाद उन्हें रिहा कर दिया। ज़िला प्रशासन ने कहा है कि उन लोगों को पुलिस ने ग़लतफहमी के कारण हिरासत में लिया था। उनसे कोई पूछताछ नहीं की गई और न ही उन पर कोई आरोप लगाया गया। प्रशासन ने यह भी कहा है कि इस पूरे मामले की जाँच की जाएगी। 

सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने इस पर ट्वीट कर कहा कि वह इस घटना से सदमे में हैं। उन्होंने लिखा है, 'ज्यां द्रेज़ संत-अर्थशास्त्री हैं, वह नोबेल पुरस्कार पाने के हक़दार हैं, वह झुग्गी झोपड़ियों में रह कर ग़रीबों के लिए काम करते हैं, उन्होंने उन ग़रीबों के लिए किसी भी दूसरे अर्थशास्त्री से ज़्यादा लिखा है और काम किया है। उन्होंने तड़क भड़क की ज़िन्दगी छोड़ कर ग़रीबों के लिए काम किया और भारत की नागरिकता ले ली।' 

मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट कर तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा कि गुड़गाँव में मुसलमान परिवार को पीटने वाले गुंडे खुले आम घूम रहे हैं और प्रधानमंत्री डीआरडीओ की उपलब्धि पर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। 

यूरोपीय देश बेल्जियम मे जन्मे ज्यां द्रेज़ विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर शोध करने वाले अर्थशास्त्री हैं, जिन्होंने भारत को अपनी कर्मभूमि चुना और यहीं बस गए, उन्होंने भारत की नागरिकता ले ली। उन्होंने ग़रीबी, भुखमरी, लिंग-भेद और उससे उपजे आर्थिक भेद-भाव, बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे विषयों पर काम किया। उन्होंने ही नेशनल रूरल इंप्लायमेंट गारंटी स्कीम यानी नरेगा की सलाह दी थी और उसकी रूप-रेखा तय की थी। मनमोहन सिंह सरकार ने इसे शुरू किया तो ज्यां द्रेज़ ने ही उसे लागू किया था। वह भोजन के अधिकार आन्दोलन से जुड़े हुए रहे और जिस समय उन्हें हिरासत में लिया, वह इससे जुड़ी  सभा में ही बोल रहे थे। 

क्या है भोजन का अधिकार

भोजन का अधिकार आन्दोलन चलाने वाले या उन्हें समर्थन देने वाले यह मानते हैं कि हर किसी को भरपेट भोजन मिलना ही चाहिए, यह मनुष्य का बुनियादी हक है औ मानवाधिकार की श्रेणी में आता है। हर मनुष्य सम्मान के साथ जिए, इसके लिए भोजन आवश्यक है। भोजन का अधिकार किसी तरह की दया या दानशीलता का मामला नहीं है, यह मौलिक अधिकार है। इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑन इकोनॉमिक, सोशल एंड कल्चरल राइट्स ने 11 मानवाधिकारों में भोजन के अधिकार को शामिल कर रखा है। 

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