कच्चे तम्बाकू-बीड़ी-गुटखा छोड़कर ई-धूम्रपान पर ही रोक क्यों?
बीते मंगलवार को कैबिनेट की बैठक के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जब संवाददाताओं को संबोधित करने आईं तो पत्रकारों को ही नहीं, उद्योग-व्यवसाय जगत के लोगों को लगा कि वे मंदी से निपटने के कुछ और क़दमों की घोषणा कर सकती हैं। इसका इंतज़ार तो था ही ख़ुद उन्होंने भी कह रखा है कि वे जल्द ही कुछ नए क़दमों की घोषणा करेंगी। पर उन्होंने ई-सिगरेट पर रोक की घोषणा करके सबको चौंकाया। रोक के साथ दंड और जुर्माने का आकार-प्रकार भी चौंकाने में मददगार था। प्रसिद्ध उद्यमी किरण शॉ मजूमदार ने तो अपनी निराशा सार्वजनिक भी की और कहा कि स्वास्थ्य मंत्री वाली घोषणा वित्त मंत्री करें, यह कुछ अस्वाभाविक बात है। अगले दिन निर्मला जी ने सफ़ाई दी कि स्वास्थ्य मंत्री विदेश गए थे और वहाँ मौजूद लोगों में वरिष्ठता के चलते कैबिनेट के सारे फ़ैसलों की जानकारी देना उनका ही काम था। तकनीकी या विशेषज्ञ जानकारियों के लिए स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ लोग वहाँ मौजूद थे। और कैबिनेट के फ़ैसलों में उन्हें यह सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण लगा इसलिए इसकी घोषणा सबसे पहले हुई।
वित्त मंत्री ने इस इलेक्ट्रॉनिक धूम्रपान के स्वास्थ्य सम्बन्धी और आर्थिक नुक़सानों का ज़िक्र किया, इसकी लत लगाने वाले दुर्गुण का उल्लेख किया और इसके बारे में इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के अध्येताओं के अनुसंधान के साथ दुनिया भर के वैज्ञानिकों की राय का भी हवाला दिया। फिर यह भी बताया कि बीते सिर्फ़ तीन साल में ई-सिगरेट का आयात दो गुने से ज़्यादा बढ़ा है। 2012 यानी आठ-नौ साल पहले शुरुआत करके इस नई ‘बीमारी’ ने लाखों डॉलर के आयात का धंधा बना लिया है।
अभी बीमारियों और बीमारों को लेकर आँकड़े नहीं हैं, लेकिन इससे जुड़ी चीजें अगर तम्बाकू और धूम्रपान जैसा नुक़सान करती हैं तो उसके रोगियों में इसका हिसाब शामिल माना जा सकता है। अर्थव्यवस्था का नुक़सान शायद उससे ज़्यादा तेज़ी से हो रहा है क्योंकि 2016-17 में इसका आयात बिल 3.81 लाख डॉलर का था तो 2018-19 में 8.35 लाख डॉलर का हो गया। एक साल में 119 फ़ीसदी की वृद्धि भी देखी गई।
ई-सिगरेट कितनी नुक़सानदेह
अभी कुछ समय पहले तक ई-स्मोकिंग को सिगरेट छुड़ाने के व्यसन के रूप में बताया जाता था। पर अब यह बताया जा रहा है कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण वाले सिगरेट को स्टार्ट करने पर उसके गरमाने वाले हिस्से में चिप के ज़रिए जो रसायन लगाए जाते हैं उनसे निकलने वाला धुआँ या वाष्प सिर्फ़ ज़ुबान का स्वाद ही सिगरेट जैसा नहीं करता, यह असल में शरीर में निकोटीन और नुक़सानदेह रसायनों को उसी तरह पहुँचाता है जिस तरह सिगरेट-बीड़ी का धुआँ। और फिर लत लगाने में यह उनसे पीछे नहीं है। ई-सिगरेट का एक चिप बीस सिगरेटों के धुएँ जितना नुक़सानदेह होता है। और आम तौर पर किशोर-किशोरियों का झुंड एक बार में एक चिप का सेवन कर लेता है। उल्लेखनीय है कि यह मर्ज़ आम तौर पर बड़े और महंगे स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को ही लग रहा है और पुराने सिगरेट प्रेमी अपना नशा छुड़ाने के लिए इसकी शरण में आए हों इसके प्रमाण कम ही हैं।
