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जिसे कोसते रहे दुष्यंत, उसी के साथ चला पायेंगे सरकार?

जिसे कोसते रहे दुष्यंत, उसी के साथ चला पायेंगे सरकार?

विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान और उससे पहले भी जिस बीजेपी को दुष्यंत कोसते रहे क्या उसके साथ सरकार चला पाना उनके लिए संभव होगा। 

हरियाणा विधानसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत न मिलने के कारण बीजेपी को जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का सहारा लेना ही पड़ा। अब यह तय हो गया है कि राज्य में बीजेपी-जेजेपी मिलकर सरकार चलायेंगे। लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान और उससे पहले भी जिस बीजेपी को दुष्यंत कोसते रहे क्या उसके साथ सरकार चला पाना उनके लिए संभव होगा। 

दुष्यंत का पूरा चुनाव प्रचार देखें तो खट्टर सरकार की नाकामियों पर आधारित रहा। दुष्यंत कहते रहे कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कई झूठ बोले हैं और उनके पास उनके झूठों की लंबी फेहरिस्त है।

चुनाव प्रचार के दौरान दुष्यंत जनसभाओं के अलावा सोशल मीडिया पर भी खट्टर सरकार पर हमलावर रहे। दुष्यंत ने किसानों की समस्याओं से लेकर, बढ़ती बेरोज़गारी जैसे कई मुद्दों पर खट्टर सरकार को घेरा। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने को हरियाणा में चुनाव प्रचार के दौरान मुद्दा बनाया था तो चौटाला चुनावी सभाओं में कहते थे कि हरियाणा के जितने फौज़ी सेना में शहीद हो चुके हैं, उतने फौज़ी गुजरात आज तक भारतीय सेना को नहीं दे पाया है। हरियाणा में गुजरात के लोगों को नौकरी देने के मुद्दे को भी उन्होंने जोर-शोर से उठाया था। 

दुष्यंत क़ानून व्यवस्था को लेकर भी खट्टर सरकार पर हमलावर रहे थे। वह चुनावी सभाओं में कहते थे कि हरियाणा में क़ानून व्यवस्था बहुत ख़राब हो चुकी है और राज्य अपराध के मामले में चौथे नंबर पर पहुंच गया है। तब चौटाला बीजेपी सरकार को सत्ता से हटाना एकमात्र मक़सद बताते थे। 

बीजेपी से बचाने होंगे विधायक!

देखना होगा कि बीजेपी और जेजेपी का साथ कितना लंबा चलता है। दुष्यंत को एक बात पर ज़रूर नज़र रखनी होगी कि कहीं सरकार में रहने के दौरान बीजेपी उनके विधायकों को तोड़ न ले। क्योंकि कई राज्यों में ऐसा हो चुका है कि बीजेपी ने वहाँ के विपक्षी दलों के विधायकों में सेंधमारी की है। कुछ समय पहले ही सिक्किम डेमोक्रेटिक फ़्रंट के 13 में से 10 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे। इसके अलावा गोवा में कांग्रेस के 15 में से 10 विधायक बीजेपी के साथ चले गये थे। उससे पहले 2016 में उत्तराखंड में 9 विधायकों ने बग़ावत करते हुए कांग्रेस छोड़कर बीजेपी को समर्थन दे दिया था। इसके अलावा भी हाल ही में दूसरे दलों के कई राज्यसभा सांसदों ने अपने दलों का साथ छोड़कर बीजेपी का हाथ थाम लिया था। इसलिए दुष्यंत को इस मामले में बेहद सतर्क रहना होगा। 

जेजेपी को हरियाणा की जनता ने पहले ही चुनाव में बहुत बड़ा समर्थन दिया है। राज्य में जाट मतदाताओं के अलावा दूसरे समुदाय के लोगों ने भी जेजेपी पर भरोसा जताया है। दुष्यंत ख़ुद पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को हराकर चुनाव जीते हैं। ऐसे में उनके सामने कई चुनौतियां हैं।

दुष्यंत को लोगों के भरोसे को भी बनाये रखना है, पार्टी संगठन भी चलाना है और इस बात का भी जवाब हरियाणा की जनता को देना है कि जिस बीजेपी के ख़िलाफ़ वह महीनों तक बोलते रहे, उसी के साथ सरकार बनाने को क्यों राजी हो गए। दुष्यंत को लोगों को यह बताना होगा कि किस मजबूरी में उन्होंने बीजेपी के साथ सरकार बनाने का फ़ैसला लिया। क्या ऐसे में वह जनता के प्रति ज़्यादा वफ़ादार रहेंगे या सत्ता बचाने के लिये। ऐसे ही सवालों से जूझते हुए दुष्यंत को आगे बढ़ना होगा। देखना होगा कि हरियाणा की जनता ने जो भरोसा उन पर जताया है, उस पर वह  कितना खरा उतरते हैं और बीजेपी के साथ उनकी सियासी दोस्ती कितनी लंबी चलती है। 

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