गलवान/हॉट स्प्रिंग पर खुश न हों, पैंगोंग झील की चोटियों को चीन से छुड़वाना ज़रूरी
गत पांच जुलाई को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री वांग यी के बीच बातचीत के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हालात सामान्य करने की दिशा में कुछ निर्णायक फैसले लिए गए हैं। निश्चय ही इन फैसलों को सकारात्मक दिशा में एक कदम माना जाना चाहिए। लेकिन ये फैसले भारत की यथास्थिति बहाल करने की मांग के कितने अनुरूप हैं, कहना मुश्किल है क्योंकि भारत और चीन के आला अधिकारियों के बीच बातचीत के बाद यह साफ नहीं कहा गया है कि चीन पांच मई से पहले की अपनी तैनाती और सैन्य गश्ती वाली स्थिति बहाल करेगा।
पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी, गोगरा-हॉट स्प्रिंग इलाके से पीछे हटने और पैंगोंग त्सो झील इलाके पर अड़े रहने से चीन की दो कदम आगे बढ़ने और एक कदम पीछे हटने की रणनीति साफ उजागर हो रही है।
पैंगोंग त्सो झील इलाके की फिंगर-4 से फिंगर-8 तक की पर्वतीय चोटियों के बीच के इलाके पर कब्जा करने के बाद चीन ने गलवान घाटी, गोगरा-हॉट स्प्रिंग, देपसांग इलाके में इसलिए अतिक्रमण किया था कि सौदेबाजी के तहत वह इन इलाकों को छोड़ देगा और पैंगोंग त्सो झील की चोटियों पर अपना कब्जा बनाए रखेगा।
नई दिल्ली में चीनी राजदूत सुन वेई तुंग और बाद में चीनी विदेश मंत्रालय के बयान में भी साफ कहा गया है कि दोनों देश हाफवे पर बात मान लें यानी कुछ भारत झुके और कुछ चीन।
चीन के झुकने का मतलब है कि वह गलवान घाटी, हॉट स्प्रिंग-गोगरा और देपसांग को छोड़ देगा लेकिन पैंगोंग त्सो झील के फिंगर-4 से फिंगर-8 तक के आठ किलोमीटर के इलाके को नहीं छोड़ेगा।
पैंगोंग पर भारत मौन क्यों
गलवान घाटी और हॉट स्प्रिंग के इलाकों से पीछे हटने की कार्रवाई कर चीन पैंगोंग इलाके पर मौन है। भारतीय पक्ष द्वारा भी इस बारे में मौन बरता जाना हैरानी पैदा करता है। इस बारे में सरकार का रुख एक टीवी चैनल पर बीजेपी के एक प्रवक्ता की टिप्पणी से साफ पता चलता है कि फिंगर-4 से फिंगर-8 के बीच 1999 के करगिल युद्ध के समय से ही विवाद रहा है।
यानी सत्तारुढ़ पार्टी के प्रवक्ता चीनी दावों को सही ठहरा रहे हैं कि यह विवाद पुराना है और यदि चीन वहां से पीछे नहीं गया तो यह उसकी इस अवधारणा के अनुरुप है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा फिंगर-4 तक ही है, जहां भारतीय सैना अपनी चौकी स्थापित कर सकती है।
चीन का अड़ियल रुख
सीमा मसले पर आला स्तर पर बातचीत के लिए 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में विशेष प्रतिनिधि स्तर की बातचीत करने पर सहमति हुई थी ताकि इस मसले को जल्द से जल्द सुलझाया जा सके। इस बातचीत के लिए भारत की ओर से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और चीन के स्टेट काउंसलर नामजद किए गए थे। इस व्यवस्था के तहत अब तक 22 दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं जिसमें चीन की ओर से जो शर्तें रखी जा रही हैं, वे भारत को कतई मान्य नहीं हो सकतीं।
यथास्थिति बहाल हो: भारत
गत पांच जुलाई को दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच जो फोन वार्ता दो घंटे तक चली, उसमें भी चीन ने अड़ियल रुख अपनाया। लेकिन भारतीय विशेष प्रतिनिधि अजीत डोभाल ने भारत का पुराना रुख दोहराया कि जबतक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति बहाल नहीं होगी तब तक सीमा पर शांति नहीं हो सकती और ऐसी हालत में भारत और चीन के रिश्ते पहले की तरह बहाल नहीं किए जा सकते।
गौरतलब है कि गत एक अप्रैल को ही दोनों देशों के राष्ट्रप्रमुखों और प्रधानमंत्रियों के बीच पत्रों का आदान-प्रदान हुआ था जिसमें दोनों ने साल 2020 में आपसी राजनयिक रिश्तों की 70 वीं सालगिरह पर प्रसन्नता जाहिर की थी।
ड्रैगन की धोखेबाज़ी