अब इस लेखक जैसे काफ़ी लोग होंगे जिन्होंने ई-सिगरेट को कभी तसवीर में या ख़ुद वित्त मंत्री के हाथ में ही देखा पर इसका मतलब यह नहीं है कि वे जो कह रही थीं या फ़ैसले का जो आधार बता रही थीं वह ग़लत है। पर इसका यह मतलब तो है ही कि यह ‘बीमारी’ अभी तक इतनी भयावह नहीं हुई है कि भारत की कैबिनेट का बहुप्रचारित फ़ैसला हो जाए। बीमारी को शुरुआत में ख़त्म करना आसान होता है लेकिन यह भी पता करना होगा कि इस बीमारी को अभी-अभी इतने शोर-शराबे और लाभदायक बताकर अपने यहाँ इसका धंधा शुरू करवाने वाले कौन लोग हैं। इसका निर्माण और आयात किसके-किसके हाथ में था और किस तरह दन से हमारे यहाँ काम करने वाली लगभग सभी सिगरेट कम्पनियों ने ई-सिगरेट का अपना ब्रांच खोल लिया था।
अगर सरकार ने ई-सिगरेट का सेवन करने वालों के लिए इतनी सख़्त सज़ा का प्रावधान और उसके लिए अध्यादेश का रास्ता चुनने की जल्दबाज़ी ज़रूरी समझी तो उसको इन ‘अपराधियों’ को भी पकड़ना और दंडित करना चाहिए।
सिगरेट कंपनियों के शेयर क्यों उछले
पर इस प्रतिबंध और फ़ैसले का सबसे पहला असर तो शेयर बाजार में पंजीकृत तम्बाकू और सिगरेट कम्पनियों के शेयर पर दिखा जब पूरा बाजार गोते खा रहा था तब इनके शेयर उछलते रहे। और इनमें से कई में ख़ुद सरकार का काफ़ी निवेश है। जानकार मानते हैं कि सिर्फ़ एक दिन में ही सरकार को इन शेयरों के चढ़ने से एक हज़ार करोड़ का लाभ हुआ। इससे उन कम्पनियों को हुए लाभ का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। सरकार ने शेयरों के ज़रिए मुनाफ़ा वसूली करने या तम्बाकू कम्पनियों को लाभ पहुँचाने के लिए यह फ़ैसला किया होगा यह मानना तो उचित नहीं है, पर जिस देश में लोग कच्चा तम्बाकू खाते हों या अन-प्रोसेस्ड तम्बाकू के बीड़ी पीने का चलन बड़े पैमाने पर हो, लोग रोज़ बीस-बीस गुटखा गटक जाते हों, वहाँ इस तरह का फ़ैसला हो, यह अजीब बात है।
अभी भी नेशनल हेल्थ स्कीम के ‘सिगरेट छुड़ाओ’ अभियान में ई-स्मोकिंग को जगह दी गई है। साँस रोगों के जानकार और नेशनल चेस्ट सेंटर के निदेशक डॉ. भारत गोपाल जैसे कई लोगों का मानना है कि किसी भी जानकार ने कभी यह नहीं कहा कि ई-स्मोकिंग लाभदायक है या नुक़सान नहीं करता। और असली सवाल नुक़सान कम करने का है। जब तक बीड़ी और सिगरेट पर प्रतिबंध नहीं लगता तब तक ऐसे क़दमों का कितना लाभ होगा कहना मुश्किल है। अब डॉ. गोपाल का बयान इस नशे के आदी लोगों के लिए एक आड़ का काम कर रहा है। पर शराब, कच्चे तम्बाकू-बीड़ी-गुटखा की जगह ई-स्मोकिंग प्राथमिकता में आ जाए तो सवाल उठेंगे ही।