
विवादों में घिरे चुनाव आयोग ने राज्यों के चुनाव अधिकारियों से क्या कहा?
केंद्रीय चुनाव आयोग ने मंगलवार को दिल्ली में सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEOs) का सम्मेलन बुलाया। मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार के पदभार संभालने के बाद आयोजित होने वाला पहला ऐसा सम्मेलन है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) को लेकर आयोग पर गंभीर आरोप लगाये हैं। उम्मीद की जा रही थी कि सीईसी ज्ञानेश कुमार इस सम्मेलन में कोई प्रतिक्रिया देंगे। लेकिन वो चुप रहे। हालत ये है कि टीएमसी ने खुलकर कहा है कि चुनाव आयोग बीजेपी के इशारे पर दूसरे राज्यों के मतदाताओं को पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में डाल रहा है। इतने बड़े आरोप के बावजूद मुख्य चुनाव आयुक्त चुप हैं।
राज्यों के चुनाव अधिकारियों के इस सम्मेलन में ईसीआई के अन्य आयुक्त डॉ. सुखबीर सिंह संधू और डॉ. विवेक जोशी भी मौजूद थे। इन लोगों ने भी इस विवाद पर कुछ नहीं कहा।
टीएमसी ने ईसीआई के खिलाफ जो मोर्चा खोला है, उससे पहले कांग्रेस ने भी हरियाणा और महाराष्ट्र में मतदाता बढ़ने, मतदान प्रतिशत में घटाव-बढ़ाव को लेकर तमाम आरोप ईसीआई पर लगाये हैं। इसी तरह आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की मतदाता सूची में मतदाता बढ़ाने का आरोप लगाया था। लेकिन टीएमसी ने सबूतों के साथ जो आरोप लगाये हैं, वे ज्यादा गंभीर हैं। लेकिन चुनाव आयोग की सफाई न आने से मामला उलझता जा रहा है।
सीईसी ज्ञानेश कुमार ने सम्मेलन में राज्यों के अधिकारियों को राजनीतिक दलों के प्रति सुलभ और उत्तरदायी बनने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि मौजूदा वैधानिक ढांचे के भीतर किसी भी मुद्दे को हल करने के लिए संबंधित सक्षम प्राधिकारी यानी ERO, DEO या CEO नियमित रूप से सभी दलों की बैठकें आयोजित करें। सभी CEO कार्रवाई रिपोर्ट 31 मार्च, 2025 तक संबंधित DEC को भेजें। यानी ज्ञानेश कुमार एक तरफ तो राज्यों के चुनाव अधिकारियों से पारदर्शिता और राजनीतिक दलों के मुद्दों को हल करने की बात कह रहे हैं और दूसरी तरफ केंद्रीय स्तर पर आयोग खुद खामोश है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि सभी CEOs, DEOs, ROs और EROs को अपनी भूमिकाओं और जिम्मेदारियों की पूरी जानकारी होनी चाहिए। कानून और चुनाव आयोग के निर्देशों में स्पष्ट रूप से इसे बताया गया है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत के सभी नागरिक जो 18 वर्ष से अधिक आयु के हैं, संविधान के अनुच्छेद 325 और 326 के तहत मतदाता के रूप में पंजीकृत हों। उन्होंने निर्देश दिया कि सभी BLOs को मतदाताओं के साथ विनम्रता से पेश आने के लिए ट्रेनिंग दी जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी झूठे दावे का इस्तेमाल करके किसी भी चुनावी कर्मचारी या अधिकारी को धमकाया न जाए।
ज्ञानेश कुमार ने सभी CEOs, DEOs, EROs और BLOs सहित सभी अधिकारियों से आह्वान किया कि वे पारदर्शी तरीके से काम करें और मौजूदा कानूनी ढांचे यानी जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और 1951, निर्वाचक नियमावली 1960, चुनाव संचालन नियम 1961 और चुनाव आयोग द्वारा समय-समय पर जारी निर्देशों के अनुसार सभी वैधानिक दायित्वों को निष्ठापूर्वक पूरा करें।
और क्या फैसले लिये गये
राज्यों के चुनाव अधिकारियों के सम्मेलन में कुछ फैसले भी लिये गये, जिनसे पता चलता है कि आने वाले समय में चुनाव प्रक्रिया में और भी बदलाव दिखाई पड़ सकते हैं।- हर मतदान केंद्र पर 800-1200 मतदाताओं की संख्या तय की जाय।
- हर मतदाता के निवास से मतदान केंद्र 2 किमी के दायरे में हो।
- शहरी क्षेत्रों में मतदान बढ़ाने के लिए अपार्टमेंट्स और झुग्गी बस्तियों में भी मतदान केंद्र स्थापित किए जाए।
- आयोग ने पूरी चुनाव प्रक्रिया में 28 अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स की पहचान की है, जिनमें CEOs, DEOs, EROs, राजनीतिक दल, उम्मीदवार, मतदान एजेंट आदि शामिल हैं।
- इन्हें भी चार समूहों में विभाजित किया गया है, जैसे मतदाता सूची, चुनाव संचालन, पर्यवेक्षण/प्रवर्तन और राजनीतिक दल/उम्मीदवार, जिनका मार्गदर्शन आयोग के चार DECs करेंगे।
इस बैठक को इस मायने में महत्वपूर्ण कहा जा सकता है कि पहली बार हर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश से एक DEO और एक ERO ने इसमें भाग लिया। यानी चुनाव प्रबंधन को संभालने वाले बहुत ही महत्वपूर्ण अधिकारियों को भी इस सम्मेलन में बुलाया गया। लेकिन ईसीआई जब खुद विवादों में है तो जमीन पर चुनाव कराने वाले डीईओ और ईआरओ को भाषण पिलाने से क्या निष्पक्ष चुनाव की कल्पना की जा सकती है।
इस समय भारत के चुनाव आयोग की कार्रवाई और विश्वसनीयता पर सबसे बड़ा संकट है। खासकर अब, जब चुनाव आयुक्तों को मोदी सरकार नियुक्त कर रही है। 3 सदस्यों वाली कमेटी में 2 लोग- प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री- बहुमत से फ़ैसला लेते हैं। नेता विपक्ष नाम के लिए इस कमेटी में सदस्य है। क्योंकि जो फैसला दो लोग मिलकर लेंगे, उसकी काट अकेला सदस्य नहीं कर सकता। पहले भारत के चीफ जस्टिस भी इसके सदस्य होते थे लेकिन मोदी सरकार ने उस नियम को ही बदल दिया और सीजेआई अब इस कमेटी से बाहर हो गये है। ऐसे में विपक्ष के इस आरोप में दम नजर आता है कि चुनाव आयोग बीजेपी के लिए काम कर रहा है, तो निष्पक्ष चुनाव की कोई उम्मीद नहीं है।
(रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी)