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असहमति पर इतना ज़ोर क्यों, लोकतंत्र ख़तरे में तो नहीं?

असहमति पर इतना ज़ोर क्यों, लोकतंत्र ख़तरे में तो नहीं?

क्या असहमति के बिना लोकतंत्र संभव है? इस पर सरकारें भले ही घालमेल करती हों, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने साफ़ संदेश दिया है कि असहमति लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।

असहमति के लिए आपातकाल काला दिन

देश ने 1975 में वे दिन देखे जब असहमति के लिए कोई जगह नहीं थी। जून महीने की 25 तारीख़ की रात देश को आपातकाल और सेंसरशिप के हवाले कर नागरिक अधिकार छीन लिए गए थे। इंदिरा गंधी सरकार ने राजनीतिक विरोधियों को उनके घरों, ठिकानों से उठाकर जेलों में डाल दिया था। बोलने की आज़ादी पर पाबंदी लगा दी गई थी। इंदिरा गांधी ने सत्ता जाने के डर से आपातकाल लगाया था, लेकिन वे इसे बचा नहीं पाई थीं। आपातकाल हटते ही सत्ता उनके हाथ से फ़िसल गई।

 - Satya Hindi

भारत 10 स्थान कैसे फिसला?

इकोनॉमिक्स इंटलिजेंस यूनिट नाम की संस्था की वर्ष 2017 के लिए आई रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के सिर्फ 19 देशों में पूरी तरह से लोकतंत्र कायम है। बाक़ी देशों में लोकतंत्र सही रूप में नहीं है। भारत भी उनमें से एक है। इसमें भारत 42वें स्थान पर है। पिछले वर्ष से यह 10 पायदान नीचे आ गया है। रिपोर्ट के लिए चुनाव, राजनीति, संस्कृति और नागरिक अधिकारों को पैमाना बनाया गया है। संस्था के बयान में कहा गया है, ‘रूढ़िवादी धार्मिक विचारों के बढ़ने से भारत प्रभावित हुआ। धर्मनिरपेक्ष देश में दक्षिणपंथी हिंदू ताक़तों के मज़बूत होने से अल्पसंख्यक समुदायों और असहमत होने वाली आवाज़ों के खिलाफ़ हिंसा को बढ़ावा मिला है।‘

कई देशों की हालत ख़राब

विरोध की आवाज़ को पूरी दुनिया में सरकारें दबाती हैं। यही कारण है कि कभी डोनल्ड ट्रंप को लोकतंत्र की फ़िक़्र होती है तो, कभी टेरीज़ा मे और एंजेला मर्केल काे। पूरी दुनिया में शोर है। इकोनॉमिक्स इंटलिजेंस यूनिट की रिपोर्ट बताती है कि लोकतंत्र के पैमाने पर नॉर्थ कोरिया 167वें स्थान पर, सीरिया 166वें, चीन 139वें, पाकिस्तान 110वें स्थान पर हैं। रिपोर्ट से साफ़ है कि इन देशों में असहमति की गुंज़ाइश अपेक्षाकृत कम है।

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