लेकिन दोनों देशों के आला नेताओं के बीच मिठास भरे पत्र व्यवहार के दौरान ही चीन ने भारतीय इलाकों में घुसपैठ की और जिस तरह वह इसकी चुपचाप तैयारी कर रहा था, किसी ने इसकी कल्पना नहीं की थी। ठीक उसी तरह जैसे फरवरी, 1999 में पाकिस्तान ने एक ओर भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को आमंत्रित किया और दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना करगिल की पहाड़ियों में घुसपैठ की तैयारी कर रही थी।
लेकिन, चीनी नेताओं को शायद यह अनुमान नहीं था कि कोरोना महामारी की राष्ट्रीय समस्या से जूझ रहा भारत चीन की सैन्य चुनौतियों से मुकाबला करने का दृढ़ संकल्प जाहिर करेगा।
गत दो महीने से चल रही सैन्य तनातनी के बाद भारत और चीन के बीच युद्ध जैसी तैयारियों के चलते चीन ने जब देखा कि सारी दुनिया भारत के पक्ष को समझ रही है, तब जाकर चीनी विदेश मंत्री ने बातचीत की पेशकश की। चीन के गलवान घाटी से वापस जाने की ख़बरों पर देखिए, वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का वीडियो -
निश्चय ही पांच जुलाई को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और चीन के विदेश मंत्री और स्टेट काउंसलर के बीच हुई बातचीत के बाद इसके शुरुआती नतीजे जमीन पर दिखने लगे हैं। गलवान घाटी के पेट्रोल प्वाइंट-14 और पेट्रोल प्वाइंट-15 से चीनी सैनिक पीछे हट गए हैं। इसके अलावा हॉट स्प्रिंग इलाके से भी चीनी सैनिकों के पीछे हटने की ख़बरें हैं लेकिन सामरिक हलकों मे सबसे बड़ा सवाल यही कौंध रहा है कि क्या चीन पैंगोंग त्सो झील के फिंगर-4 की चोटी को त्याग कर अपने मौलिक इलाके फिंगर-8 के पार तक चला जाएगा।
सामरिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक़, पैंगोंग त्सो झील से चीनी सैनिकों को पीछे हटने को विवश करना ही भारत की सबसे बड़ी कामयाबी होगी। भले ही चीनी सैनिक गलवान घाटी और हॉट स्प्रिंग के इलाके से पांच मई से पहले की स्थिति में लौट जाएं लेकिन जब तक वे पैंगोंग त्सो झील इलाके से पुरानी वाली स्थिति में नहीं लौट जाएंगे तब तक भारत का लक्ष्य हासिल नहीं माना जाएगा।
भारत की यही शर्त रही है कि चीनी सैनिक पांच मई से पहले की यथास्थिति बहाल करें। भारत का मानना है कि चीन ने पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाकों में एकपक्षीय तौर पर वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया है जिसे जल्द से जल्द समाप्त करना होगा।
चीन और भारत के प्रधानमंत्रियों द्वारा सीमा मसले पर बातचीत के लिए नियुक्त विशेष प्रतिनिधियों वांग यी और अजीत डोभाल की वार्ता के बाद दोनों देशों ने जो बयान जारी किया है उसमें वास्तविक नियंत्रण रेखा के पूर्ण सम्मान करने का वादा चीन द्वारा किए जाने की बात केवल भारतीय बयान में है लेकिन चीन ने अपने बयान में इसका जिक्र नहीं किया है।
डोकलाम में हुई थी तनातनी
चीन की कथनी और करनी में भारी फर्क हमने दो साल पहले भूटान के डोकलाम इलाके में भी घुसपैठ करने के दौरान उसके रवैये से देखा है। भारत ने चीन को डोकलाम के इलाके से हो कर सड़क बनाने से रोका तो चीनी सेना ने वहां भारी संख्या में अपने सैनिकों को तैनात कर दिया और जवाब में भारत ने भी उसी तरह की तैनाती अपने इलाके में की। दोनों देशों के बीच सैन्य तनातनी की यह स्थिति 73 दिनों तक चली और इसके बाद हुए समझौते के तहत चीन को अपने सैनिक पीछे हटाने थे लेकिन चीनी सैनिक दो सौ मीटर ही पीछे हटे हालांकि चीनी सेना ने डोकलाम इलाके से होकर सड़क बनाने का काम रोक दिया। ताजा रिपोर्टें हैं कि डोकलाम के इलाके में चीनी सेना सौ मीटर और आगे आ गई है।
इसीलिए इस बार भारतीय सेना और सरकार फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। चीन को झुकाना भारत के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा और इसके लिए भारत को राजनयिक और सैनिक हथकंडों का संयुक्त इस्तेमाल करना होगा।