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क्या अब बीजेपी को शिंदे की जरूरत नहीं ?

क्या अब बीजेपी को शिंदे की जरूरत नहीं ?

बीजेपी को रहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला शिंदे गुट के खिलाफ जा सकता है। और अगर ऐसा होता है तो राज्य में समय से पहले चुनाव कराए जाने की स्थिति बनेगी। और बीजेपी ने इस स्थिति को देखते हुए चुनाव की तैयारियां भी शुरु कर दी हैं। 

महाराष्ट्र में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हैं, कारण महारष्ट्र की सरकार चला रही शिवसेना(एकनाथ शिंदे गुट) और बीजेपी के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर झगड़ा शुरु हो गया है। झगड़े की शुरुआत हुई महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले के एक बयान से। पिछले दिनों महाराष्ट्र बीजेपी चंद्रशेखर बावनकुले ने अपने बयान में कहा था कि अगले विधानसभा चुनाव में बीजेपी 240 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और गठबंधन की साथी शिवसेना को 48 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि भाजपा और शिवसेना ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में और मुख्यमंत्री शिंदे तथा उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के समन्वय में 200 सीट जीतने के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं।

बावनकुले के इस बयान के बाद एकनाथ शिदें काफी गुस्से में बताए जा रहे हैं, कारण कि बीजेपी उनकी वजह से ही सरकार में है। एकनाथ शिंदे के समर्थक विधायक संजय शिरसाट ने बावनकुले को सलाह देते हुए कहा कि बेहतर होगा कि बावनकुले उतना ही बोलें, जितना उन्हें अधिकार है। उन्हें फिजूल की बयानबाजी से बचना चाहिए। वे हमें 48 सीट देंगे और हम मान भी जाएंगे? बीजेपी अध्यक्ष बावनकुले ने हमें क्या मूर्ख समझ रखा है? उन्होंने तल्ख शब्दों में कहा कि ऐसे बयानों से ही गठबंधन में दरारें पैदा होनी शुरू होती हैं।

मामले को हाथ से निकलते देख बीजेपी अध्यक्ष बावनकुले ने इसके लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि उनके बयान को मीडिया ने गलत तरह से पेश किया है। बयान का विडियो आधा-अधूरा वायरल किया गया है। हमने कहीं भी नहीं कहा कि सीट बंटवारे का फार्मूला तय हो चुका है। यह तो दिल्ली और महाराष्ट्र के हमारे वरिष्ठ नेता शिवसेना के साथ मिल-बैठकर तय करेंगे।

एकनाथ शिंदे के गुस्सा होने का कारण यह भी है कि जो बीजेपी उनकी वजह से सरकार चला रही है, उसने उन्हें नीचा दिखाना शुरु कर दिया है। जबकि शिवसेना में दो-फाड़ करने के लिए उन्होंने ही विधायकों को राजी किया था। हालांकि इसका ईनाम उन्हें मुख्यमंत्री के कुर्सी के रूप में मिला। लेकिन शिंदे की सबसे बड़ी समस्या यह है कि पार्टी से बगावत करके जो लोग उनके साथ आए थे, अगर शिंदे उन्हें अपने साथ बनाकर रखने में सक्षम नहीं रह पाते हैं तो वे लोग वापस उद्धव गुट की तरफ वापस लौट सकते हैं, और ऐसे में शिंदे के पास कुछ भी नहीं बचेगा। क्योंकि शिंदे के साथ जो लॉग पार्टी से बगावत करके आए हैं वे मूल रूप से शिवसैनिक हैं, और अगर शिंदे हथियार डालते हैं तो उनके पास उद्धव के गुट में लौटने के अलावा और कोई चारा नहीं बचेगा।

चंद्रशेखर बावनकुले के बयान के कई मतलब निकाले जा रहे हैं, इसका कारण कि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों में काफी देर है, और उससे पहले लोकसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में विधानसभा चुनाव की चर्चा का क्या मतलब है? माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला शिंदे गुट के खिलाफ जा सकता है। और अगर ऐसा होता है तो फिर राज्य में दोबारा से चुनाव कराए जाने की स्थिति बनेगी। और बीजेपी ने इस स्थिति को देखते हुए चुनाव की तैयारियां भी शुरु कर दी हैं।

एकनाथ शिंदे पर पहले से ही यह आरोप लग रहे हैं कि वे तो केवल नाम के मुख्यमंत्री हैं, असली सरकार तो देवेंद्र फडणवीस चला रहे हैं। शिंदे का यह हाल तब है जब पार्टी के खिलाफ उनकी बगावत पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला है। अगर फैसला उनके खिलाफ जाता है तो उन्हें मुख्येमंत्री की कुर्सी के साथ ही पार्टी से भी हाथ धोना पड़ सकता है।

शिवसेना और बीजेपी के बीच चल रही रस्साकसी पर विपक्ष ने शिवसेना पर हमला किया है, एनसीपी नेता जंयत पाटिल ने एक बयान में कहा कि राज्य में होने वाला अगला चुनाव महाविकास अघाड़ी और बीजेपी के बीच होगा, और इसके साथ ही शिवसेना(शिंदे गुट) के आस्तित्व पर सवालिया निशान लग जाएगा।

शिवसेना से बगावत कर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने वाले एकनाथ शिंदे को चुनाव आयोग की तरफ से बड़ी राहत प्रदान करते हुए पार्टी का मूल नाम(शिवसेना और चुनाव निशान(तीर-धनुष ) शिंदे गुट को सौंप दिया गया था, जबकि उद्धव गुट की शिवसेना को मशाल चुनाव चिन्ह दिया गया था। पिछले दिनों इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई पूरी हो चुकी है, जिसका फैसला सुरक्षित रख लिया गया है।

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