+
आइसिस को ज़िदा छोड़ने के ट्रंप के फ़ैसले से कुर्द सकते में 

आइसिस को ज़िदा छोड़ने के ट्रंप के फ़ैसले से कुर्द सकते में 

सीरिया से सैनिक वापस बुलाने के फ़ैसले से अमरीका के सहयोग से लड़ रहे अलगाववादी कुर्द विद्रोही परेशान हैं। उन्हें अलग कुर्दिस्तान की लड़ाई नए सिरे से शुरू करनी पड़ सकती है।  

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के सीरिया से सैनिकों और सेना विशेषज्ञों के तत्काल वापस बुला लेने के एलान से पश्चिम के उनके मित्र देश और सदियों बाद कुर्दिस्तान को साकार देखते क़रीब चार करोड़ कुर्द सकते में हैं। 

ट्रंप ने कहा कि अमरीकी सेना ने आइसिस-आइसिल को परास्त कर उसका सफ़ाया कर दिया है, इसलिए अब सेना के वहाँ बने रहने की कोई ज़रूरत नहीं है।

 ट्रंप की इस घोषणा का रूसी राष्ट्रपति पुतिन के अलावा  दुनिया में किसी बड़े नेता ने स्वागत नहीं किया है। पुतिन की घोषणा को राजनयिक हलकों में व्यंग्य समझा जा रहा है। इस लड़ाई में अमरीकी सहयोगी रहे कुर्द लड़ाकों ने तो इसे पीठ में छुरा घोंपना बताया है। 

यूरोप में आशंका बढ़ गई है कि अब शरणार्थियों की बड़ी आबादी कुर्द इलाक़ों से यूरोप की ओर चल देगी जो सीरियाई आबादी के यूरोप पलायन से पहले ही डाँवाडोल है। इस घोषणा के बाद तय हो गया कि सीरिया और इराक़ के भाग्य का फैसला अब रूस, ईरान और तुर्की की तिकड़ी के ज़रिये ही होगा।

पश्चिम सिर्फ इसकी व्याख्या भर कर सकता है।

वियतनाम युद्ध के बाद अमरीकी प्रभुत्व के लिए यह सबसे बड़ा झटका है। अमरीकी अख़बार वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, इसके बाद अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान से भी 14, 000 और अमरीकी सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला कर लिया है।

अमरीकी शेखी

15 बरस पुराने आइसिस को हराने की अमरीकी शेखी नई नहीं है। 2010 में इराक़ छोड़ते समय तब के सीआईए डायरेक्टर जॉन ओ ब्रेनन ने वॉशिंगटन थिंकटैंक के सामने भाषण देते हुए कहा था, ‘अमरीकी सेनाओं ने इराक़ में रहते हुए इस्लामिक स्टेट को काफ़ी हद तक समाप्त कर दिया है। इधर-उधर छिटके-छिपे हुए 600-700 लड़ाकों के अलावा वे कहीं कुछ नहीं बचे हैं!’

उसी साल जून में अमरीकी सेनाओं के इराक़ स्थित कमांडर इन चीफ़ जनरल रे ओडियर्नो ने दावा किया कि अल क़ायदा के कुल टॉप 42 कमांडरों में से 34 को या तो मार डाला गया है या पकड़ लिया गया है। अमरीकी विदेश मंत्रालय तो इतने जोश में था कि उसने मारे जा चुके अबू मुसाब अल जरकावी की जगह नए नेता 38 वर्षीय अबू बक्र अल बग़दादी पर इनाम की राशि पचास लाख डालर से घटा कर एक लाख कर दी थी।

 - Satya Hindi

इलाक़े से इसलामिक स्टेट के लड़ाकों को खदेड़ने के बाद जश्न मनाते कुर्द मिलिशिया के लोग।

ख़िलाफ़त का एलान

पर 2014 में जब बग़दादी के नेतृत्व में इस्लामिक स्टेट ने आधा सीरिया और एक तिहाई इराक़ हड़प कर ख़िलाफ़त का एलान किया तो पूरी दुनिया में हाहाकार मच गया। 2016 में अमरीकी स्टेट डिपार्टमेंट को बग़दादी के सिर पर इनाम बढ़ाकर ढाई करोड़ डालर करना पड़ा। 

