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राहुल की सीट पर इंतज़ार, आज़म के बेटे की सीट पर उपचुनाव की जल्दी क्यों?

राहुल की सीट पर इंतज़ार, आज़म के बेटे की सीट पर उपचुनाव की जल्दी क्यों?

चुनाव आयोग का हर सीट पर अलग-अलग रवैया क्यों रहा है? ऐसा क्यों है कि लक्षद्वीप, रामपुर और स्वार में चुनाव आयोग को चुनाव कराने की जल्दी है, जबकि खतौली और वायनाड सीट पर उसे उपचुनाव की जल्दी नहीं होती है?

चुनाव आयोग ने बुधवार को कर्नाटक के विधानसभा चुनाव के साथ ही एक लोकसभा सीट और 4 राज्यों की 5 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का भी ऐलान किया है। ख़ास बात यह है कि हाल ही में राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने से खाली हुई केरल की वायनाड लोकसभा सीट पर उपचुनाव का ऐलान नहीं किया गया है। इस पर उपचुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग राहुल गांधी की सजा पर हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहता है। वहीं दूसरी तरफ़ उसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किए बिना ही उत्तर प्रदेश की स्वार विधानसभा सीट पर उपचुनाव का ऐलान कर दिया है।

गौरतलब है कि जब चुनाव और उपचुनाव की तारीखों के ऐलान के लिए चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस चल रही थी उसी वक्त सुप्रीम कोर्ट में स्वार सीट से विधायक रहे अब्दुल्ला आजम की याचिका पर सुनवाई चल रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल्लाह की सजा पर राज्य सरकार का पक्ष जाने बगैर रोक लगाने से तो इंकार कर दिया लेकिन अब्दुल्ला की विधायकी रद्द करने के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया है। इस मामले में अगली सुनवाई 5 अप्रैल को होनी है। ऐसे में उपचुनाव कराने का फ़ैसला कहाँ तक उचित है? जब चुनाव आयोग राहुल गांधी के लिए छह महीने इंतजार कर सकता है तो अब्दुल्ला आजम के लिए वो पांच महीने इंतजार क्यों नहीं कर सकता?

वायनाड में उपचुनाव में देरी क्यों?

केरल की वायनाड सीट पर उपचुनाव कराए जाने के बारे में पूछे गए सवाल पर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि खाली हुई सीट पर उपचुनाव कराने के लिए 6 महीने का वक्त होता है। ट्रायल कोर्ट ने राहुल गांधी को 30 दिन का वक्त दिया है ताकि वो ऊपरी अदालत में अपील दायर कर सकें। इसलिए अभी हम इंतजार करेंगे। राहुल गांधी को 23 मार्च को सूरत की अदालत ने मानहानि के मामले में दो साल की सजा सुनाई थी। लोकसभा सचिवालय ने 24 मार्च को राहुल गांधी लोकसभा सदस्यता रद्द करते हुए केरल की वायनाड लोकसभा सीट खाली होने की सूचना चुनाव आयोग को भेज दी थी। अब इस सीट पर उपचुनाव कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है।

स्वार विधानसभा के उपचुनाव में जल्दबाज़ी क्यों?

चुनाव आयोग एक जैसे मामलों में दोहरा रवैया अपना रहा है। वायनाड लोकसभा सीट पर वो इंतजार करना चाहता है जबकि 4 सीटों पर उसे चुनाव कराने की जल्दबाजी है। एक सीट अब्दुल्ला आजम की विधायकी रद्द किए जाने की वजह से खाली हुई है और 13 फरवरी को 15 साल पुराने मामले में 2 साल की सजा दी गई थी। 15 फरवरी को उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द करने की अधिसूचना जारी कर दी थी। अगर किसी खाली हुई सीट पर उपचुनाव कराने के लिए 6 महीने का वक्त होता है तो इस हिसाब से 4 सीट पर साढ़े 4 महीने का वक्त अभी बाकी है। सुप्रीम कोर्ट में अब्दुल्ला आजम की विधायकी रद्द करने के मामले पर सुनवाई चल रही है।

अब्दुल्ला आजम को नहीं मिली राहत

निचली अदालत से 2 साल की सजा होने के बाद अब्दुल्ला ने मुरादाबाद की एमपी एमएलए कोर्ट में अपनी सजा पर रोक लगाने के लिए याचिका दाखिल की थी लेकिन वहाँ से उन्हें कोई राहत नहीं मिली। उसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपनी विधानसभा सदस्यता रद्द करने के उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय के फ़ैसले को चुनौती दी है। 

