
असहमति पर इतना ज़ोर क्यों, लोकतंत्र ख़तरे में तो नहीं?
क्या असहमति के बिना लोकतंत्र संभव है? इस पर सरकारें भले ही घालमेल करती हों, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने साफ़ संदेश दिया है कि असहमति लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।
असहमति के लिए आपातकाल काला दिन
देश ने 1975 में वे दिन देखे जब असहमति के लिए कोई जगह नहीं थी। जून महीने की 25 तारीख़ की रात देश को आपातकाल और सेंसरशिप के हवाले कर नागरिक अधिकार छीन लिए गए थे। इंदिरा गंधी सरकार ने राजनीतिक विरोधियों को उनके घरों, ठिकानों से उठाकर जेलों में डाल दिया था। बोलने की आज़ादी पर पाबंदी लगा दी गई थी। इंदिरा गांधी ने सत्ता जाने के डर से आपातकाल लगाया था, लेकिन वे इसे बचा नहीं पाई थीं। आपातकाल हटते ही सत्ता उनके हाथ से फ़िसल गई।