आइसिस के लड़ाके इस समय सीरिया के हाज़िन नामक शहर में कुर्द लड़ाकों की घेराबंदी में सितंबर से फँसे हुए हैं। यह उनका इस समय लगभग आख़िरी ठिकाना लगता है। हाजिन में करीब 30 हज़ार नागरिक भी फँसे हुए हैं। हाजिन की हार के बाद ही शायद यह कहा जाए कि फ़िलहाल आइसिस ज्ञात इलाक़े से साफ़ है। पर वह तब भी समाप्त न होगा क्योंकि वह एक विचार भी है !

पेंटागन भी यह मानता है कि आइसिस के पास 20 से 30 हज़ार लड़ाके अभी भी हैं। ट्रंप ने कैसे यह मान लिया कि आइसिस ख़त्म हो गया जबकि सबक़ सामने है कि सिर्फ 600-700 लड़ाकों के आधार से आगे बढ़ कर तीन-चार साल में ही इंग्लैंड से बड़े भूभाग पर हुकूमत क़ायम कर ली थी।

तब उसके आह्वान पर सारी दुनिया से हजारों युवा ख़िलाफ़त के लिए लड़ने-मरने अपना देश, करियर, परिवार छोड़ सीरिया जा पहुँचे थे। 

ट्रंप के इस अचानक एलान से उत्तरी इराक़ उत्तरी सीरिया और दक्षिण-पूर्वी तुर्की में बसे करीब चार करोड़ कुर्द बड़ी मुश्किल में फँस गए हैं। इन तीनों ही देशों में वे अल्पसंख्यक होने के साथ साथ गंभीर उत्पीड़न के सदियों से शिकार रहे हैं। उत्तरी सीरिया में अमरीकी सैनिक समर्थन और सलाह से उन्होंने अपनी छोटी-मोटी कामचलाऊ सरकार तक बना ली थी। तुर्की जहाँ वे सबसे ज्यादा हैं, वहाँ से उनकी नरम-गरम लड़ाई चल रही थी जिसे तय कराने में अमरीकी नाकाम हुए और तुर्की पुतिन से जा मिला। 

 - Satya Hindi

डोनल्ड ट्रंप ने एक झटके में ही 2,000 अमरीकी सैनिकों को वापस बुलाने का एलान कर दिया।

कुर्द महिलाओं की बहादुरी

कुर्दों ने आइसिस का ज़मीनी संघर्ष में सबसे कड़ा मुक़ाबला किया, बहुत सारी क़ुर्बानियाँ दीं और उन्हें हराया। अमरीका के हर फ़ौजी नेतृत्व ने जो सीरिया से संबद्ध रहा, कुर्दों की बहादुरी और आइसिस से मुक़ाबले में अमरीका के लिए उनके रोल की महिमा बखान की। उनकी महिलाओं की बहादुरी की हज़ारों कहानियाँ दुनिया भर के मीडिया ख़ासकर अमरीकी मीडिया की सबसे ज्यादा पढ़ी-देखी-सुनी गई स्टोरीज़ हैं। पर आज वे तीनों ओर से फँसे हुए रह गए हैं। शायद ही रूस, ईरान या तुर्की उनका न्याय करे! बल्कि ख़तरा यह है कि अमरीकी सैनिकों के हटते ही तुर्की उन पर हमला बोल देगा। तुर्की के राष्ट्रपति रिचप तैयप अर्दवान ने अमरीकी एलान के तुरंत बाद कह दिया था कि वे जल्द ही वाईपीजी के ख़िलाफ़ अभियान का एलान करेंगे। वाईपीजी कुर्द छापामार संगठन है। 

ट्रंप जी, यह आपने क्या कर दिया आप पर कोई कैसे और क्यों भरोसा करे इस प्रकरण में भारत के राजनेताओं के लिए भी अमरीकी दिलोदिमाग से समझने का सबक़ निहित है।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें