यूपी: जिस डॉ. कफ़ील को जेल भेजा था उसे अब ‘मसीहा’ क्यों बताया?
गोरखपुर में दिमाग़ी बुखार से पीड़ित बच्चों का दिन-रात जाग कर इलाज करने वाले डॉ. कफ़ील ख़ान को योगी सरकार ने तमाम आरोपों से क्लीनचिट दे दी है। उन्हें बच्चों की जान बचाने वाला 'मसीहा' कहा गया है। डॉ. कफ़ील को 2017 में गोरखपुर के बाबा राघवदास यानी बीआरडी मेडिकल कॉलेज में दिमाग़ी बुखार से पीड़ित बच्चों का जी-जान से इलाज करने की सज़ा मिली थी! इस जानलेवा बुखार से गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए भर्ती 60 से ज़्यादा बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हो गयी थी। तब बच्चों की मौत को लेकर तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने बयान दिया था कि अगस्त सितंबर में तो इस इलाक़े में बच्चों की मौत होती रहती है।
डॉ. कफ़ील का बच्चों का इलाज करते हुए तसवीरें स्थानीय अख़बारों में प्रकाशित होने और उन्हें बाहर से ऑक्सीजन की व्यवस्था करने संबंधी ख़बरें आने पर सस्पेंड करते हुए उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा लिखा दिया गया था। इतना ही नहीं, इस मामले और अन्य कई मुक़दमों में डॉ. कफ़ील को क़रीब नौ महीने जेल में रखा गया था। इसके बाद वे ज़मानत पर थे। हालाँकि, अभी तक वह सस्पेंड चल रहे हैं। डॉ. कफ़ील ने इस मामले में सीबीआई जाँच की भी माँग की थी। डॉ. कफ़ील पर लगे आरोपों की जाँच के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रमुख सचिव भूतत्व एवं खनन की अध्यक्षता में एक जाँच समिति गठित की थी। अब इस समिति ने पड़ताल पूरी कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है।
दोषी नहीं थे, बच्चों को बचाने की कोशिश की थी
पूरे मामले की जाँच कर रही समिति ने पाया है कि 60 बच्चों की मौत के मामले में डॉ. कफ़ील ख़ान दोषी नहीं थे। जाँच रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉ. कफ़ील ने बच्चों को बचाने की कोशिश की थी। अब बीआरडी मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों ने जाँच रिपोर्ट की प्रति कफ़ील को सौंपी है। इसके मुताबिक़ गोरखपुर ऑक्सीजन कांड में निलंबित डॉक्टर कफ़ील ख़ान को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया है।
प्रमुख सचिव खनिज और भूतत्व विभाग की अगुवाई में हुई जाँच के बाद डॉक्टर कफ़ील पर लगाए गए आरोपों में सच्चाई नहीं पाई गई।
रिपोर्ट के मुताबिक़, कफ़ील ने घटना की रात बच्चों को बचाने की पूरी कोशिश की थी। इस तरह डॉ. कफ़ील पर लगाए गए सभी आरोप ग़लत पाए गए।
लंबी लड़ाई लड़ी, बुरे दिन झेले
डॉ. कफ़ील ने अपनी प्रताड़ना को लेकर सरकार के आला अधिकारियों से गुहार लगायी और अपने निर्दोष होने के साक्ष्य पेश किए। वह मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य से लेकर चिकित्सा शिक्षा विभाग तक हर जगह दौड़े। डॉ. कफ़ील की एक न सुनते हुए उन्हें सस्पेंड कर दिया गया और लापरवाही, अन्य मामलों में जेल भी भेज दिया गया। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक तमाम सामाजिक संगठनों ने डॉ. कफ़ील की प्रताड़ना के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी, पर कुछ भी सकारात्मक नहीं हुआ।
मेडिकल कॉलेज के जानकारों का कहना है कि बच्चों की मौत के समय डॉ. कफ़ील का दिन-रात जुटकर इलाज करना और बाहर से ऑक्सीजन का इंतज़ाम कर अपनी गाड़ी में लादकर पहुँचने जैसी ख़बरों नें सरकार को नाराज़ कर दिया था। हालाँकि डॉ. कफ़ील का कहना है कि उन्होंने किसी मीडिया को न तो कोई ख़बर दी और न ही बुलाया था, लेकिन अधिकारियों नें मीडिया में हुई छीछालेदर का ठीकरा उन्हीं के सर पर फोड़ दिया। नतीजा उनके जेल जाने और सस्पेंड होने के तौर पर सामने आया। इतना ही नहीं, बीते ढाई साल में डॉ. कफ़ील पर जानलेवा हमले से लेकर उन्हें संपत्ति विवाद में भी उलझाया गया।
हारे नहीं, गाँवों में इलाज करते रहे
इतनी लंबी चली प्रताड़ना के इस दौर में भी डॉ. कफ़ील टूटे नहीं, बल्कि लखनऊ से दिल्ली तक अपनी बेगुनाही का सुबूत देते हुए आवाज़ उठाते रहे, अदालत में भी लड़ते रहे और गाँव-गाँव जाकर इलाज करते रहे।
हाल ही में बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में चमकी बुखार से हो रही मौतों को देखते हुए डॉ. कफ़ील अपने साथ टीम व दवाएँ लेकर पहुँचे और वहाँ इलाज करने लगे थे। डॉ. कफ़ील के इस काम ने भी सरकारों को नाराज़ किया। डॉ. कफ़ील ने इस दौरान अपने मित्रों व शुभचिंतकों से दवा का इंतज़ाम कर गोरखपुर के आसपास के गाँवों में जाकर मुफ़्त इलाज करना शुरू कर दिया था।