 - Satya Hindi

लक्षद्वीप में भी उपचुनाव की दिखाई थी जल्दबाज़ी

करीब 2 महीने पहले चुनाव आयोग ने सांसद मोहम्मद फैजल की सदस्यता रद्द होने के फौरन बाद उपचुनाव कराने की जल्दबाजी दिखाई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में उसे मुंह की खानी पड़ी। 11 जनवरी को लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल को हत्या के प्रयास के मामले में 10 साल की सजा सुनाई गई थी। 12 जनवरी को उन्होंने अपनी सजा पर रोक के लिए केरल हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी थी। 13 जनवरी को लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द कर दी थी। 

18 जनवरी को चुनाव आयोग ने लक्षद्वीप लोकसभा सीट पर उपचुनाव का ऐलान कर दिया था। मोहम्मद फ़ैज़ल ने चुनाव आयोग के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

क्या हुआ था सुप्रीम कोर्ट में?

25 जनवरी को ही हाई कोर्ट ने फ़ैज़ल की सजा पर रोक लगा दी थी। 27 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान फैज़ल के वकील कपिल सिब्बल और चुनाव आयोग के वकील मनिंदर सिंह के बीच तीखी बहस हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि जब मोहम्मद फ़ैज़ल की अपनी सजा पर रोक के लिए हाईकोर्ट में याचिका लंबित थी तो उसने उपचुनाव के ऐलान के लिए हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार क्यों नहीं किया? आयोग के वकील ने यह कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा था कि सूचना क्रांति के इस दौर में यह पता लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है कि किस मामले में अदालत में क्या कार्रवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद चुनाव आयोग को लक्षद्वीप में उपचुनाव कराने का फैसला पलटना पड़ा था।

रामपुर उपचुनाव में भी हुई थी जल्दबाज़ी

रामपुर में उपचुनाव को लेकर भी काफी खींचतान हुई थी। पिछले साल 27 अक्टूबर को आजम खान को ‘हेट स्पीच’ मामले में 3 साल की सजा सुनाई गई थी। उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय ने 28 अक्टूबर को उनकी सदस्यता रद्द कर दी थी। चुनाव आयोग ने 6 नवंबर को रामपुर के साथ विधानसभा सीट पर उपचुनाव का ऐलान कर दिया था। आजम खान ने चुनाव आयोग के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि आजम ख़ान की सजा पर रोक की अपील पर फ़ैसला आने से पहले उपचुनाव न कराया जाए। इसके अगले ही दिन उनकी अपील पर सेशन कोर्ट में सुनवाई हुई और उनकी अपील खारिज कर दी गई। अपील खारिज होते चुनाव आयोग ने फिर से चुनाव की नई तारीख़ का ऐलान करके चुनाव करा दिए थे।

खतौली को लेकर हुआ था विवाद

खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव को लेकर काफी विवाद हुआ था। खतौली से तत्कालीन विधायक विक्रम सिंह सैनी को 13 अक्टूबर को मुजफ्फरनगर दंगों के एक मामले में 2 साल की सजा सुनाई गई थी। लेकिन विधानसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द करने के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की थी। आजम खान की विधायकी रद्द होने के बाद रालोद अध्यक्ष चौधरी जयंत ने इस सिलसिले में विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को पत्र लिखकर सैनी की सदस्यता रद्द करने की मांग की थी। तब उन्होंने राज्य के न्याय विभाग से कानूनी सलाह लेने के बाद विक्रम सिंह सैनी की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी थी। तब चौतरफा दबाव में आकर चुनाव आयोग को खतौली विधानसभा सीट पर भी रामपुर के साथ ही उपचुनाव कराना पड़ा था।

अब सवाल यह है कि चुनाव आयोग हर सीट पर अलग-अलग रवैया क्यों अपनाता है। ऐसा क्यों है कि लक्षद्वीप, रामपुर और स्वार में चुनाव आयोग को चुनाव कराने की इतनी जल्दी होती है कि वो अदालत में लंबित याचिकाओं पर फैसले का इंतज़ार तक नहीं करता। जबकि खतौली और वायनाड सीट पर उसे उपचुनाव की जल्दी नहीं होती है। चुनाव आयोग का यह मनमाना रवैया उसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है। बेहतर हो कि चुनाव आयोग हर मामले में एक जैसी नीति पर काम करे ताकि उसकी निष्पक्षता बनी रहे।

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