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पड़ोसी देशों के आर्थिक हालात खराब, भारत कितना सुरक्षित 

पड़ोसी देशों के आर्थिक हालात खराब, भारत कितना सुरक्षित 

उनको हटाकर शाहबाज शरीफ प्रधानमंत्री  बने। लेकिन लगातार बढ़ते आर्थिक संकट के बीच वह कितने दिन तक इस पद पर रह पाएंगे यह देखना बहुत अहम होगा

पाकिस्तान इन दिनों भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है। वहां खाद्य पदार्थों के दाम बेताहाशा बढ़े हुए हैं। पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे हैं। एक लीटर पेट्रोल की कीमत 249.80 रुपये प्रति लीटर, हाई-स्पीड डीजल की कीमत 262.80 रुपये प्रति लीटर, मिट्टी के तेल की कीमत 189.83 रुपये प्रति लीटर और हल्के डीजल की कीमत 187 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई हैं। बिजली से लेकर आटे तक का संकट बढ़ता जा रहा है।

वहां की सरकार तमाम विदेशी संस्थाओं से बेलआउट पैकेज की मांग कर रही है। लेकिन अभी तक बात फाइनल नहीं हो पाई है। उसका विदेशी मुद्रा भंडार भी दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है। उसके पास शेष बचे मुद्रा भंडार से एक हफ्ते से कम का खर्च निकलेगा।

इस सबके बीच उसका राजनीतिक संकट भी बरकरार है। वहां हुए पिछले चुनाव पाकिस्ताम क्रिकेट के लोकप्रिय कप्तान चुनान जीतकर प्रधानमंत्री बने थे लेकिन वह बहुत ज्यादा दिनों तक अपने पद पर नहीं रह सके। उनको हटाकर शाहबाज शरीफ प्रधानमंत्री  बने। लेकिन लगातार बढ़ते आर्थिक संकट के बीच वह कितने दिन तक इस पद पर रह पाएंगे यह देखना बहुत अहम होगा।

पाकिस्तान में साल के आखिर में आम चुनाव होने हैं और सरकार हर स्तर पर प्रयास कर रही है कि आर्थिक संकट को जल्द से जल्द सुल्झा लिया जाए।

पाकिस्तान आर्थिक संकट से निकलने के लिए आईएमएफ से कर्ज मांग रहा है लेकिन बात बनती नहीं दिख रही, इसका कारण IMF की कड़ी शर्तें हैं जो उसने पाकिस्तान को कर्ज देने के बदले में लगाई हैं। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने कहा था कि ये शर्तें ऐसी हैं जिनको मानना अपने को और मुसीबत में डालने के जैसा है, इससे तो बेहतर है कि हम कर्ज ही न लें। 

पाकिस्तान की वर्तमान आर्थिक हालातों के लिए क्रोनी केप्टलिज्म हमेशा एक बड़ा मुद्दा रहा है। देश के कुछ बड़े उद्दोगों में बड़े राजनीतिक घरानों का कब्जा है। जिसमें शरीफ परिवार और भुट्टो-जरदारी सबसे अहम है और यह दोनों ही परिवार पाकिस्तान की राजनीति में तीन दशकों से कब्जा जमाए बैठै हैं।

पाकिस्तान से इतर श्रीलंका पहले ही दिवालिया हो चुका है। बीते दिनों श्रीलंका में भयंकर विरोध प्रदर्शन हुए। सरकार के खिलाफ विरोध इतना ज्यादा था कि विद्रोहियों ने सरकारी इमारतों से लेकर राष्ट्रपति के सरकारी आवास पर कब्जा तक कर लिया।

लंका के इन हालातों तक पहुंचने के लिए वहां की राजनीति में कब्जा कर चुके महिंदा राजपक्षे और उनके परिवार की मुख्य भूमिका रही, जिन्होंने जनता विरोधी नीतियों का पालन किया। इसके लिए उन्होंने उसी राष्ट्रवाद का चोला पहना जो दक्षिणपंथी राजनीति की मुख्य पहचान रही है। एक समय में पूरा राजपक्षे परिवार ही सरकार में शामिल था। राजपक्षे परिवार पर आरोप है कि वह आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा हुआ था। और उसने इस सरकारी योजनाओ से बहुत पैसा बनाया। जिसका नतीजा आम जनता की कमाई पर पड़ा जो लगातार घटती गई।  लेकिन राजपक्षे परिवार ने बेशुमार दौलत जमा की

ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में जहां पूरा विश्व एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। वहां भारत के हालात भी बहुत बेहतर नहीं है। एक तरफ देश सबसे ज्यादा बेरोजगारी के दौर से गुजर रहा है। दूसरी तरफ सरकार पांच ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के शिगूफे को आगे बढ़ा रही है। इस सबके के बीच में भारत में क्रोनी केपट्लिज्म भी अपने चरम पर है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में अडानी समूह पर लगे आरोप उसी क्रोनी केप्टलिज्म के उदाहरण हैं। जिनसे पाकिस्तान और श्रीलंका पहले ही दो-चार हो चुके हैं।

ऐसे समय में जब दो पड़ोसी देश एक साथ आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं तब सवाल उठता है कि भारत कबतक ऐसी स्थिति से बचा रहेगा। क्योंकि दुनिया भर में मंदी की आहट है, गूगल, फेसबुक और अमेजन जैसी बड़ी कंपनियों ने पहले ही नौकरियों में कटौती करके इसके संकेत दे दिए हैं।

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