भारत-पाकः बदलते रिश्ते की नई दास्तान, बिलावल आएंगे?
भारत ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में शामिल होने के लिए दावतनामा भेजा है। यह बैठक मई में गोवा में होने वाली है। इंडियन एक्सप्रेस ने आज बुधवार 25 जनवरी को यह खबर दी है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक यह निमंत्रण पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ एक बयान के बाद भेजा गया। उस बयान में शहबाज ने कहा था कि पाकिस्तान भारत के साथ शांति से रहना चाहता है और उसने तीन युद्धों से इसका सबक सीखा है।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद भारत ने भी अपने रुख में नरमी लाते हुए इस साल गोवा में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होने के लिए पाकिस्तान को आमंत्रित किया है।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग के जरिए पाकिस्तान में उनके समकक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी को मई के पहले सप्ताह में गोवा में होने वाली बैठक के लिए गोवा आने का आमंत्रण भेजा है। गोवा में होने वाली इस बैठक की तारीखों की घोषणा नहीं की गई है, लेकिन अनुमान है कि यह बैठक चार और पांच मई को होगी। पाकिस्तान अगर इस आमंत्रण को स्वीकार्य करता है तो 12 साल बाद कोई पाकिस्तानी विदेश मंत्री भारत आएगा।
इससे पहले 2011 में हिना रब्बानी खार भारत आईं थी जोकि 26/11 के हमलों के बाद पाकिस्तान सरकार की पहली यात्रा थी। एससीओ में मध्य एशिया के देशों के मध्य आपसी संगठन है, जिसमें भारत और पाकिस्तान के अलावा चीन, रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं। इसी तरह का निमंत्रण मध्य एशियाई देशों के साथ चीन और रूस के विदेश मंत्रियों को भी भेजा गया है।
इन सब देशों के आपसी रिश्तों से अलग भारत और पाकिस्तान के आपसी रिश्ते सबसे निचले स्तर पर हैं। जिसके कारण पाकिस्तान को आमंत्रित किया जाना खास माएने रखता है। फिल्हाल इस पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया अहम होगी।
भारत अपनी विदेशनीति में नेबरहुड फर्सट पॉलसी का पालन करता है, और पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते इसी आधार पर तय किये जाते हैं। पाकिस्तान भी भारत का करीबी पड़ोसी है, जिसके साथ भारत सबसे लंबी सीमा रेखा साझा करता है। पाकिस्तान को लेकर भारत ने हमेशा सौहार्दपूर्ण, आतंकवाद मुक्त वातावरण चाहता है और किसी भी मुद्दे को आपसी बातचीत के जरिए हल करने का प्रयास करता है।
नरेंद्र मोदी ने जब पहली बार शपथग्रहण किया था, तब सभी दक्षिण एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आंमत्रित किया था। जिसमें पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भारत आए थे। उसके बाद से उम्मीद की जा रही थी कि भारत पाकिस्तान के रिश्ते में सुधार होगा लेकिन बात बहुत आगे नहीं बढ़ी थी।
भारत और पाकिस्तान के आपसी संबध पिछले एक दशक में सबसे निचले स्तर पर हैं उसके बाद भी लगातार सुधारने के प्रयास किए जाते रहे हैं।
अगस्त 2015 में पाकिस्तान के विदेश मंत्री सरताज अजीज को भारत आने के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन उनकी हुर्रियत नेताओं से मिलने की जिद के कारण उनका दौरा रद्द कर दिया गया था। भारत की तरफ से आखिरी औपचारिक दौरा दिसंबर 2015 मे पूर्व विदेश मंत्री सुष्मा स्वराज ने किया था। जिसमें वे हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में भाग लेने के लिए इस्लामाबाद गईं थीं। लेकिन पठानकोट, उरी और पुलवामा हमलों के सुधरते हुए दिख रहे संबध फिर से खराब हो गये।
पाकिस्तान में शरीफ और भुट्टो परिवार की मिलीजुली सरकार आने के बाद से एक बार फिर आपसी संबंधों के सुधरने की गुंजाइश दिख रही है। इस सबके बीच पिछले कुछ वर्षों से नियंत्रण रेखा पर भी संघर्ष विराम है, धार्मिक तीर्थयात्राएं आगे बढ़ी हैं और सिंधु जल संधि का पालन किया गया है। जोकि भारत पाक के सबंध सुधारने के लिए बड़ी वजह हैं।
इन तमाम बातों के बाद भी संबधों में जमी धूल पूरी तरह से साफ नहीं हुई है। पिछले साल दिसंबर में भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने पाकिस्तान को 'आतंकवाद का केंद्र' करार दिया था। इस मसले पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर गुजरात दंगो को लेकर की गई एक टिप्पणी से माहौल खराब हुआ था। भुट्टो ने अपनी टिप्पणी में नरेंद्र मोदी को गुजरात का कसाई कहा था। विदेश मंत्रालय ने भुट्टो की टिप्पणी को 'असभ्य' और 'पाकिस्तान के लिए भी निम्नतम स्तर कहा था।
भारत पाकिस्तान के संबंधो के लिहाज से यह साल कुछ बेहतर रहा जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कश्मीर के मुद्दे पर मोदी के साथ गंभीर और ईमानदार बातचीत का आह्वान किया था। इससे पहले पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के उप प्रमुख अब्दुल रहमान मक्की को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के भारत के प्रयास पर चीन ने कोई रोक नहीं लगाई।
भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंध हमेशा से ही बनते बिगड़ते रहे हैं। लेकिन इनको सुधारने के लिए आखिरी और गंभीर प्रयास भारत की तरफ से अटल बिहारी बाजपेयी औऱ पाकिस्तान के नवाज शरीफ़ का रहा है। इसके बाद कुछ समय तक पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ के सैन्य शासन के दौरान आगे बढ़े। उसके बाद से लगातार ऐसी घटनाएं होती रहीं कि इनके सुधरने की गुंजाइश लगातार कम होती गई।
एक बार फिर नए सिरेसिरे से कोशिश शुरु हो रही है तो देखना होगा कि यह प्रयास कितना आगे तक जा पाते हैं।