+
शहरों में मनरेगा जैसी रोजगार गारंटी योजना हो: पीएम सलाहकार पैनल

शहरों में मनरेगा जैसी रोजगार गारंटी योजना हो: पीएम सलाहकार पैनल

ख़राब आर्थिक हालात व बेरोजगारी की समस्या को खारिज करती रही सरकार की ही संस्थाओं को अब क्या बेरोजगारी के भयावह संकट और आर्थिक हालात को लेकर चिंता सताने लगी है?

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने आर्थिक हालात सुधारने के लिए अपनी एक रिपोर्ट में अहम सुझाव दिए हैं। इसने सलाह दी है कि सरकार शहरी बेरोजगारों के लिए एक गारंटीकृत रोजगार योजना शुरू करे और यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम शुरू करे। यानी रिपोर्ट में साफ़ तौर पर कहा गया है कि परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरुआती की जाए जिससे उनकी आमदनी बढ़े।

इसके साथ ही सामाजिक क्षेत्र के लिए और धन आवंटित करने की सिफ़ारिश की गई है ताकि असमानता को दूर किया जा सके। देश में आय के असमान वितरण का हवाला देते हुए रिपोर्ट में न्यूनतम आय को बढ़ाने और सामाजिक क्षेत्र पर सरकारी खर्च बढ़ाने के लिए कदम उठाने की भी सिफारिश की गई ताकि कमजोर वर्गों को अचानक झटके से बचाया जा सके और गरीबी में उनको फिसलने से रोका जा सके।

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद की सिफारिश में असमानता को दूर करने पर खास जोर दिया गया है। बता दें कि हाल ही में ऐसी रिपोर्ट आई थी जिसमें भारत में असमानता बेहद ज़्यादा रही। विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 में कहा गया है कि भारत के शीर्ष के एक प्रतिशत लोगों के पास 22 प्रतिशत आय है, संपन्न 10 प्रतिशत लोगों के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत है। दूसरी ओर, 50 प्रतिशत यानी कुल आबादी के आधे लोगों के पास 13 प्रतिशत आमदनी है।

भारत को 'गरीब और बेहद असमान' देश बताने वाली वैश्विक असमानता रिपोर्ट को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खारिज कर दिया था। उन्होंने संसद में एक बयान में उस रिपोर्ट को तैयार करने के तौर-तरीक़ों पर सवाल उठाए थे और कहा था कि वह कार्यप्रणाली 'त्रुटिपूर्ण और संदिग्ध' है।

बहरहाल, अब प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने एक रिपोर्ट 'भारत में असमानता की स्थिति' में कहा है, 'ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में श्रम शक्ति भागीदारी दर के बीच अंतर को देखते हुए यह हमारी समझ है कि मनरेगा जैसी योजनाओं को शहरी क्षेत्र में लागू किया जाना चाहिए। मनरेगा मांग आधारित योजना है और ऐसी ही गारंटीकृत रोजगार की पेशकश शहरों में की जानी चाहिए ताकि अधिशेष श्रम को समायोजित किया जा सके।' 

यह रिपोर्ट गुड़गांव स्थित इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पीटिटिवनेस द्वारा तैयार की गई है और इसको बुधवार को आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय द्वारा जारी किया गया। 

इस रिपोर्ट का उद्देश्य सरकार को देश में सामाजिक प्रगति और साझा समृद्धि के लिए सुधार की रणनीति और रोडमैप तैयार करने में मदद करना है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यूनतम आय बढ़ाना और सार्वभौमिक बुनियादी आय शुरू करना कुछ ऐसे कदम हैं जो आय के अंतर को कम कर सकते हैं और श्रम बाजार में आय का समान वितरण कर सकते हैं।'

विश्व असमानता रिपोर्ट से अलग इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल अर्जित आय में शीर्ष 1% की हिस्सेदारी 6-7% है, जबकि शीर्ष 10% की कुल आय का एक तिहाई हिस्सा है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि तीन वर्षों से 2019-20 तक, देश की कुल आय में शीर्ष 1 प्रतिशत आबादी का हिस्सा 6.14 प्रतिशत से बढ़कर 6.82 प्रतिशत हो गया। इसने कहा कि हालाँकि शीर्ष 10 प्रतिशत की आय हिस्सेदारी 2017-18 में 35.18 प्रतिशत से घटकर 2019-20 में 32.52 प्रतिशत रह गई है। नीचे के 10 प्रतिशत ने लगभग 1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की।

रिपोर्ट में कहा गया है कि शिक्षा तक समान पहुँच और लंबी अवधि के विकास के साथ अधिक नौकरियों का सृजन गरीबों को ऊपर उठाने के लिए अहम है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, 'सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार को सामाजिक सेवाओं और सामाजिक क्षेत्र के लिए ख़र्च का अधिक प्रतिशत आवंटित करना चाहिए ताकि सबसे कमजोर आबादी को अचानक झटके के लिए लचीला बनाया जा सके और गरीबी में उनके फिसलने को रोका जा सके।'

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें